वाराणसी, 25 फरवरी 2025, मंगलवार। पंचकोसी शब्द का अर्थ है पांच प्रमुख तीर्थस्थलों की यात्रा करना, और प्रत्येक स्थल का अपना धार्मिक महत्व है। यह परिक्रमा पवित्रता, तपस्या, और भक्ति का प्रतीक है। भक्त इन पांचों स्थानों की परिक्रमा करते हुए भगवान शिव की पूजा और अर्चना करते हैं। इस परिक्रमा का एकमात्र उद्देश्य आत्म-शुद्धि, मोक्ष प्राप्ति, और भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा को प्रकट करना है। महाशिवरात्रि पर 24 घंटे में पूरी की जाने वाली पंचक्रोशी यात्रा मंगलवार की शाम आरंभ हो गई। मणिकर्णिका घाट स्थित चक्रपुष्कर्णी कुंड और गंगा में स्नान कर हजारों नर नारियों ने यात्रा का संकल्प लिया। ये भक्त अगले 24 घंटे में काशी की शास्त्रीय सीमा की परिक्रमा पूरी करेंगे। परंपरानुसार यात्रा पूर्ण होने पर मणिकर्णिका घाट पर ही संकल्प छोड़ कर यात्रा पूर्ण करेंगे। ‘हर-हर महादेव, ‘बोल बम और ‘जय शंकर का घोष करते हजारों नर-नारी सूर्यास्त के बाद से ही यात्रा पथ पर रवाना हुए।
पंचक्रोशी यात्रा के पांच पड़ाव
पंचक्रोशी यात्री का पहला पड़ाव कर्दमेश्वर है जिसके बाद श्रद्धालु दूसरे पड़ाव भीमचंडी पहुंचेंगे। भीमचंडी के बाद तीसरे पड़ाव भीमचंडी रामेश्वर और फिर वहां से शिवपुर जाने के बाद यात्रा के अंतिम पड़ाव कपिलधारा जाएंगे। कपिलधारा से दोबारा मणिकर्णिका घाट पर जाकर यात्रा समाप्त होगी।
त्रेता युग में भगवान श्री राम ने की थी पंचक्रोशी यात्रा
पंचक्रोशी यात्रा की शुरूआत त्रेता युग में भगवान श्री राम ने की थी। श्री राम के पंचक्रोशी यात्रा के पीछे की वजह मानें तो इस यात्रा को मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपने पिता राजा दशरथ को श्रवण कुमार के पिता के श्राप से मुक्ति दालने के लिए किया था। अनजाने में राजा दशरथ के वार से श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई थी। पुत्र के वियोग में श्रवण कुमार के वृध माता-पिता ने राजा दशरथ को पुत्र वियोग में तड़प-तड़प कर मरने का श्राप दिया था। अपने पिता तो इस श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए श्री राम जी ने अपने तीनों भाइयों भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न और पत्नी के सीता के साथ काशी में पंचक्रोशी यात्रा की थी। भगवान राम ने स्वयं रामेश्वरम मंदिर में शिवलिंग स्थापित किया था। दूसरी बार पंचक्रोशी परिक्रमा श्रीराम ने तब की थी, जब रावण वध करने से उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा था। उस दोष से मुक्ति के लिए प्रभु ने पत्नी सीता एवं भाई लक्ष्मण के साथ परिक्रमा की थी। द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञावास के दौरान ये यात्रा द्रौपदी के साथ की थी।