प्रयागराज, 14 जनवरी 2025, मंगलवार। कुंभ महापर्व….जब बृहस्पति वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मकर राशि में, तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ के मेले में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती हैं। इस बार महाकुंभ मेला 13 जनवरी से शुभारंभ हुआ, 25 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि के दिन तक चलेगा। आज महाकुंभ महापर्व का दूसरा दिवस है और कल यानि 13 जनवरी को पहला शाही स्नान था। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन स्नान करने से न सिर्फ इस जन्म के, बल्कि पिछले जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं और पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है।
कुंभ की उत्पत्ति और इतिहास पौराणिक कथाओं में मिलता है। कुंभ अमृत मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है जहां सतयुग में देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ था। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्रॉप के कारण इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हें दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन कर अमृत निकालने को कहा। भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता, दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के काम में लग गए। अमृत कलश के निकलते ही देवताओं के इशारे पर इंद्रपुत्र जयंत अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गया।
उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत कलश को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ लिया। तत्पश्चात, अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में 12 दिन तक अविराम युद्ध होता रहा। इस परस्पर मार-काट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश की अमृत बूंदे गिरी थी। अमृत प्राप्ति के लिए देव दानवों के बीच 12 दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के 12 वर्षों के समान होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं शेष आठ कुंभ देव लोक में होते हैं। जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं।