प्रयागराज, 18 जनवरी 2025, शनिवार। प्रयागराज महाकुम्भ में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई है! सनातन धर्म के ध्वज वाहक 13 अखाड़ों में से एक, श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े, में नागा संन्यासियों की नई भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो गई है। गंगा के तट पर स्थित इस अखाड़े में अवधूतों को नागा दीक्षा दी जा रही है, जिससे वे नागा संन्यासी बन सकें। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा नागा संन्यासियों वाला सबसे बड़ा अखाड़ा है, और यहां नागाओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है।
महाकुम्भ 2025: जूना अखाड़े में नागा संन्यासियों की नई भर्ती शुरू! 1500 से अधिक अवधूत को मिलेगी नागा दीक्षा!
भगवान शिव के दिगम्बर भक्त नागा सन्यासी महाकुम्भ में सबका ध्यान अपनी तरफ़ खींचते हैं और यही वजह है कि महाकुम्भ में सबसे अधिक जन आस्था का सैलाब जूना अखाड़े के शिविर में दिखता है। अखाड़ों की छावनी की जगह सेक्टर 20 में गंगा का तट इन नागा संन्यासियों की उस परम्परा का साक्षी बना जिसका इंतजार हर 12 साल में अखाड़ों के अवधूत करते हैं। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री श्री महंत चैतन्य पुरी ने बताया कि शनिवार को नागा दीक्षा की शुरुआत हो गई है। पहले चरण में 1500 से अधिक अवधूत को नागा संन्यासी की दीक्षा दी जा रही है। नागा संन्यासियों की संख्या में जूना अखाड़ा सबसे आगे है जिसमे अभी 5.3 लाख से अधिक नागा संन्यासी हैं।
नागा संन्यासियों की दीक्षा का रहस्य: जानें कैसे बनते हैं नागा संन्यासी!
नागा संन्यासियों की दीक्षा केवल कुंभ में होती है, जहां वे अपने जीवन को पूरी तरह से बदल देते हैं। इस प्रक्रिया में कई चरण शामिल होते हैं। पहले चरण में, साधक को ब्रह्मचारी के रूप में रहना पड़ता है, जहां वह तीन साल तक गुरुओं की सेवा करता है और धर्म-कर्म और अखाड़ों के नियमों को समझता है। इस दौरान, उसकी ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। अगर अखाड़ा और गुरु यह निश्चित कर लेते हैं कि वह दीक्षा देने लायक हो चुका है, तो उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है। महाकुम्भ में, वह ब्रह्मचारी से महापुरुष और फिर अवधूत बनाया जाता है।
महाकुम्भ में गंगा किनारे उसका मुंडन कराने के साथ, उसे 108 बार महाकुम्भ की नदी में डुबकी लगवाई जाती है। अन्तिम प्रक्रिया में उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होते हैं। अखाड़े की धर्म ध्वजा के नीचे अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर उसे नागा दीक्षा देते हैं। दीक्षा लेने वालों को अलग-अलग नाम से जाना जाता है, जैसे कि प्रयाग के महाकुम्भ में दीक्षा लेने वालों को राज राजेश्वरी नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है।