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Wednesday, June 25, 2025

मंदिर की महाभारत: ममता बनाम बीजेपी, पेटेंट की जंग में उलझा जगन्नाथ धाम!

नई दिल्ली, 27 मई 2025, मंगलवार। भारत के दो धार्मिक और सांस्कृतिक गढ़ों—पश्चिम बंगाल और ओडिशा—के बीच एक नया रण छिड़ गया है, और इस बार मैदान में है भगवान जगन्नाथ का पवित्र नाम! यह जंग सिर्फ आस्था की नहीं, बल्कि पेटेंट, ट्रेडमार्क और धार्मिक पहचान की है। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार और बीजेपी शासित ओडिशा के बीच तनातनी का केंद्र है दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ धाम, जिसने दोनों राज्यों को आमने-सामने ला खड़ा किया है।

दीघा के धाम ने मचाया बवाल

पश्चिम बंगाल के तटीय शहर दीघा में भव्य जगन्नाथ धाम का उद्घाटन खुद ममता बनर्जी ने 30 अप्रैल को किया। 250 करोड़ रुपये की लागत से बना यह धार्मिक स्थल अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए चर्चा में है, लेकिन ओडिशा को यह रास नहीं आया। ओडिशा का दावा है कि यह मंदिर पुरी के ऐतिहासिक श्री जगन्नाथ मंदिर की नकल है, और इसका नामकरण उनकी सांस्कृतिक धरोहर पर हमला है।

ओडिशा का पलटवार: पेटेंट की तैयारी

ओडिशा सरकार ने इस विवाद को एक नया मोड़ देते हुए ऐलान किया है कि वह पुरी के जगन्नाथ मंदिर से जुड़े हर नाम और प्रतीक को पेटेंट कराएगी। श्रीमंदिर, महाप्रसाद, श्री जगन्नाथ धाम, श्रीक्षेत्र, और पुरुषोत्तम धाम जैसे नामों को ट्रेडमार्क के दायरे में लाने की योजना है। श्री जगन्नाथ मंदिर मैनेजिंग कमेटी के अधिकारी और आईएएस अरबिंद पाढे ने गर्व से कहा, “12वीं सदी के इस पवित्र मंदिर की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान को हम हर हाल में सुरक्षित रखेंगे। कोई भी इसके नाम का दुरुपयोग नहीं कर सकता!”

ममता का तीखा जवाब

विवाद बढ़ने पर ममता बनर्जी ने ओडिशा सरकार पर पलटवार किया। उन्होंने इसे बीजेपी की सियासी चाल करार देते हुए कहा, “हम पुरी के जगन्नाथ मंदिर का सम्मान करते हैं। दीघा का जगन्नाथ धाम हमारी श्रद्धा का प्रतीक है। ओडिशा वाले इतना जलते क्यों हैं? हम तो उनके आलू की कमी भी पूरी करते हैं!” ममता ने यह भी आरोप लगाया कि पुरी के पुजारियों को दीघा आने से रोका गया, जिससे यह विवाद और गहरा गया।

बीजेपी का कानूनी दांव

ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने ममता सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, “जगन्नाथ मंदिर का नाम और उसकी सांस्कृतिक धरोहर चुराने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी। हम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे और इसकी रक्षा करेंगे।” पुरी में इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन भी हुए, जहां पुजारी, विद्वान और स्थानीय लोग दीघा के मंदिर को जगन्नाथ मंदिर की नकल बता रहे हैं।

आस्था, सियासत और पेटेंट की त्रिवेणी

यह जंग अब सिर्फ मंदिर के नाम तक सीमित नहीं रही। यह धार्मिक आस्था, सियासी ताकत और कानूनी हक की लड़ाई बन चुकी है। एक तरफ ममता बनर्जी दीघा के जगन्नाथ धाम को बंगाल की भक्ति का प्रतीक बता रही हैं, तो दूसरी तरफ ओडिशा अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए पेटेंट और कोर्ट का सहारा ले रहा है।

क्या यह विवाद सिर्फ नाम का है, या इसके पीछे गहरी सियासी जड़ें हैं? क्या पेटेंट की यह जंग भगवान जगन्नाथ की आस्था को और मजबूत करेगी, या इसे सियासत की भेंट चढ़ने देगी? यह देखना दिलचस्प होगा कि इस महाभारत का अंत कोर्ट की चौखट पर होता है, या दोनों पक्ष आपसी समझ से रास्ता निकाल पाते हैं।

तब तक, भगवान जगन्नाथ के भक्त इस सवाल के जवाब का इंतजार कर रहे हैं—जय जगन्नाथ का असली हकदार कौन?

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