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Thursday, November 21, 2024

ब्रिटिश आर्मी के लिए काशी में तैयार किए जा रहे हैं किंग क्राउन बैज

✍️ विकास यादव
वाराणसी, 20 नवंबर 2024, बुधवार। काशी के कारीगरों का हुनर एक बार फिर से सात समंदर पार में अपनी पहचान बना रहा है। ब्रिटिश आर्मी और रॉयल फैमिली के लिए तैयार किए जाने वाले किंग क्राउन बैज का ऑर्डर वाराणसी के कारीगरों को मिला है। महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद, ब्रिटेन में क्वीन क्राउन की जगह किंग क्राउन ने ले ली है। इस नए डिजाइन के बैज को तैयार करने की जिम्मेदारी वाराणसी के कारीगरों को सौंपी गई है।वाराणसी के कारीगरों ने अब तक पांच हजार से अधिक बैज तैयार करके ब्रिटिश आर्मी को एक्सपोर्ट कर दिए हैं। यह बैज ब्रिटिश आर्मी के सैनिकों के वर्दी पर सजाए जाएंगे।
वाराणसी के लल्लापुरा का परिवार दुनिया भर की सेनाओं को सजाता है बैज
वाराणसी के लल्लापुरा क्षेत्र में एक परिवार ऐसा है जो दुनिया भर की सेनाओं को उनके पहचान चिह्न यानी बैज तैयार करता है। मुमताज आलम और उनका परिवार ब्रिटेन, फ्रांस, रूस समेत दुनिया के लगभग 20 देशों की सेना, सैनिक स्कूलों के लिए बैज तैयार करने में जुटा हुआ है। महारानी एलिजाबेथ के निधन के बाद, ब्रिटेन में क्वीन क्राउन की जगह किंग क्राउन ने ले ली है। इसके साथ ही, मुमताज आलम को किंग क्राउन की डिजाइन वाले बैज तैयार करने का ऑर्डर मिला है। उन्होंने बताया कि अब तक 5 हजार से अधिक बैज एक्सपोर्ट किए जा चुके हैं और 5 हजार बैज जाने के लिए तैयार हो चुके हैं। मुमताज आलम का परिवार अपने हुनर और कौशल से दुनिया भर की सेनाओं को उनके पहचान चिह्न प्रदान कर रहा है। यह उनकी एक अनोखी और गर्व करने वाली उपलब्धि है।
वाराणसी के जरदोजी कारीगर की अद्भुत कहानी: तीसरी पीढ़ी से दुनिया भर की सेनाओं के लिए बैज तैयार कर रहे हैं!
लल्लापुरा के जरदोजी के कारीगर शादाब आलम की कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है। वह तीसरी पीढ़ी से हैं जो दुनिया के कई देशों की सेनाओं, राष्ट्रपति, सरकारों के चिह्न, बैज तैयार करते हैं। उनके परिवार ने इस कला को लगभग तीन पीढ़ियों से संभाला हुआ है और अब शादाब आलम इसे आगे बढ़ा रहे हैं। शादाब आलम ने बताया कि उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता मुमताज़ आलम के साथ कढ़ाई की बारीकियां सीखीं। इसके बाद, वह जरदोजी के काम से जुड़ गए और अब वह दुनिया भर की सेनाओं और सरकारों के लिए बैज तैयार करते हैं।
जरदोजी एक पारंपरिक कला है जो भारत और पाकिस्तान में प्रचलित है। यह कला मुगल बादशाह अकबर के समय में और समृद्ध हुई थी, लेकिन बाद में राजसी संरक्षण के अभाव और औद्योगिकरण के दौर में इसका पतन होने लगा था। लेकिन अब, जरदोजी फिर से उभर रही है और लोग इसकी महत्ता को समझने लगे हैं। शादाब आलम की कहानी इस बात का प्रमाण है कि परंपरागत कला को आगे बढ़ाने से न केवल हमारी संस्कृति को बचाया जा सकता है, बल्कि इससे रोजगार के अवसर भी पैदा हो सकते हैं।
वाराणसी के जरदोजी कारीगरों की मेहनत: एक बैज बनाने में लगते हैं 4 से 5 दिन
वाराणसी के जरदोजी कारीगर मुमताज़ और शादाब आलम ने बताया कि एक बैज बनाने में चार से पांच दिनों का समय लगता है। यह समय साइज और कढ़ाई पर निर्भर करता है। कभी-कभी सरकारी चिह्न बनाने में एक से दो महीने तक का समय लग जाता है। मुमताज़ ने बताया, “हमारी कला में सूक्ष्मता और सावधानी बहुत जरूरी है। हमें हर एक धागे को सावधानी से चुनना होता है और उसे सही तरीके से कढ़ाना होता है।” शादाब आलम ने कहा, “हमारी कला को आगे बढ़ाने के लिए हमें सरकार के समर्थन की जरूरत है। हमें उम्मीद है कि सरकार हमारी कला को प्रोत्साहित करेगी और हमें अपनी कला को दुनिया भर में पहुंचाने में मदद करेगी।”
वाराणसी के जरदोजी कारीगरों की अनोखी कला: सोने-चांदी के तारों से बनते हैं बैज
वाराणसी के जरदोजी कारीगर मुमताज़ आलम ने बताया कि सेनाओं और राष्ट्राध्यक्षों के लिए तैयार होने वाले बैज दो क्वालिटी के होते हैं – कोरा डल और बुलियन। बुलियन बैज में सोना मिला होता है, जबकि कोरा डल वाले बैज सिल्क के धागों से बनाए जाते हैं। इसके अलावा, बैज में सिल्वर का भी उपयोग होता है। मुमताज़ आलम ने कहा, “बैज बनाने का पूरा काम हाथों से होता है। हम किसी तरह की कोई मशीन उपयोग में नहीं लाते हैं। यह हमारी कला की विशेषता है और इसे हमने पीढ़ियों से सीखा है।” उन्होंने बताया कि बैज बनाने के लिए सोने-चांदी के तारों का चयन किया जाता है और फिर उन्हें हाथों से कढ़ाया जाता है। यह प्रक्रिया बहुत ही सावधानी से की जाती है ताकि बैज की गुणवत्ता बनी रहे। वाराणसी के जरदोजी कारीगरों की यह अनोखी कला दुनिया भर में प्रसिद्ध है और उनके बैज सेनाओं और राष्ट्राध्यक्षों के लिए एक सम्मानजनक प्रतीक हैं।
जरदोजी कारीगरों की उपेक्षा: सरकार की अनदेखी से परेशान हैं हुनरमंद
वाराणसी के जरदोजी कारीगर शादाब आलम गर्व से कहते हैं कि उनके परिवार के हाथों तैयार बैज दुनिया के तमाम सेना अधिकारियों के माथे और सीने पर सजता है, लेकिन सरकार की अनदेखी से वे परेशान हैं। शादाब आलम कहते हैं, “सरकार सिर्फ बुनकर भाइयों पर ध्यान देती है, मशीन से बिनकारी करने वालों को सब्सिडी से लेकर तमाम सुविधाएं मुहैया करा रही है, लेकिन हाथों की कलाकारी दिखाने वाले जरदोजी से जुड़े लोगों की झोली अभी तक खाली है।”
उन्होंने कहा, “हमारी कला को बचाने के लिए सरकार को हमें समर्थन देना चाहिए। हमें उम्मीद है कि सरकार हमारी कला को प्रोत्साहित करेगी और हमें अपनी कला को दुनिया भर में पहुंचाने में मदद करेगी।” जरदोजी कारीगरों की यह उपेक्षा उनकी कला के भविष्य के लिए खतरनाक है। सरकार को जरदोजी कारीगरों की मदद करनी चाहिए ताकि उनकी कला बची रहे और वे अपनी कला को आगे बढ़ा सकें।
वाराणसी के जरदोजी कारीगरों की उम्मीद: जीआई टैग से संरक्षित होगी कला
वाराणसी के लल्लापुरा इलाके में लगभग पांच सौ लोग जरदोजी के काम से जुड़े हुए हैं। जरदोजी कारीगर शादाब आलम ने कहा कि जीआई टैग मिलने से उनकी कला संरक्षित हो सकती है और कारोबार को बढ़ावा मिल सकता है। शादाब ने कहा, “वाराणसी के कई प्रोडक्ट को जीआई टैग मिला है, जिससे उस कारोबार को पंख लग गए। अगर सरकार हमारे हुनर पर जीआई टैग लगा दे, तो इस कारोबार की किस्मत भी चमक उठेगी।” उन्होंने कहा कि जीआई टैग से उनकी कला की पहचान दुनिया भर में हो सकती है और इसकी मांग भी बढ़ सकती है। इससे जरदोजी कारीगरों को रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। वाराणसी के जरदोजी कारीगरों की यह उम्मीद सरकार के लिए एक चुनौती है कि वे उनकी कला को संरक्षित करने के लिए क्या कदम उठाएंगे।
मोदी सरकार की नीतियों से कारोबार को मिला बढ़ावा
मोदी सरकार के आने से वाराणसी के जरदोजी कारीगरों के लिए अच्छे दिन आ गए हैं। शादाब आलम, जरदोजी कारीगर, ने बताया कि मोदी सरकार के आने के बाद से उनका वर्कलोड बढ़ गया है। पहले वर्ष के तीन महीने तक उनके पास काम नहीं होता था, लेकिन अब 12 महीने लगातार काम हो रहा है। शादाब ने कहा कि सरकार की नई विदेश नीति के चलते नए ऑर्डर मिलने के साथ ही पेमेंट भी सही तरीके से हो रहा है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और वे अपने परिवार का अच्छी तरह से पालन-पोषण कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की नीतियों ने उनके कारोबार को बढ़ावा दिया है और उन्हें अपनी कला को दुनिया भर में पहुंचाने में मदद मिली है। शादाब ने कहा कि वे मोदी सरकार के समर्थन से अपने कारोबार को और भी बढ़ाने की उम्मीद करते हैं।
वाराणसी के जरदोजी कारीगरों को प्रधानमंत्री से उम्मीदें
वाराणसी के जरदोजी कारीगर मुमताज़ आलम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत उम्मीदें हैं। उनका मानना है कि अगर प्रधानमंत्री जरदोजी कारीगरों पर अपना हाथ रख देंगे, तो पूरी दुनिया में बनारस के कारीगरों का नाम होगा और उनकी कला को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मुमताज़ आलम ने कहा कि नई पीढ़ी इस काम से मुंह मोड़ रही है, लेकिन अगर सरकार उनकी समस्याओं को दूर कर दे, तो इस कारीगरी के बाजार में एक बार फिर रौनक आ जाएगी। उन्होंने कहा कि जरदोजी कारीगरों को सरकार की मदद की जरूरत है, ताकि वे अपनी कला को बचा सकें और आगे बढ़ा सकें।मुमताज़ आलम की उम्मीद है कि प्रधानमंत्री उनकी बात सुनेंगे और जरदोजी कारीगरों की मदद करेंगे, जिससे वाराणसी की इस पारंपरिक कला को नई दिशा मिलेगी।

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