जब ना इस्लाम था.. ना ईसाई धर्म था, महाभारत काल के वार्णावर्त गांव में लाक्षागृह या कब्रिस्तान, 12 सितंबर को आएगा कोर्ट का फैसला!
उत्तर प्रदेश का बागपत जिला नोएडा शहर से कुछ ही दूरी पर है। बरनावा इस जिले की पौराणिक नगरी है। बरनावा नोएडा से सिर्फ 64 किमी दूर है। इसी बरनावा में महाभारत घटित होने के जीते जागते प्रमाण मौजूद है। यहां एक विशाल टीला है, जिसको लाक्षागृह के नाम से जाना जाता है। बरनावा में इस बात के भी पुख्ता प्रमाण है कि कौरवों के बड़े भाई दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए इस स्थान पर ये संरचना बनवाई थी। मोदीनगर में मुल्तानी मल परास्नातक कॉलेज में इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर कृष्णकांत शर्मा के अनुसार, पांडवों को मारने के लिए कौरवों ने ‘लक्षगृह’ का निर्माण करवाया था। लेकिन पांडवों ने इससे बचने के लिए पास के एक सुरंग का इस्तेमाल किया। बरनावा का पुराना नाम वरनावत था और यह उन 5 गांवों में से एक है जिसे पांडवों ने निष्कासन खत्म के बाद कौरवों से मांगा था।
52 सालों से कोर्ट में चल रहा मुकदमा
तो वहीं, अयोध्या के राम मंदिर और वाराणसी के ज्ञानवापी जैसा एक और मजहबी विवाद न्यायालय में पहुंचा है। यह विवाद है, महाभारत काल के लाक्षागृह की भूमि पर मजार और कब्र बनाने का, उस प्रॉपर्टी को हिंदू पक्ष वापस पाना चाहता है। इसके लिए दोनों पक्षों की बागपत न्यायालय में सुनवाई हुई है। बता दें, बरनावा गांव स्थित प्राचीन टीले को लेकर हिन्दू और मुस्लिम पक्ष के बीच पिछले 52 सालों से कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। हिंदू पक्ष मजार को लाक्षागृह का हिस्सा बता रहा है। जबकि मुस्लिम पक्ष इस हिस्से को बदरुद्दीन की मजार और उसके आस पास उनके अनुयायी की कब्र बताता है। इस मामले को लेकर 1970 में मुकीम खा ने मेरठ सिविल कोर्ट में वाद दायर किया था, जो अब तक बागपत कोर्ट में चल रहा है।
ऐसे हैं हिंदू मुस्लिम पक्ष के दावे
मुस्लिम पक्ष की मानें तो बरनावा गांव निवासी मुकीम खां ने वर्ष 1970 में वाद दायर करते हुए मेरठ अदालत से मालिकाना हक की मांग उठाई थी। अलग जिला बनने के बाद ये मामला बागपत कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था, जो अब सिविल कोर्ट में विचाराधीन है। मुकीम खान ने टीले पर बदरुद्दीन शाह की दरगाह और मजार होने का दावा किया था। जो सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बतोर वक्फ प्रोपर्टी रजिस्टर्ड है। मामले में ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था। जिसमें आरोप लगाया था की कृष्ण दत्त इसे खत्म कर हिंदुओं की तीर्थ बनाना चाहते हैं। जबकि कृष्णदत्त ने दावा किया था, की प्राचीन टीला और मजार लाक्षा गृह का हिस्सा हैं। जहां कोई भी मजार और कब्रिस्तान कभी नहीं रहा। बता दें, महाभारत ग्रंथ में वारणावत का इतिहास दर्ज है। वारणावत में ही पांडवों को जलाकर मारने की साजिश रची गई थी, इसके लिए शकुनी और दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। वो घटना द्वापर युग की थी और अब तक उसे हजारों वर्ष हो चुके हैं। हिंदू अनुयायियों का कहना है कि मुस्लिमों ने उसी जमीन पर बदरुद्दीन की मजार बनवा दी थी, और उसे वे अब कब्र की जमीन कहते हैं।
12 सितंबर को फैसला आ सकता है
टीले की कुछ भूमि का एएसआई सर्वेक्षण ने अधिग्रहण कर रखा है। शेष भूमि पर गांधी आश्रम समिति द्वारा महानद संस्कृत विद्यालय का संचालन हो रहा है। पिछले 50 साल से चल रहे विवाद का अब निपटारा होने की उम्मीद है। अब मामला फैसले की सुनवाई की तरफ बढ़ रहा है। जिसमें 12 सितंबर को फैसला होना तय माना जा रहा है।
‘लाक्षागृह में ही रची गई थी पांडवों को जलाकर मारने की साजिश’
हिंदू अनुयायी मानते हैं कि महाभारत काल के समय में बागपत में कौरवों ने पांडवों को जलाने की साजिश रची थी, इसके लिए शकुनी और दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। हालांकि, पांडव चतुराई से एक गुफा के रास्ते बच निकले थे। आज भी उस गुफा का वजूद बताया जाता है।