मालेगांव, 1 अगस्त 2025: महाराष्ट्र के मालेगांव में 2008 के बम धमाके मामले में गुरुवार को एनआईए की विशेष अदालत ने 17 साल बाद बड़ा फैसला सुनाया। मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया गया। इस फैसले के बाद आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) के रिटायर्ड इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने सनसनीखेज खुलासा किया है। उन्होंने दावा किया कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने के आदेश दिए गए थे, ताकि धमाके को “भगवा आतंकवाद” के रूप में स्थापित किया जा सके।
मुजावर ने बताया कि “भगवा आतंकवाद” की थ्योरी पूरी तरह झूठ थी। उन्हें तत्कालीन जांच अधिकारी परमबीर सिंह और वरिष्ठ अधिकारियों ने मोहन भागवत को फंसाने के निर्देश दिए थे। उन्होंने कहा, “सरकार और कुछ एजेंसियों का मकसद निर्दोष लोगों को फंसाना था।” मुजावर ने यह भी खुलासा किया कि मृत संदिग्धों संदीप डांगे और रामजी कलसंगरा को चार्जशीट में जानबूझकर जिंदा दिखाया गया, जबकि उनकी हत्या हो चुकी थी।
मुजावर ने बताया कि जब उन्होंने इन गलत आदेशों का विरोध किया, तो उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए गए, जिसने उनके 40 साल के करियर को बर्बाद कर दिया। हालांकि, वे अदालत में निर्दोष साबित हुए। उन्होंने पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे पर भी सवाल उठाए और कहा कि उन्हें अब “हिंदू आतंकवाद” की थ्योरी की सच्चाई बतानी चाहिए।
सभी आरोपियों के बरी होने पर खुशी जताते हुए मुजावर ने कहा, “अदालत के फैसले ने एटीएस की फर्जी जांच का पर्दाफाश कर दिया। मुझे खुशी है कि निर्दोष लोग रिहा हुए, और इसमें मेरा छोटा सा योगदान है।” उन्होंने दावा किया कि उनके पास अपने आरोपों के समर्थन में दस्तावेजी सबूत हैं और “भगवा आतंकवाद” का कोई आधार नहीं था।
मालेगांव धमाके में छह लोग मारे गए थे और 101 घायल हुए थे। शुरूआत में एटीएस ने जांच की थी, जिसे बाद में एनआईए को सौंप दिया गया। मुजावर के इन खुलासों ने जांच की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।