बांदा, 29 मार्च 2025, शनिवार। उत्तर प्रदेश की बांदा जेल एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार वजह है माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की वह बैरक, जो पिछले एक साल से सील पड़ी थी। पिछले साल 28 मार्च 2024 को मुख्तार की संदिग्ध हालात में मौत ने पूरे देश का ध्यान खींचा था। अब, कोर्ट के ताजा आदेश ने इस मामले में नया मोड़ ला दिया है। बांदा जेल प्रशासन को निर्देश दिया गया है कि बैरक नंबर 16 को खोला जाए और मुख्तार का सामान उनके परिजनों को सौंपा जाए। इस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए वीडियोग्राफी की जाएगी और मजिस्ट्रेट की निगरानी में सारा काम पूरा होगा। आखिर क्या है इस बैरक का रहस्य और क्यों है यह इतना चर्चा में? आइए, इस कहानी को करीब से समझते हैं।
मौत का रहस्य और सील बैरक की कहानी
मुख्तार अंसारी, पूर्वांचल का वो नाम जो अपराध और सत्ता का पर्याय बन चुका था, पिछले साल 28 मार्च को बांदा जेल में अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था। उनकी मौत की खबर ने तहलका मचा दिया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हार्ट अटैक को कारण बताया गया, लेकिन उनके परिवार ने इसे साजिश करार दिया। परिजनों का आरोप था कि मुख्तार को जेल में धीमा जहर दिया गया, जिसके चलते उनकी जान गई। इन आरोपों ने मामले को और उलझा दिया। मौत के बाद उनकी बैरक को तत्काल सील कर दिया गया था। मजिस्ट्रेट और ज्यूडिशियल जांच के आदेश हुए, ताकि सच सामने आ सके। लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी यह बैरक बंद पड़ी रही, मानो कोई अनसुलझा रहस्य अपने भीतर समेटे हुए हो।
कोर्ट का आदेश: नया अध्याय शुरू
एक साल बाद अब बांदा की निचली अदालत ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने जेल प्रशासन को निर्देश दिया कि मुख्तार की बैरक को खोला जाए और उसमें रखा सामान उनके परिजनों को सौंप दिया जाए। इस प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाने के लिए मजिस्ट्रेट की मौजूदगी अनिवार्य की गई है। इतना ही नहीं, हर कदम की वीडियोग्राफी होगी, ताकि कोई सवाल न उठे। जेल अधीक्षक अनिल कुमार गौतम ने बताया कि बैरक में मुख्तार का सामान अभी भी वैसा ही रखा है, जैसा उनकी मौत के वक्त था। कई बार परिजनों को पत्र लिखा गया, लेकिन कोई सामान लेने नहीं आया। अब कोर्ट के इस आदेश ने उस सील बैरक के ताले खोलने का रास्ता साफ कर दिया है।
जांच का निष्कर्ष और परिजनों का संदेह
मुख्तार की मौत के बाद शुरू हुई मजिस्ट्रेट और ज्यूडिशियल जांच पिछले साल सितंबर में पूरी हो चुकी है। दोनों जांचों में परिजनों के आरोपों की पुष्टि नहीं हुई। रिपोर्ट में साफ कहा गया कि उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई थी और इसमें कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई। इसके बावजूद, मुख्तार का परिवार संतुष्ट नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जो अभी विचाराधीन है। परिवार का कहना है कि जेल प्रशासन ने इलाज में लापरवाही बरती और खाने में जहर देकर उनकी हत्या की गई। ये आरोप भले ही जांच में साबित न हुए हों, लेकिन इन सवालों ने बांदा जेल की सुरक्षा व्यवस्था पर हमेशा उंगलियां उठाईं।
बांदा जेल: माफियाओं का गढ़
1860 में बनी बांदा जेल कई कुख्यात अपराधियों का ठिकाना रही है। 43.50 एकड़ में फैली इस जेल में हाई सिक्योरिटी बैरक और सीसीटीवी की कड़ी निगरानी होती है। मुख्तार को अप्रैल 2021 में पंजाब की रोपड़ जेल से यहां शिफ्ट किया गया था। तब से वह बैरक नंबर 16 में अकेले बंद था। उनकी हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए छह खास सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे, जो सीधे लखनऊ कमांड ऑफिस से जुड़े थे। इसके बावजूद, उनकी मौत ने जेल की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए। अब जब यह बैरक खुलने जा रही है, तो क्या कुछ नए राज सामने आएंगे? यह सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा है।
आगे क्या?
जेल प्रशासन ने कोर्ट के आदेश का पालन शुरू कर दिया है। परिजनों को सूचित कर दिया गया है कि वे सामान लेने की व्यवस्था करें। अगर वे खुद नहीं आते, तो उनके वकील को यह जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इस प्रक्रिया के बाद शायद बांदा जेल का यह अध्याय खत्म हो जाए, लेकिन मुख्तार अंसारी की कहानी और उनकी मौत का रहस्य हमेशा चर्चा में बना रहेगा। यह बैरक, जो एक साल तक सील रही, अब खुलने जा रही है—क्या यह सचमुच अंत है या किसी नए सवाल की शुरुआत? वक्त ही बताएगा।
फिलहाल, बांदा जेल की सलाखों के पीछे छिपी यह कहानी एक बार फिर लोगों के बीच जिज्ञासा और बहस का विषय बन गई है। आप क्या सोचते हैं—क्या यह महज एक औपचारिकता है या इसके पीछे कुछ और छिपा है? अपनी राय जरूर साझा करें।