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Monday, July 7, 2025

यूपी में लंपी की दस्तक, खतरनाक वायरस की चपेट में आए गोवंश, सभी जिलों में अलर्ट

गाय-भैंसों में राजस्थान, गुजरात, पंजाब आदि राज्यों में कहर बरपा रहे लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) वायरस ने उत्तर प्रदेश के कई जिलों में अपनी दस्तक दे दी है। लंपी रोग से सावधानी बरतने के लिए सभी जिलों को अलर्ट किया गया है। खास तौर से गोंडा और बलरामपुर में इस तरह के केस आए हैं जिनकी रिपोर्टिंग भी दर्ज की गई है।

एलएसडी गाय और भैंसों में फैलने वाला एक संक्रामक रोग है तो तेजी से एक दूसरे में फैलता है। इसमें पशु की त्वचा पर गांठें हो जाती हैं। त्वचा खराब हो जाती है। इससे पशुओं में कमजोरी, दुधारू पशु में दूध क्षमता कम होना, गर्भपात, बांझपन, पशुओं के बच्चों में कम विकास, निमोनिया, पेरिटोनिटिस, लंगड़ापन या मौत हो सकती है।

कई अन्य राज्यों में यह वायरस कहर बरपा रहा है और वहां लाखों पशुओं की इससे मौत हो चुकी है। अब इस वायरस ने उप्र में भी दस्तक दी है। उप्र पशुधन विकास परिषद के सीईओ डा. अरविंद कुमार सिंह के मुताबिक गोंडा, और बलरामपुर जिलों में इस बीमारी की रिपोर्ट इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट बरेली (आईवीआरआई) द्वारा की गई है।

सोनभद्र में भी इसका वायरस चिह्नित हुआ है पर वहां से अभी इसकी रिपोर्टिंग नहीं हो पाई है। हालांकि यूपी में अभी केवल गोवंश में इस वायरस का असर दिख रहा है। इसके लिए सभी जिलों में मुख्य पशु चिकित्साधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि अलर्ट रहें। इस वायरस का असर दिखे तो तुरंत ही सूचित करें। बताया जा रहा है कि पश्चिमी यूपी के कई जिलों में भी इस वायरस ने दस्तक दी है।

इस कारण फैलता है यह रोग

यह रोग काटने वाली मक्खियों, मच्छरों एवं जूं केसीधे संपर्क में आने से पशुओं में फैलता है। दूषित दाने, पानी से भी यह फैल सकता है। संक्रमित पशु में कई बार दो से पांच सप्ताह तक लक्षण नहीं दिखते और फिर अचानक यह रोग नजर आ जाता है। खास बात यह है कि यह रोग पशुओं से मनुष्यों में नहीं फैलता है। यह रोग पहली बार 1929 में जाम्बिया में हुआ और अफ्रीकी देशों में फैला

लंपी बीमारी के लक्षण

पशु केशरीर का तापमान 106 डिग्री फारेनहाइट, भूख में कमी, चेहरे, गर्दन, थूथन, पलकों समेत पूरे शरीर में गोल उभरी हुई गांठें, फेफड़ों में संक्रमण के कारण निमोनिया, पैरों में सूजन, लंगड़ापन, नर पशु में काम करने की क्षमता में कमी आ जाती है। चिकित्सक कहते हैं कि इस रोग के फैलने की आशंका बीस प्रतिशत है और मृत्यु दर पांच प्रतिशत तक।

हालांकि एलएसडी का प्रकोप 50 किमी दायरे में तेजी से हो सकता है। बछड़े को मां से संक्रमण हो सकता है। देशी नस्ल केपशुओं की तुलना में क्रास ब्रीड में इसका असर ज्यादा होता है क्योंकि उनकी त्वचा पतली होती है। प्रभावित सांडों के सीमन से भी यह वायरस दूसरे पशु में जा सकता है।

नियंत्रण केउपाय

प्रभावित पशु को अलग करें। मक्खी, मच्छर, जूं आदि को मारें। प्रभावित क्षेत्रों में मवेशी मेले, शो और पशुधन बाजार आदि पर प्रतिबंध लगे। बीमारी ग्रस्त पशु की मृत्यु पर शव को खुला न छोड़ें। उसके जमीन में दबा दें और पूरे क्षेत्र में कीटाणुनाशक दवाओं से सफाई करें। बकरी पॉक्स वैक्सीन (लाइव एटेन्यूसड वायरस वैक्सीन) का उपयोग किया जा सकता है लेकिन केवल स्वस्थ पशु में यह ज्यादा कारगर है। ऐसे पशु के उपचार की सुईं का दोबारा प्रयोग न करें। प्रभावित पशु के पांच किमी में रिंग वैक्सीनेशन कराया जाए। साथ ही पशु की इम्युनिटी बढ़ाने की दवाएं मल्टी विटामिन आदि दिएं जाएं। इससे प्रभावित पशु का दूध पीने से कोई नुकसान नहीं है। हालांकि दूध को पीने से पहले उबाल लेना चाहिए।

लंपी रोग की कुछ जगह सूचना मिली है। हालांकि हमारे यहां स्थिति ज्यादा खराब नहीं है। हम इस रोग से प्रभावित पशुओं में बकरी पॉक्स वैक्सीन (लाइव एटेन्यूसड वायरस वैक्सीन) का प्रयोग कर रहे हैं। उसका सही असर आ रहा है। – डा. इंद्रमणि निदेशक, पशुपालन विभाग उप्र

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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