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Saturday, August 9, 2025

मालेगांव केस: अनिता चौधरी के साक्षात्कार में सुरेश चव्हाण ने उजागर की हिंदू विरोधी साजिश, 17 साल बाद मिला न्याय

नई दिल्ली, 9 अगस्त 2025: वर्ष 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाकों के मामले में 17 साल बाद विशेष एनआईए कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस धमाके में 6 लोगों की जान गई थी और दर्जनों घायल हुए थे। मामले में मुख्य आरोपियों में शामिल भोपाल से बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और सेना के पूर्व अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष ठोस और विश्वसनीय सबूत पेश करने में नाकाम रहा, जिसके अभाव में आरोपियों को दोषी ठहराना संभव नहीं है। इस फैसले ने न केवल मालेगांव केस की सच्चाई को उजागर किया, बल्कि ‘भगवा आतंकवाद’ के झूठे नैरेटिव को भी ध्वस्त कर दिया, जिसे कांग्रेस शासनकाल में कथित तौर पर प्रचारित किया गया था।

इस ऐतिहासिक फैसले के बाद सुदर्शन न्यूज के संस्थापक और मालेगांव केस के चश्मदीद पत्रकार सुरेश के. चव्हाण ने वरिष्ठ पत्रकार अनिता चौधरी के साथ एक विशेष साक्षात्कार में इस मामले की परतें खोलीं। चव्हाण ने उस दौर को याद करते हुए बताया कि कैसे 2008 में मालेगांव ब्लास्ट के बाद कुछ मीडिया चैनलों, विशेषकर एनडीटीवी, ने उनके और सुदर्शन न्यूज के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए। उन्होंने कहा, “एनडीटीवी ने हेडलाइन चलाई थी- ‘पहले खबर, फिर बम धमाका’, यह दावा करते हुए कि सुदर्शन न्यूज ने धमाके से पहले ही इसकी खबर चला दी थी। यह पूरी तरह झूठ था। इतना ही नहीं, एनडीटीवी ने यह भी आरोप लगाया कि मालेगांव धमाकों में मेरा हाथ है।” चव्हाण ने तंज कसते हुए कहा, “आज 17 साल बाद कोर्ट ने सच को सामने ला दिया। भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। आज हमारा चैनल स्वतंत्र रूप से चल रहा है, जबकि एनडीटीवी को अपने मालिक को चैनल अडानी को बेचना पड़ा।”

‘भगवा आतंक’ की साजिश का पर्दाफाश

सुरेश के. चव्हाण ने साक्षात्कार में खुलासा किया कि मालेगांव ब्लास्ट केस के जरिए हिंदू धर्म को आतंकवाद से जोड़ने की एक सुनियोजित साजिश रची गई थी। उन्होंने कहा, “कांग्रेस शासनकाल में ‘हिंदू आतंकवाद’ की थ्योरी गढ़ी गई थी, जिसके तहत साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय जैसे लोगों को निशाना बनाया गया। यह साजिश 2002 के गुजरात दंगों के बाद पीएम नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत और अन्य हिंदूवादी नेताओं को फंसाने की कोशिश का हिस्सा थी।” चव्हाण ने दावा किया कि साध्वी प्रज्ञा को एटीएस ने बेरहमी से प्रताड़ित किया, जिसमें उन्हें नग्न करना, मानसिक यातनाएं देना और ब्लू फिल्म दिखाना तक शामिल था।

चव्हाण ने यह भी बताया कि मालेगांव केस में स्वामी असीमानंद को इसलिए फंसाया गया क्योंकि वे महाराष्ट्र-गुजरात सीमा पर आदिवासियों के धर्मांतरण को रोकने का काम कर रहे थे। उन्होंने सोनिया गांधी पर सीधा हमला बोलते हुए कहा, “यह सब उनकी टीम की साजिश थी।” चव्हाण ने यह भी खुलासा किया कि उस दौरान महाराष्ट्र पुलिस के कुछ मराठा जवान, जो इस अन्याय के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे थे, उन्हें गुप्त रूप से जानकारी देते थे। चव्हाण ने कहा, “इसी वजह से सुदर्शन न्यूज उस समय सच्चाई को सामने ला पा रहा था, जिससे कांग्रेस सरकार भी चिंतित थी।”

साध्वी प्रज्ञा की यातनाओं का खुलासा

सुरेश चव्हाण ने साध्वी प्रज्ञा के साथ हुए कथित अत्याचारों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें बड़े नेताओं के नाम लेने के लिए मजबूर किया गया, जिनमें मोहन भागवत, राम माधव, नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और इंद्रेश कुमार जैसे नाम शामिल थे। चव्हाण ने बताया, “साध्वी ने दबाव में आने से इनकार कर दिया और किसी को झूठा नहीं फंसाया, इसलिए उन्हें और अधिक यातनाएं दी गईं।”

कोर्ट का फैसला: सबूतों का अभाव, सभी बरी

विशेष एनआईए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मालेगांव ब्लास्ट एक गंभीर अपराध था, लेकिन सजा के लिए मजबूत और विश्वसनीय सबूत जरूरी हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया, “अभियोजन पक्ष कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। गवाहों की गवाही कमजोर थी और केवल संदेह के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती।” इस फैसले ने न केवल आरोपियों को राहत दी, बल्कि ‘भगवा आतंकवाद’ की अवधारणा को भी खारिज कर दिया।

2008 का दौर और सुदर्शन न्यूज की बेबाकी

चव्हाण ने 2008 के उस दौर को याद करते हुए बताया कि जब मालेगांव ब्लास्ट हुआ, तब उन्होंने सुदर्शन न्यूज पर भगवा कुर्ता पहनकर एक शो में एंकरिंग की और मजाक में कहा, “मैं सुरेश के. चव्हाण, भगवा आतंकवादी… क्योंकि मैंने भगवा कुर्ता पहना है।” उन्होंने बताया कि उसी रात वे बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के घर डिनर पर गए, जहां तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम भी मौजूद थे। सुषमा स्वराज ने चिदंबरम से मजाक में पूछा, “इन्हें जानते हैं?” जिस पर चिदंबरम ने जवाब दिया, “हां, अभी टीवी पर देखा, ये भगवा आतंकवादी हैं।”

मालेगांव केस और हेमंत करकरे

साक्षात्कार में 26/11 मुंबई हमले में शहीद हुए एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे का भी जिक्र हुआ। करकरे मालेगांव ब्लास्ट की जांच करने वाले पहले अधिकारी थे और उन पर साध्वी प्रज्ञा को प्रताड़ित करने के आरोप लगे थे। चव्हाण ने कहा कि उस समय हिंदू संगठनों और सेना के जवानों को बदनाम करने की साजिश रची गई थी, जिसमें कर्नल पुरोहित जैसे सैन्य अधिकारियों को भी नहीं बख्शा गया।

‘हिंदू समाज भी दोषी’

चव्हाण ने यह भी कहा कि उस समय हिंदू समाज ने उनका साथ नहीं दिया। “मैंने अपने चैनल को दांव पर लगाकर हिंदुत्व की लड़ाई लड़ी। सेना के जवानों के लिए भी आवाज उठाई, जिसके लिए कई सैन्य अधिकारियों ने मेरी तारीफ की। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि कांग्रेस शासनकाल में सेना के अधिकारी भी अपने जवानों के लिए आवाज नहीं उठा सके।”

असली गुनहगार अभी बाकी

सुरेश के. चव्हाण ने साक्षात्कार के अंत में कहा कि मालेगांव ब्लास्ट के असली गुनहगारों को पकड़ना अभी बाकी है। उन्होंने मांग की कि तत्कालीन गृहमंत्री और सोनिया गांधी पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने हिंदुत्व को बदनाम करने की साजिश रची। चव्हाण ने जोर देकर कहा, “17 साल बाद कोर्ट ने बेगुनाहों को न्याय दिया, लेकिन असली दोषियों को सजा मिलना अभी बाकी है,”

अनिता चौधरी की गवाही

वरिष्ठ पत्रकार अनिता चौधरी, जो 2008 में सुदर्शन न्यूज के साथ थीं, ने भी उस दौर को याद किया। उन्होंने कहा, “मैं उस समय नई-नई पत्रकारिता में आई थी और सुदर्शन न्यूज में मालेगांव केस की ईमानदारी से कवरेज की थी। उस समय सुदर्शन न्यूज ने बेबाकी से सच्चाई को सामने रखा, जबकि मुख्यधारा के कई चैनल चुप थे या झूठे नैरेटिव को बढ़ावा दे रहे थे।”

फैसले का स्वागत, सवाल बरकरार

मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए सुरेश के. चव्हाण ने कहा कि यह न केवल साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के लिए, बल्कि पूरे हिंदू समाज के लिए न्याय है। हालांकि, उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि 17 साल तक बेगुनाहों को जेल में रखने और हिंदू धर्म को बदनाम करने की साजिश के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा कब मिलेगी?

यह फैसला न केवल मालेगांव केस की सच्चाई को सामने लाया है, बल्कि भारतीय राजनीति और मीडिया के उस दौर को भी उजागर करता है, जब सत्ता और मीडिया के एक वर्ग ने कथित तौर पर मिलकर हिंदू धर्म को निशाना बनाया था। मालेगांव केस का यह अंत एक नए सवाल को जन्म देता है- क्या अब असली गुनहगारों को सामने लाने का समय नहीं आ गया है?

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