निशिकांत मंडलोई
4 अगस्त, 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में गांगुली परिवार में जन्मे आभास कुमार गांगुली, यानी किशोर कुमार, एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने अपनी बेमिसाल गायकी और अभिनय से भारतीय सिनेमा को अनमोल धरोहर दी। आज, उनके 96वें जन्मदिन पर, उनकी मखमली आवाज और जिंदादिली भरा अंदाज हमें उनकी उपस्थिति का अहसास कराता है। किशोर दा के गीत आज भी हवाओं में गूंजते हैं, जैसे उन्होंने कहा था, “हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम…”
गायकी और अभिनय का अनूठा संगम
किशोर कुमार का जीवन एक ऐसी किताब है, जिसके हर पन्ने पर प्रतिभा, जुनून और जिंदादिली की कहानियां बिखरी हैं। उनकी गायकी में जादू था, जो दिल को छू लेता था, और उनका अभिनय इतना स्वाभाविक कि दर्शक हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते या गम में डूब जाते। बढ़ती का नाम दाढ़ी हो या चलती का नाम गाड़ी, किशोर दा ने हर किरदार को जीवंत कर दिया। उनके जीवन का सूत्र था—गंभीर बात को भी हंसी में कह देना। यही उनकी कला थी, यही उनकी पहचान।
कहा जाता है कि हर जीनियस में थोड़ा सा सिरफिरापन होता है। किशोर दा इसका जीता-जागता उदाहरण थे। उनका विनोद बोध इतना तीव्र था कि वे त्रासदी और कॉमेडी के बीच सहजता से पुल बांध देते थे। उनके गीतों में गहराई थी, जो सुनने वाले को भावनाओं के सफर पर ले जाती थी। चाहे जिंदगी के सफर में की उदासी हो या पल पल दिल के पास का रोमांस, किशोर दा हर भाव को अपनी आवाज में पिरो देते थे।
खंडवा के गौरीकुंज में एक यादगार मुलाकात
28 अक्टूबर, 1986 को खंडवा के गौरीकुंज में किशोर दा से मुलाकात का अवसर मिला, जब वे मुंबई की भागदौड़ से तंग आकर अपने जन्मस्थान लौटे थे। उस दिन उनकी सादगी और खुशमिजाजी ने दिल जीत लिया। गौरीकुंज के चौकीदार ने हमें अंदर बुलाया, और किशोर दा ने बड़े ही अपनत्व से लकड़ी की बेंच पर बैठने का इशारा किया। उनकी बातों में सहजता थी, लेकिन फिल्मी पत्रकारों के प्रति उनकी नाराजगी भी साफ झलकी। “प्यार से प्यार, लात से लात,” कहकर उन्होंने हंसते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने फिल्मी पत्रिकाओं जैसे स्टार डस्ट को “बेकार डस्ट” और स्टार एंड स्टाइल को “बकवास स्टाइल” कहकर अपनी बेबाकी दिखाई।
जब उनसे मई 1986 में मिले लता मंगेशकर अवार्ड के बारे में पूछा, तो उनके चेहरे पर संतुष्टि की चमक थी। “मेहनत कभी बेकार नहीं जाती,” उन्होंने कहा। खंडवा में अपने बाकी दिन बिताने की इच्छा जताते हुए उन्होंने कहा, “अपनत्व तो खंडवा में ही है। माता-पिता की स्मृति में एक सभागार बनाना चाहता हूं और यहीं सुकून से जीना है।”
संगीत और जीवन के प्रति उनका नजरिया
किशोर दा उस दौर में भी संगीत के गिरते स्तर को लेकर चिंतित थे। उन्होंने कहा, “आजकल के गायकों में अपना कुछ नहीं, बस कॉपीराइट है। म्यूजिक में शक्ति होती है, जो जानवरों को भी छूती है।” उनकी बातों में संगीत के प्रति गहरा सम्मान झलकता था। चाय की चुस्कियों के बीच जब उनसे कंजूसी के आरोपों के बारे में पूछा, तो उन्होंने हंसते हुए कहा, “पैसा है तो सब है। भलाई करो तो गाली मिलती है।” फिर गुनगुनाया, “पांच रुपैया बारह आना…”
किशोर दा की विरासत और खंडवा की जिम्मेदारी
किशोर कुमार भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज आज भी हर दिल में गूंजती है। खंडवा, जहां उनकी जन्मस्थली गौरीकुंज उपेक्षा का शिकार हो रही है, वहां उनकी स्मृति को सहेजने की जिम्मेदारी केवल खंडवावासियों की नहीं, बल्कि हर संगीत प्रेमी की है। उनकी जन्मस्थली को संवारकर एक स्मारक के रूप में विकसित करना किशोर दा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
किशोर दा के गीत, उनकी हंसी, उनका जिंदादिल अंदाज हमेशा हमारे बीच रहेगा। सुरों के इस बेताज बादशाह को सादर नमन।