नई दिल्ली, 27 फरवरी 2025, गुरुवार। संगम नगरी प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हुआ महाकुंभ 26 फरवरी को महाशिवरात्रि स्नान के साथ संपन्न हो गया है। महाकुंभ में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने गंगा में स्नान किया, जो एक बड़ी उपलब्धि है। पीएम मोदी ने अपने ब्लॉग कहा कि महाकुंभ संपन्न हुआ…एकता का महायज्ञ संपन्न हुआ। प्रयागराज में एकता के महाकुंभ में पूरे 45 दिनों तक जिस प्रकार 140 करोड़ देशवासियों की आस्था एक साथ, एक समय में इस एक पर्व से आकर जुड़ी, वो अभिभूत करता है! महाकुंभ के पूर्ण होने पर जो विचार मन में आए, उन्हें मैंने कलमबद्ध करने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रयागराज में संपन्न हुए महाकुंभ को ‘युग परिवर्तन की आहट’ करार दिया है। उन्होंने कहा कि इस आयोजन ने भारत की विकास यात्रा के नए अध्याय का संदेश दिया है, जो ‘विकसित भारत’ की ओर इशारा करता है। प्रधानमंत्री ने महाकुंभ को एकता का महाकुंभ बताया और कहा कि यह आयोजन भारत की जागृत चेतना का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि इस आयोजन में सभी देवी-देवता, संत-महात्मा, बाल-वृद्ध, महिलाएं-युवा सभी एक साथ आए और देश की जागृत चेतना का साक्षात्कार किया।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि यह आयोजन आधुनिक युग के प्रबंधन पेशेवरों और नीति विशेषज्ञों के लिए नए सिरे से अध्ययन का विषय बना है। उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में इस तरह के विराट आयोजन की कोई दूसरी तुलना नहीं है। उन्होंने कहा, पूरी दुनिया हैरान है कि कैसे एक नदी तट पर, त्रिवेणी संगम पर इतनी बड़ी संख्या में… करोड़ों की संख्या में लोग जुटे। इन करोड़ों लोगों को ना औपचारिक निमंत्रण था, ना ही किस समय पहुंचना है, उसकी कोई पूर्व सूचना थी। बस, लोग महाकुंभ के लिए चल पड़े…और पवित्र संगम में डुबकी लगाकर धन्य हो गए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके लिए यह देखना बहुत ही सुखद रहा कि बहुत बड़ी संख्या में भारत की आज की युवा पीढ़ी प्रयागराज पहुंची। उन्होंने कहा कि भारत के युवाओं का इस तरह महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए आगे आना, एक बहुत बड़ा संदेश है। उन्होंने कहा, इससे यह विश्वास दृढ़ होता है कि भारत की युवा पीढ़ी हमारे संस्कार और संस्कृति की वाहक है और इसे आगे ले जाने का दायित्व समझती है और इसे लेकर संकल्पित भी है, समर्पित भी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कुंभ से लौटे लोगों द्वारा त्रिवेणी से लेकर गए जल की कुछ बूंदों ने भी करोड़ों भक्तों को कुंभ स्नान जैसा ही पुण्य दिया और कितने ही लोगों का कुंभ से वापसी के बाद गांव-गांव में जो सत्कार हुआ, जिस तरह पूरे समाज ने उनके प्रति श्रद्धा से सिर झुकाया, वह अविस्मरणीय है। उन्होंने कहा, यह कुछ ऐसा हुआ है, जो बीते कुछ दशकों में पहले कभी नहीं हुआ। यह कुछ ऐसा हुआ है, जो आने वाली कई-कई शताब्दियों की एक नींव रख गया है।
मोदी ने कहा कि प्रयागराज में जितनी कल्पना की गई थी, उससे कहीं अधिक संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंचे। उन्होंने कहा कि इसकी एक वजह यह भी थी कि प्रशासन ने भी पुराने कुंभ के अनुभवों को देखते हुए ही अंदाजा लगाया था लेकिन अमेरिका की आबादी के करीब दोगुने लोगों ने एकता के महाकुंभ में हिस्सा लिया, डुबकी लगाई। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक क्षेत्र में शोध करने वाले लोग करोड़ों भारतवासियों के इस उत्साह पर अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि अपनी विरासत पर गौरव करने वाला भारत अब एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है।
मोदी ने कहा, मैं मानता हूं, यह युग परिवर्तन की वह आहट है, जो भारत का नया भविष्य लिखने जा रही है। उन्होंने कहा कि 144 वर्षों के बाद होने वाले महाकुंभ में ऋषियों-मुनियों द्वारा उस समय-काल और परिस्थितियों को देखते हुए नए संदेश भी दिए जाते थे। उन्होंने कहा, अब इस बार 144 वर्षों के बाद पड़े इस तरह के पूर्ण महाकुंभ ने भी हमें भारत की विकास यात्रा के नए अध्याय का संदेश दिया है। यह संदेश है- विकसित भारत का।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस तरह एकता के महाकुंभ में हर श्रद्धालु, चाहे वह गरीब हो या संपन्न हो, बाल हो या वृद्ध हो, देश से आया हो या विदेश से आया हो, गांव का हो या शहर का हो, पूर्व से हो या पश्चिम से हो, उत्तर से हो दक्षिण से हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी विचारधारा का हो, सब एक महायज्ञ के लिए एकता के महाकुंभ में एक हो गए। उन्होंने कहा, एक भारत-श्रेष्ठ भारत का यह चिर स्मरणीय दृश्य, करोड़ों देशवासियों में आत्मविश्वास के साक्षात्कार का महापर्व बन गया। अब इसी तरह हमें एक होकर विकसित भारत के महायज्ञ के लिए जुट जाना है।
महाभारत के उस प्रसंग को याद करते हुए जिसमें बालक रूप में श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को अपने मुख में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे, मोदी ने कहा कि वैसे ही इस महाकुंभ में भारतवासियों ने और विश्व ने भारत के सामर्थ्य के विराट स्वरूप के दर्शन किए हैं। उन्होंने कहा, हमें अब इसी आत्मविश्वास से एकनिष्ठ होकर, विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए आगे बढ़ना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की ये एक ऐसी शक्ति है, जिसके बारे में भक्ति आंदोलन में संतों ने राष्ट्र के हर कोने में अलख जगाई थी। उन्होंने कहा कि विवेकानंद हों या श्री ऑरोबिंदो हों, हर किसी ने हमें इसके बारे में जागरूक किया था और इसकी अनुभूति महात्मा गांधी ने भी आजादी के आंदोलन के समय की थी।
मोदी ने कहा, आजादी के बाद भारत की इस शक्ति के विराट स्वरूप को यदि हमने जाना होता, और इस शक्ति को सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की ओर मोड़ा होता तो यह गुलामी के प्रभावों से बाहर निकलते भारत की बहुत बड़ी शक्ति बन जाती। उन्होंने कहा, लेकिन हम तब यह नहीं कर पाए। अब मुझे संतोष है, खुशी है कि जनता जनार्दन की यही शक्ति, विकसित भारत के लिए एकजुट हो रही है। नदियों और उनकी स्वच्छता के महत्व को रेखांकित करते हुए मोदी ने लोगों से हर नदी को जीवनदायिनी मां का प्रतिरूप मानते हुए ‘नदी उत्सव’ का आह्वान किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आयोजन आसान नहीं था लेकिन इसके बावजूद यदि कोई कमी रह गई हो तो वह इसके लिए जनता जनार्दन से क्षमा मांगते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश का सांसद होने के नाते वह गर्व से कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में शासन, प्रशासन और जनता ने मिलकर, इस एकता के महाकुंभ को सफल बनाया। उन्होंने कहा, केंद्र हो या राज्य हो, यहां ना कोई शासक था, ना कोई प्रशासक था, हर कोई श्रद्धा भाव से भरा सेवक था। हमारे सफाईकर्मी, हमारे पुलिसकर्मी, नाविक साथी, वाहन चालक, भोजन बनाने वाले, सभी ने पूरी श्रद्धा और सेवा भाव से निरंतर काम करके इस महाकुंभ को सफल बनाया। उन्होंने कहा कि विशेषकर, प्रयागराज के निवासियों ने इन 45 दिनों में तमाम परेशानियों को उठाकर भी जिस तरह श्रद्धालुओं की सेवा की है, वह अतुलनीय है। उन्होंने इसके लिए प्रयागराज सहित उत्तर प्रदेश के निवासियों का आभार जताया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि महाकुंभ के दृश्यों को देखकर राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य को लेकर उनकी आस्था अनेक गुना मजबूत हुई है। उन्होंने कहा कि इससे अभीभूत होकर वह जल्द ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में से प्रथम ज्योतिर्लिंग, श्री सोमनाथ के दर्शन करने जाएंगे और हर भारतीय के लिए प्रार्थना करेंगे। उन्होंने कहा, महाकुंभ का स्थूल स्वरूप महाशिवरात्रि को पूर्णता प्राप्त कर गया है। लेकिन मुझे विश्वास है, मां गंगा की अविरल धारा की तरह, महाकुंभ की आध्यात्मिक चेतना की धारा और एकता की धारा निरंतर बहती रहेगी। महाकुंभ 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के साथ शुरू हुआ था और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन इसका समापन हुआ।