वाराणसी, 1 अगस्त 2025: काशी, जहां गंगा की लहरें और मंदिरों की घंटियां संस्कृति की गाथा गाती हैं, वहां शिक्षा का मंदिर बदहाली का दंगा झेल रहा है। लहरतारा के प्राथमिक विद्यालय (पूर्वोत्तर रेलवे-छित्तूपुर) में बच्चे न तो किताबों की रोशनी में भविष्य देख पा रहे हैं, न ही बारिश की बूंदों से बच पा रहे हैं। टीन शेड की छत टपकती है, किताब-कॉपी भीगती हैं, और बच्चों का मन पढ़ाई से भटकता है।
1950 का स्कूल, आज भी टीन शेड में
1950 में स्थापित यह विद्यालय कभी रेलवे कर्मियों के बच्चों की हंसी-खुशी का ठिकाना था। आज यहां आसपास के गरीब परिवारों के 112 बच्चे पढ़ने आते हैं। दो टीन शेड कमरों और एक बरामदे में दो स्कूल—प्राथमिक विद्यालय (पूर्वोत्तर रेलवे-छित्तूपुर) और राजकीय प्राथमिक विद्यालय (शिवपुरवा)—चल रहे हैं। शिवपुरवा का स्कूल जर्जर होने के बाद किराए के भवन से यहां विलय कर दिया गया, लेकिन सुविधाएं? वह तो बस कागजों में सिमटकर रह गईं।
बरसात में पढ़ाई ठप, शौचालय तक का अभाव
बरसात आते ही टीन शेड की छत चूने लगती है। बच्चे और किताबें भीग जाते हैं, और तेज बारिश में कक्षाएं रोकनी पड़ती हैं। स्कूल में लड़के-लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं, सिर्फ दिव्यांगों के लिए बना एक शौचालय है, जिसे सभी इस्तेमाल करते हैं। डेढ़ बिस्वा के छोटे से परिसर में खेल का मैदान तो दूर, बच्चों के बैठने की जगह भी मुश्किल से है।
एक कमरे में दो कक्षाएं, भटकता ध्यान
कक्षा पांच की पायल, सुनैना, सुनीता और प्रिया बताती हैं, “एक ही कमरे में दो कक्षाएं चलती हैं। जब एक टीचर पढ़ाते हैं, तो दूसरी कक्षा की आवाज से ध्यान भटक जाता है।” सात शिक्षक—एक प्रधानाध्यापिका, दो सहायक अध्यापक, और चार शिक्षामित्र—इस छोटे से स्कूल में तैनात हैं, लेकिन उनके बैठने की भी जगह नहीं। प्रधानाध्यापिका को बरामदे में जगह बनानी पड़ती है।
रेलवे की जमीन, निर्माण में अड़चन
स्कूल रेलवे की जमीन पर है, जहां बिना अनुमति निर्माण संभव नहीं। टीन शेड की मरम्मत के लिए रेलवे को कई पत्र लिखे गए, लेकिन जवाब नहीं मिला। हाल में प्रधानाध्यापिका ने प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर डीआरएम तक को मेल भेजा, मगर उम्मीद अब भी धुंधली है। खंड शिक्षा अधिकारी स्कंद गुप्ता कहते हैं, “रेलवे की अनुमति के बिना कुछ नहीं हो सकता।”
सपनों का स्कूल, हकीकत का बोझ
शिक्षा का अधिकार भले ही संविधान की किताबों में चमकता हो, लेकिन इस स्कूल के बच्चे और शिक्षक बदहाल व्यवस्था से जूझ रहे हैं। अभिभावक और बच्चे पक्का भवन चाहते हैं, जहां बारिश में पढ़ाई न रुके, जहां खेलने की जगह हो, और जहां शिक्षा सम्मानजनक माहौल में मिले। सवाल यह है—क्या इन बच्चों के सपनों को टीन शेड की टपकती छत से आजादी मिलेगी?
यह कहानी सिर्फ एक स्कूल की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की है, जो बच्चों के भविष्य को टीन शेड की छत तले भीगने दे रही है।