मुंबई, 15 अप्रैल 2025, मंगलवार। महाराष्ट्र की लाडली बहन योजना, जिसे महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का प्रतीक माना जाता है, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार वजह है योजना में किया गया ताजा बदलाव, जिसने न केवल लाभार्थियों के बीच चर्चा छेड़ दी है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है। सरकार के नए फैसले के तहत, करीब 8 लाख महिलाओं को अब हर महीने 1500 रुपये के बजाय सिर्फ 500 रुपये मिलेंगे। यह बदलाव उन महिला किसानों पर खास तौर से लागू होगा, जो केंद्र सरकार की “प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि” या राज्य की “नमो शेतकरी महासम्मान निधि” जैसी योजनाओं का लाभ उठा रही हैं। आइए, इस बदलाव के पीछे की कहानी, इसके प्रभाव और उभरती राजनीति को समझते हैं।
लाडली बहन योजना: एक नजर में
महाराष्ट्र सरकार ने 2024 में लाडली बहन योजना की शुरुआत की थी, जिसका मकसद था राज्य की आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये की वित्तीय सहायता देकर उनकी जिंदगी आसान बनाना। इस योजना के तहत 21 से 65 वर्ष की आयु वाली विवाहित, विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्त और निराश्रित महिलाएं, जिनके परिवार की वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है, लाभ ले सकती हैं। योजना को लागू करने के लिए सरकार ने 46,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था, और इसे महायुति गठबंधन की सबसे लोकप्रिय योजनाओं में से एक माना गया।
शुरुआत में इस योजना ने लाखों महिलाओं को राहत दी। हर महीने 1500 रुपये की राशि सीधे उनके बैंक खातों में पहुंच रही थी, जिससे उनकी छोटी-मोटी जरूरतें पूरी हो रही थीं। लेकिन अब नए बदलाव ने इस योजना की चमक को थोड़ा फीका कर दिया है।
नया बदलाव: 1500 से 500 रुपये
सरकार ने हाल ही में घोषणा की कि लाडली बहन योजना के तहत अब 1500 रुपये की पूरी राशि सिर्फ उन महिलाओं को मिलेगी, जो किसी अन्य सरकारी योजना का लाभ नहीं ले रही हैं। इसका मतलब है कि अगर कोई महिला पहले से ही किसी दूसरी योजना, जैसे नमो किसान सम्मान निधि (जिसके तहत किसानों को सालाना 6000 रुपये मिलते हैं) का लाभ ले रही है, तो उसे लाडली बहन योजना में सिर्फ 500 रुपये ही दिए जाएंगे।
इस बदलाव का सबसे ज्यादा असर उन 8 लाख महिला किसानों पर पड़ेगा, जो अपने परिवार के साथ खेती-किसानी में लगी हैं और नमो किसान सम्मान निधि का लाभ उठा रही हैं। सरकार का तर्क है कि यह कदम “दोहरे लाभ” को रोकने के लिए उठाया गया है, ताकि सरकारी संसाधनों का समान और न्यायपूर्ण वितरण हो सके। लेकिन यह फैसला कई सवाल खड़े कर रहा है।
प्रभाव: उम्मीदों पर चोट
लाडली बहन योजना की शुरुआत से ही महिलाओं में एक नई उम्मीद जगी थी। 1500 रुपये की मासिक सहायता उनके लिए न सिर्फ आर्थिक मदद थी, बल्कि आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम भी थी। इस राशि से कई महिलाएं अपने बच्चों की पढ़ाई, घर का राशन या छोटे-मोटे कारोबार में मदद कर रही थीं। लेकिन अब 1000 रुपये की कटौती ने उनके बजट को प्रभावित किया है।
उदाहरण के लिए, कोल्हापुर की रहने वाली संगीता, जो अपने पति के साथ खेती करती हैं, बताती हैं, “1500 रुपये से मैं अपने बच्चों की स्कूल फीस और घर का कुछ खर्चा निकाल लेती थी। अब 500 रुपये में क्या होगा? यह तो बस नाम की मदद है।” ऐसी ही निराशा कई अन्य महिलाओं में भी देखने को मिल रही है।
राजनीतिक उबाल
यह बदलाव सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अहम है। विपक्षी दलों, खासकर महाविकास अघाड़ी (एमवीए) ने इस फैसले को “चुनावी वादों का मजाक” करार दिया है। कांग्रेस के प्रवक्ता अतुल लोंढे ने कहा, “महायुति ने पहले लाडली बहन योजना को वोट का हथियार बनाया, और अब इसका लाभ कम करके महिलाओं के साथ धोखा कर रही है।” एमवीए ने अपनी “महालक्ष्मी योजना” को इसका जवाब बताते हुए कहा है कि अगर वे सत्ता में आए, तो महिलाओं को 3000 रुपये महीने की मदद दी जाएगी।
दूसरी ओर, सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन इस बदलाव का बचाव कर रहा है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “हमारी सरकार का मकसद ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंदों तक मदद पहुंचाना है। दोहरे लाभ को रोककर हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि हर पात्र महिला को उसका हक मिले।” सरकार का यह भी दावा है कि जिन महिलाओं को अब 500 रुपये मिलेंगे, वे पहले से ही अन्य योजनाओं से लाभान्वित हैं, इसलिए उनकी कुल आय में कोई खास कमी नहीं आएगी।
नमो किसान सम्मान निधि का कोण
नमो शेतकरी महासम्मान निधि योजना महाराष्ट्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल है, जो केंद्र की पीएम किसान सम्मान निधि की तर्ज पर शुरू की गई है। इसके तहत पात्र किसानों को सालाना 6000 रुपये की अतिरिक्त मदद दी जाती है, जिससे उनकी कुल वित्तीय सहायता (केंद्र और राज्य की योजनाओं को मिलाकर) 12,000 रुपये सालाना हो जाती है। लेकिन अब इस योजना का लाभ ले रही महिला किसानों को लाडली बहन योजना में कटौती का सामना करना पड़ रहा है।
यहां सवाल यह है कि क्या सरकार का यह कदम वाकई संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिए है, या यह बजट की कमी का नतीजा है? कुछ जानकारों का मानना है कि महाराष्ट्र का वित्तीय घाटा (2024 में 1,10,355 करोड़ रुपये) इस तरह के फैसलों को मजबूर कर रहा है।
आगे की राह
लाडली बहन योजना में बदलाव ने निश्चित रूप से एक नई बहस को जन्म दिया है। एक तरफ सरकार इसे पारदर्शिता और समानता का कदम बता रही है, वहीं दूसरी तरफ लाभार्थी और विपक्ष इसे महिलाओं के हक पर डाका मान रहे हैं। इस बीच, यह भी खबर है कि सरकार जल्द ही योजना की समीक्षा कर सकती है, ताकि ज्यादा से ज्यादा पात्र महिलाओं को इसका लाभ मिल सके।
लेकिन सवाल वही है—क्या यह बदलाव वाकई जरूरतमंदों के हित में है, या यह सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय है, जिसका बोझ महिलाओं पर पड़ रहा है? जवाब शायद समय और सरकार की अगली कार्रवाइयों में छिपा है।
लाडली बहन योजना: वादों और वास्तविकता के बीच की खाई
महाराष्ट्र की लाडली बहन योजना, जो कभी महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण थी, अब सवालों के घेरे में है। 8 लाख महिलाओं के लिए 1500 रुपये से 500 रुपये की कटौती न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर रही है, बल्कि राजनीतिक माहौल को भी गर्म कर रही है। ऐसे में जरूरत है एक ऐसी नीति की, जो न केवल वादों को पूरा करे, बल्कि हर जरूरतमंद महिला तक उसका हक पहुंचाए। क्योंकि सशक्तीकरण का मतलब सिर्फ योजना का ऐलान नहीं, बल्कि उसका सही और पूरा लाभ देना भी है।