लखनऊ: रविदास मेहरोत्रा की नमाज और यूपी की सियासत में मची हलचल

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लखनऊ, 26 मार्च 2025, बुधवार। लखनऊ, उत्तर प्रदेश की राजधानी, जहां सियासत और संस्कृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार वजह है समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक रविदास मेहरोत्रा का रमजान के पवित्र महीने में नमाज अदा करना। लखनऊ के मॉल एवेन्यू स्थित दरगाह मियां में आयोजित रोजा इफ्तार के दौरान मेहरोत्रा ने न केवल रोजेदारों के साथ इफ्तारी की, बल्कि उनके साथ नमाज भी पढ़ी। इस घटना ने न सिर्फ सामाजिक मेलजोल की मिसाल पेश की, बल्कि उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार भी गर्म कर दिया।

रमजान के मौके पर एक सियासी संदेश

रमजान का महीना, जो मुस्लिम समुदाय के लिए रोजे, नमाज और इबादत का समय होता है, इस बार सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा के लिए भी खास बन गया। लखनऊ मध्य से विधायक और सपा के कद्दावर नेता मेहरोत्रा ने इस मौके पर एकता और भाईचारे का संदेश देने की कोशिश की। इफ्तार पार्टी में शामिल होकर और नमाज अदा करके उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि धर्म और राजनीति से परे इंसानियत का रिश्ता सबसे ऊपर है। मेहरोत्रा ने खुद कहा, “हम होली भी साथ खेलते हैं और नमाज भी साथ पढ़ते हैं। यही असली भारत है।” उनके इस कदम को जहां कुछ लोग गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल बता रहे हैं, वहीं कुछ इसे सियासी चाल के तौर पर देख रहे हैं।

वायरल वीडियो और शुरू हुई बहस

रविदास मेहरोत्रा का नमाज पढ़ते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। इस वीडियो ने न केवल आम लोगों का ध्यान खींचा, बल्कि राजनीतिक दलों के बीच भी बहस छेड़ दी। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इसे ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ और ‘वोटबैंक की राजनीति’ करार दिया। बीजेपी नेताओं का कहना है कि सपा का यह कदम हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने की कोशिश है। वहीं, मेहरोत्रा ने पलटवार करते हुए कहा, “जो लोग नफरत फैलाते हैं, उनके लिए यह संदेश है कि हर धर्म का सम्मान होना चाहिए। मैं मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा और इफ्तारी में जाता हूं। बीजेपी को इससे क्या आपत्ति है?”

मेहरोत्रा का जवाब और उनका इतिहास

इस विवाद पर रविदास मेहरोत्रा ने साफ कहा कि नमाज पढ़ने का वीडियो उन्होंने अपने अकाउंट से शेयर नहीं किया। उनका मकसद सिर्फ यह था कि हर धर्म के लोग साथ रहें। मेहरोत्रा का राजनीतिक इतिहास भी संघर्ष और जनसेवा से भरा रहा है। वह 250 से ज्यादा बार जेल जा चुके हैं और भ्रष्टाचार, महंगाई जैसे मुद्दों पर सड़कों पर उतरते रहे हैं। उनके पास ऐसे कई वीडियो हैं, जहां वह जागरण और गुरुद्वारे में भी नजर आते हैं। ऐसे में उनका यह कदम उनके व्यक्तित्व का हिस्सा लगता है, न कि महज एक सियासी स्टंट।

आगे क्या?

रविदास मेहरोत्रा की नमाज ने यूपी की सियासत में एक नया रंग भर दिया है। जहां एक तरफ यह कदम सपा के लिए अल्पसंख्यक वोटों को साधने का जरिया बन सकता है, वहीं बीजेपी इसे हिंदू-मुस्लिम तनाव का मुद्दा बनाकर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर सकती है। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या जनता इसे सांप्रदायिक एकता के तौर पर देखेगी या फिर वोट की राजनीति के चश्मे से? आने वाला वक्त ही बताएगा कि मेहरोत्रा का यह कदम सियासी शतरंज में कितना कारगर साबित होता है।

फिलहाल, लखनऊ की गलियों से लेकर सोशल मीडिया तक, रविदास मेहरोत्रा और उनकी नमाज की चर्चा हर जुबान पर है। यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि भारत की राजनीति में धर्म और संस्कृति का मेल कितना जटिल और आकर्षक हो सकता है।

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