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Thursday, April 18, 2024

*लेफ्ट-लिबरल गिरोह के ब्रम्हास्त्र* *से होती है भाजपा की जीत*

*विष्णुगुप्त*

 

लेफ्ट-लिबरल जमात-गिरोह भाजपा की जीत की शक्ति बन गयी है। अगर आपको विश्वास नहीं होता है तो फिर त्रिपुरा का नगर निगम चुनाव का परिणाम देख लीजिये। तमाम आशंकाओं के बावजूद भी भाजपा ने नगर निकाय चुनावो में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, लेफ्ट, कांग्रेस और टीएमसी की राजनीतिक इच्छाओं को धाराशायी कर दी है। मोदी उदय के बाद के लोकसभा और विधान सभा चुनावों के परिणाम भी देख लीजिये। साफ पता चल जायेगा कि लेफ्ट और लिबरल जमात अपनी रणनीतिक गलतियों को कभी भी न तो स्वीकार करने के लिए तैयार होती हैं और न ही अपनी रणनीतिक गलतियों के दुष्परिणामों से सबक लेती हैं। इसका दुष्परिणाम क्या होता है? इसका दुष्परिणाम यह होता है कि भाजपा अपनी तमाम बुराइयों और विफलताओं के कारण भी जीत जाती है। मोदी उदय के बाद चुनावी जीतों में भाजपा की अपनी उपलब्धि और कमर्ठता का योगदान बहुत ही कम है। भाजपा जरूर केन्द्रीय और राज्य सरकारों मे सत्ता में बैठती रही है पर वह जनता की सर्व इच्छाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करती है, जनता के नजदीक भाजपा कभी भी नहीं रहती है, जनसमस्याओं के प्रति भाजपा का नजरिया भी कोई उल्लेखनीय नहीं होता है। इसके अलावा भाजपा के लोग बड़े-बड़े लोगों, कारपोरेट लोगो, प्रोफेशनल लोगों, उद्योग घरानों से ज्यादा संबंध रखती है, उनके कार्य भी करती है। लेकिन गरीब,फटेहाल और जरूरतमंद लोगों से भाजपा जुड़ती ही नहीं, इसके नेता जब अपने छोटे कार्यकर्ताओं से मिलते तक नहीं है तो फिर भाजपा के नेता आम आदमी जिनके कपड़ें गंदे होते हैं, जिनके पास फैशनैबुल गाड़ियां नहीं होती है, जिनके पास बड़ी-बड़ी कोठियां नहीं होती है और झुग्गी झौपड़ियों में रहते हैं से कैेसे मिलेंगे? फिर भी गंदे कपड़े में रहने वाले लोग, झुग्गाी झौपड़ियों में रहने वाले लोगों, गांवों में रहने वाले लोगों, जंगलों में रहने वाले लोगों के लिए भाजपा पहली पंसद क्यों बन जाती है? इस पर लेफ्ट-लिबरल जमात-गिरोह कभी भी सोचने और विचार करने के लिए तैयार ही नहीं होते हैं। लेफ्ट-लिबरल गिरोह का अहंकार है कि वे जो सोचते हैं, वह ही सही है, उनकी सोच से अलग विचार रखने वाले लोग सांप्रदायिक हैं, अनैतिक हैं और संशोधनवादी हैं।
लेफ्ट और लिबरल जमात ऐसे तो दो तरह की धाराएं हैं। पर इन दोनों धाराओं की मानसिकताएं, सोच और सक्रियताएं भी एक ही तरह की हैं। लेफ्ट धर्म को अफीम मानता है, कार्ल माक्र्स ने धर्म को अफीम कहा था। कार्ल माक्र्स की इस थ्योरी को लेकर कम्युनिस्ट आज तक आग्रही हैं, अभियानी हैं। पर भारतीय कम्युनिस्ट इस थ्योरी के प्रति एकांगी दर्शन ही रखते हैं, जिसके कारण ये थ्योरी और दर्शन उनके लिए आत्मघाती साबित हो रहा है। लेफ्ट अपने पुराने और असफल दर्शन में कोई संशोधन नहीं चाहते हैं और संशोधन के पक्षधर लोगों को संशोधनवादी और पूंजीपतियों का दलाल कहकर खिल्ली उड़ाते हैं, अपमानित करते हैं। यहां पर लेफ्ट जमात, इस्लाम के अनुयायियों की श्रेणी में ही खड़़ी हो जाती हैं। इस्लाम के अनुयायी भी यही कहते हैं कि उनकी पुस्तक में जो बातें हैं कभी भी खारिज और अस्वीकार होने वाली नही हैं। लिबरल जमात में कांग्रेस और जाति-क्षेत्र, खानदान पर आधारित पार्टियां हैं। लिबरल जमात को दृष्टि देने वाले इस्लामिक सक्रियतावादी है। लिबरल राजनीतिक गिरोह इस्लामिक सक्रियतावादियों की रणनीति और एजेंडे के आधार पर सक्रिय होता है, संचालित होता है। इस लिबरल गिरोह की राजनीति इस्लामिक मूल्यों को संतुष्ट करती है। इस्लामिक सक्रियतावादियों की यही रणनीति होती है कि लिबरल जमात इस्लाम का संतुष्ट करते रहें और हिन्दुत्व में विश्वास रखने वाले लोगों के खिलाफ घृणा और आलोचना का अभियान चलाते रहें।
त्रिपुरा में ही क्यों बल्कि हर चुनाव में ऐसा ही होता है। लोकसभा और विधान सभा चुनावों में लेफ्ट-लिबरल गिरोह हिन्दुत्व को निशाना बनाना नहीं भूलते हैं, हिन्दुत्व को घृणा और तिरस्कार का विषय बनाते हैं और इस्लामिक सक्रियताओं से मिलकर इस्लामिक मूल्यों को संतुष्ट करते हैं। त्रिपुरा में भी ऐसा ही राजनीतिक-मजहबी खेल खेला गया। मुसलमानों की हिंसा और उनकी मजहबी रणनीति को नजरअंदाज किया गया। पर हिन्दुओं के खिलाफ न केवल राजनीतिक स्तर पर अभियान चलाया गया बल्कि हिन्दुओं को दंगाई घोषित करने के लिए भी कोई कसर नहीं छोड़ा गया। लेफ्ट ही नहीं बल्कि कांग्रेस और टीएमसी भी इस विषय पर साथ-साथ हो गये। इसके अलावा इस्लामिक तत्वों ने त्रिपुरा में दंगे की झूठी रिपोर्ट जारी करने का काम किया, इस्लामिक तत्वों ने दंगे की रिपोर्ट जो जारी की थी वह आधारहीन भी थी, अफवाहपूर्ण थी और एकांगी भी थी, सिर्फ हिन्दुओं को ही दंगाई बताने का प्रयास किया गया था। त्रिपुरा की भाजपा की सरकार ने लेफ्ट, कांग्रेस और इस्लामिक तत्वांें के द्वारा दंगे की जारी रिपोर्ट पर संज्ञान लिया। संज्ञान लेने के बाद सच्चाई सामने आ गयी। भाजपा की सरकार ने लेफ्ट-लिबरल गिरोह की दंगे की रिपोर्ट को रख कर जनता को बता दिया कि हिन्दुओं को बर्बर, दंगाई और हिंसक बताने की साजिश हुई है। सोशल मीडिया पर हिन्दुओं को दंगाई कहने, हिन्दुओं को बर्बर कहने, मुसलमानों का सफाया करने के आरोप पर भी संज्ञान लिया। त्रिपुरा की भाजपा सरकार ने लेफ्ट-लिबरल गिरोह के साथ ही साथ कई इस्लामिक तत्वों को भी कानून के धेरे में ले लिया। लेफ्ट-लिबरल गिरोह और इस्लामिक तत्वों के खिलाफ झूठी खबरें फैलाने, अफवाह फैलाने, हिंसा फैलाने के लिए उकसाने जैसी करतूत पर मुकदमा दर्ज कर लिया। मुकदमे के बाद इन सबों की गिरफ्तारी की संभावना बढ़ गयी थी। गिरफ्तारी के खिलाफ इन तत्वों को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाने के लिए विवश होना पड़ा था।
एकांगी दांव उल्टा पड़ा। इनकी रणनीति की सोच भी आत्मघाती साबित हुई। वास्तव में लेफ्ट और लिबरल पार्टियां जैसे कांग्रेस और टीएमसी पूरी तरह से इस्लामिक तत्वों के झासे में आ गयी। इस्लामिक तत्वों ने इन्हें समझा दिया कि नगर निगम चुनावों में मुसलमानों की एकजुटता से उनकी जीत होगी, हिन्दू भाजपा के प्रति एकजुटता नहीं दिखायेंगे। मुस्लिम वोटों के कारण लेफ्ट के साथ ही साथ कांग्रेस और टीएमसी भी हिन्दू विरोध का खेला खेल गयी।
लेफ्ट तो पहले से ही आत्महत्या के मुहाने पर खड़ा है। ये सफाये के कागार पर खड़े हैं, फिर भी इनकी समझ नहीं आ रही है। पर कांग्रेस और टीएमसी क्यों लेफ्ट के रास्ते पर चल रही है। खासकर टीएमसी के लिए एक बड़ा आधात भी है। टीएमसी ने त्रिपुरा में खूब जोर लगायी थी। टीएमसी ने अपने दर्जनों नेताओं को त्रिपुरा में लगायी थी। टीएमसी पश्चिम बगाल में ममता बनर्जी की सफलता का जोर-शोर से प्रचार कर रही थी। टीएमसी पश्चिम बंगाल का ही रवैया त्रिपुरा में अपनायी थी। इसलिए टीएमसी ने भी झूठी मुस्लिम उत्पीड़न की खबरें फैलायी थी और भाजपा को सांपदायिक भी कह रही थी। भाजपा को सांप्रदायिक क्यों कहतर हैं विरोधी पार्टियां। इसलिए कि भाजपा लेफ्ट-लिबरल गिरोह की एकांगी सांप्रदायिकता के दर्शन को नहीं मानता और भाजपा का झुकाव हिन्दुत्व के प्रति है। हिन्दुओं के उत्पीड़न और घृणा की घटनाओं पर भाजपा अभियानी तौर पर संज्ञान लेती है। इसलिए भाजपा को सांप्रादायिक कहने से हिन्दू वोटर नाराजगी प्रर्कट करते हैं। टीएमसी को यह समझ नहीं है कि पश्चिम बंगाल का राजनीतिक प्रयोग त्रिपुरा, बिहार, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में सफल नहीं होगा। हर राज्यों की अलग-अलग सोच और समीकरण हो सकते हैं। गुजरात की जनता हिन्दुत्व प्रिय है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस गुजरात में नरेन्द्र मोदी को संहारक और दंगाई कह-कह कर भी पराजित नही ंकर पाये बल्कि इसी सूत्र से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा भी दिये।
त्रिपुरा में भाजपा की जीत उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और प्रियंका के लिए भी एक संदेश है। उत्तर प्रदेश में टीएमसी और लेफ्ट की कोई भूमिका नहीं है, कोई जनाधार नहीं है। पर कांग्रेस अपनी जमीन जरूर तलाश रही है। प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का मोर्चा संभाली हुई है। कांग्रेस प्रियंका गांधी के चमत्कार से अपनी खोयी हुई जमीन पाना चाहती है। लेकिन कांग्रेस के सामने वही समस्या यहां भी है। कांग्रेस अति हिन्दू विरोध से अलग नहीं हो पा रही है। सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी का हिन्दू विरोधी मानसिकताओं से प्रियंका गांधी के प्रयास बेकार साबित होते दिख रहे हैं। मायावती काफी संयम दिखा रही है। मायावती अति हिन्दुत्व के विरोध से अलग हो गयी है। गुण-दोष के आधार पर मायावती के बयान आ रहे हैं। यह मायावती की सही राजनीति कही जा सकती है। लेकिन अखिलेश यादव चूक रहे हैं, ये भाजपा की रणनीति में ही फंसते जा रहे हैं। इनकी जिन्नावाली मानसिकताएं आत्मघाती बनेगी। जिन्ना के प्रति अति प्रेम दिखाकर अखिलेश यादव ने भाजपा को मजबूत कर दिया। इधर अखिलेश यादव ने अयोध्या का नाम फिर से बदलने का बयान दिया है। अयोध्या और राममंदिर विरोध को हिन्दू समर्थक वोटर कैसे स्वीकार करेंगे? अखिलेश यादव मुस्लिम वोटरों के चक्कर मे हिन्दू मतों से हाथ में घोयेंगे।
त्रिपुरा के संदेश को लेफ्ट-लिबरल गिरोह आत्मसात करें तो फिर उनकी ही राजनीति चमकेगी, भाजपा की चुनावी जीत प्रभावित होगी, भाजपा की चुनावी जीत पर प्रश्नचिन्ह खड़ा होगा। पर लेफ्ट-लिबरल गिरोह तो अति मुस्लिम प्रेम में हिन्दुओं को भाजपा के पाले मे भेजने की आत्मघाती राजनीति छोड़ने वाला कहां है?

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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