मालेगांव, महाराष्ट्र, 31 जुलाई 2025: 17 साल पहले 2008 में हुए मालेगांव बम धमाके के मामले में गुरुवार को एनआईए विशेष कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने भोपाल की पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी एनआईए आरोपों को साबित करने में नाकाम रही। इस फैसले के बाद साध्वी प्रज्ञा भावुक हो गईं और रोते हुए बोलीं, “ये भगवा की जीत है, हिंदुत्व की विजय हुई।”
13 दिन का टॉर्चर, 17 साल का संघर्ष
फैसले के बाद साध्वी प्रज्ञा ने कोर्ट में कहा, “मुझे 13 दिन तक टॉर्चर किया गया, 17 साल तक अपमान सहा। मैं सन्यासी जीवन जी रही थी, लेकिन मुझे आतंकवादी बनाया गया। जिन्होंने भगवा को कलंकित किया, उन्हें दंड मिलेगा।” उन्होंने कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए कहा, “आपने मेरे दुख-दर्द को समझा। मेरा जीवन सार्थक हो गया।”
कर्नल पुरोहित ने भी दी प्रतिक्रिया
इस मामले में आरोपी रहे कर्नल प्रसाद पुरोहित ने बरी होने पर कोर्ट का आभार जताया। उन्होंने कहा, “मैं सेना के लिए काम करता रहा हूं और आगे भी करता रहूंगा। जांच एजेंसियों में कुछ लोग कानून का दुरुपयोग करते हैं, लेकिन देश की बुनियाद मजबूत होनी चाहिए।” पुरोहित के खिलाफ भी कोई ठोस सबूत नहीं मिला, जिसके आधार पर कोर्ट ने उन्हें बरी किया।
क्या था मालेगांव ब्लास्ट?
29 सितंबर 2008 को रमजान के महीने में मालेगांव के मुस्लिम बहुल इलाके में मोटरसाइकिल से बंधे बम में विस्फोट हुआ था। इस धमाके में 6 लोगों की मौत हुई और 95 से अधिक घायल हुए। जांच में दावा किया गया कि बाइक साध्वी प्रज्ञा की थी, जिसके बाद उन्हें 23 अक्टूबर 2008 को गिरफ्तार किया गया। इस मामले में साध्वी को करीब 8 साल जेल में रहना पड़ा। 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को जमानत दी थी।
कोर्ट का फैसला: ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं’
एनआईए कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि आतंकवाद का कोई रंग या धर्म नहीं होता। कोर्ट ने कहा कि न तो बम रखने वाले की पहचान हो सकी, न ही रेकी या धमाके की साजिश के सबूत मिले। साध्वी प्रज्ञा के अलावा कर्नल पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिलकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकरधर द्विवेदी को भी बरी किया गया।
‘हिंदुत्व पर सवाल उठाने वालों को जवाब’
साध्वी प्रज्ञा ने इस फैसले को भगवा और हिंदुत्व की जीत बताते हुए कहा, “जिन्होंने हिंदुओं को आतंकवादी कहा, उन्हें यह फैसला जवाब है।” यह मामला लंबे समय तक सुर्खियों में रहा और अब इस फैसले ने एक बार फिर चर्चा को हवा दे दी है।