लखनऊ, 8 अप्रैल 2025, मंगलवार। लखनऊ की सड़कें मंगलवार को गूंज उठीं—नारों से, गुस्से से, और एक महान योद्धा के सम्मान की मांग से। समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजीलाल सुमन की ओर से महाराणा सांगा के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी ने क्षत्रिय और सामाजिक संगठनों को सड़कों पर ला दिया। “महासंग्राम यात्रा” के नाम से निकली इस रैली में 1090 चौराहे से लेकर हजरतगंज के जीपीओ तक प्रदर्शनकारियों का हुजूम उमड़ा। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और सांसद सुमन के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई। प्रदर्शनकारियों का साफ कहना था, महापुरुषों का अपमान अब बर्दाश्त नहीं!

पुलिस का कड़ा पहरा, प्रदर्शनकारियों का जोश
पुलिस ने इस यात्रा को रोकने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। 1090 चौराहे पर बैरिकेड्स लगाए गए, वज्र दल तैनात किया गया, और भारी पुलिस बल की मौजूदगी ने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया। लेकिन प्रदर्शनकारियों का हौसला डिगा नहीं। क्षत्रिय संगठनों का आरोप था कि अखिलेश यादव के इशारे पर सांसद रामजीलाल सुमन ने राणा सांगा जैसी शख्सियत को अपमानित करने की हिमाकत की। प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे छतरियां संगठन के बलराज सिंह चौहान ने इसे केवल क्षत्रिय समाज का आंदोलन नहीं, बल्कि हर धर्म और जाति के लोगों का साझा विरोध बताया। उनका कहना था, “देश के वीर सपूतों के खिलाफ आपत्तिजनक बोल अब आम हो गए हैं। संसद तक में ऐसी भाषा का इस्तेमाल हो रहा है। यह महासंग्राम उसका जवाब है।”

विवाद की जड़: संसद में शुरू हुई आग
यह पूरा बवाल 21 मार्च को राज्यसभा में गृह मंत्रालय की समीक्षा के दौरान शुरू हुआ। बहस के बीच रामजीलाल सुमन ने महाराणा सांगा पर विवादित टिप्पणी कर दी, जिसने आग में घी का काम किया। इसके बाद आगरा में करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने सांसद के आवास पर धावा बोल दिया और तोड़फोड़ मचा दी। अखिलेश यादव ने इस हमले की निंदा तो की, लेकिन साथ ही उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाकर पलटवार भी किया।

राणा सांगा: वीरता की जीती-जागती मिसाल
महाराणा संग्राम सिंह, जिन्हें इतिहास राणा सांगा के नाम से जानता है, 1508 से 1528 तक मेवाड़ के शासक रहे। उनकी वीरता की गाथाएं आज भी गर्व से गाई जाती हैं। 1527 में खानवा के मैदान में बाबर से हुए ऐतिहासिक युद्ध में उनके शरीर पर 80 घाव लगे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। कहते हैं, उनका नाम सुनते ही दुश्मन के पसीने छूट जाते थे। ऐसे शूरवीर के खिलाफ टिप्पणी ने लोगों के जख्मों को हरा कर दिया।

सड़क से संसद तक गूंजा विरोध
लखनऊ की यह महासंग्राम यात्रा सिर्फ एक रैली नहीं थी, बल्कि एक संदेश थी—कि इतिहास के नायकों का सम्मान हर कीमत पर बरकरार रहेगा। प्रदर्शनकारियों का जोश और पुलिस की सख्ती के बीच यह साफ हो गया कि यह मुद्दा अब न सड़कों पर रुकेगा, न दिलों में ठंडा होगा। राणा सांगा के सम्मान की यह लड़ाई अब एक जनांदोलन बन चुकी है, और इसका जवाब शायद वक्त और सियासत ही दे पाएंगे।