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Friday, May 9, 2025

पद्मश्री बाबा शिवानंद का अंतिम विदाई: राजकीय सम्मान और श्रद्धा का संगम

वाराणसी, 5 मई 2025, सोमवार। काशी के हरिश्चंद्र घाट की पवित्र भूमि पर सोमवार शाम 5:55 बजे, जब सूरज ढल रहा था, तब पद्मश्री बाबा शिवानंद की अंतिम यात्रा अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंची। 128 वर्ष की अविश्वसनीय जीवन यात्रा के बाद, इस युगपुरुष का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ संपन्न हुआ। उनके छह समर्पित शिष्यों ने मिलकर मुखाग्नि दी, और घाट पर मौजूद हर आंख में श्रद्धा और सम्मान के आंसू थे।

बाबा शिवानंद, जिन्हें देश की सबसे अधिक उम्र में पद्मश्री सम्मान प्राप्त करने का गौरव हासिल था, शनिवार को वाराणसी के BHU स्थित सर सुंदरलाल अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु ने न केवल उनके अनुयायियों, बल्कि पूरे देश को एक महान संत और योगी के नुकसान का दुख दिया।

अंतिम यात्रा और विवाद का साय

बाबा की अंतिम यात्रा की शुरुआत सुबह उनके आश्रम से हुई, लेकिन यह यात्रा बिना उतार-चढ़ाव के नहीं थी। उनके शिष्यों और प्रशासन के बीच अंतिम संस्कार के स्थान को लेकर मतभेद उभर आए। शिष्य बाबा को मिट्टी में समाधि देने की इच्छा रखते थे, जबकि प्रशासन मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार चाहता था। आठ घंटे तक चली तीन दौर की बैठकों के बाद, अंततः सभी की सहमति से हरिश्चंद्र घाट को चुना गया। शिष्यों ने अपनी दो इच्छाएं रखी थीं: पहली, बाबा को समाधि देना, और दूसरी, हरिश्चंद्र घाट पर अंतिम संस्कार। आखिरकार, दूसरी इच्छा को मान्यता मिली।

आगामी आयोजन और बाबा की विरासत

बाबा के शिष्यों ने बताया कि 12 दिन बाद उनकी आत्मा की शांति के लिए एक भव्य महायज्ञ का आयोजन होगा। इसके बाद, एक विशाल भंडारे का प्रबंध किया जाएगा, जिसमें हजारों लोग शामिल होंगे। बाबा का अस्थि कलश उनके आश्रम में दर्शन के लिए रखा जाएगा, विशेष रूप से उन भक्तों के लिए जो दूर-दराज से आएंगे। यह अस्थि कलश बाबा के प्रति उनकी श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक बनेगा।

एक युग का अंत, एक प्रेरणा का शाश्वत जीवन

128 वर्ष तक जीवन के हर रंग को देखने वाले बाबा शिवानंद केवल एक संत ही नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा थे। उनकी सादगी, तपस्या और मानवता के प्रति समर्पण ने लाखों लोगों के दिलों को छुआ। पद्मश्री सम्मान उनके योगदान का केवल एक छोटा-सा प्रतीक था। उनकी विदाई भले ही शारीरिक रूप से हो गई हो, लेकिन उनकी शिक्षाएं और आध्यात्मिक विरासत हमेशा जीवंत रहेंगी।

हरिश्चंद्र घाट पर जली उनकी चिता की लपटें भले ही ठंडी हो जाएं, लेकिन बाबा शिवानंद का प्रकाश युगों-युगों तक लोगों के मन को रोशन करता रहेगा।

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