23 अक्टूबर 2024:
कुशीनगर के एक छोटे से गांव हरिहरपुर (तमकुहीराज) के रहने वाले रवि प्रसाद की जिंदगी एक वक्त गहरे अंधकार में डूबी हुई थी। साल 2015 में जब वह इकोनॉमिक्स से एमए कर रहे थे, उसी दौरान उनके पिता का एक गंभीर हादसे में पैर कट गया।
परिवार की जिम्मेदारी रवि पर आ गई और पढ़ाई अधूरी रह गई। एक समय था जब उन्हें हर ओर अंधेरा ही नजर आता था और वह समझ नहीं पा रहे थे कि आगे का रास्ता क्या होगा। इसी बीच उन्होंने रोजी-रोटी के लिए दिल्ली का रुख किया।
दिल्ली में रहकर संघर्ष करते समय, रवि को प्रगति मैदान की एक प्रदर्शनी में जाने का मौका मिला। वहां उन्होंने दक्षिण भारत के एक स्टॉल पर केले के रेशे से बने उत्पाद देखे।
इस अनुभव ने उनकी सोच को एक नई दिशा दी। उन्हें यह अहसास हुआ कि ऐसा काम तो उनके अपने क्षेत्र, कुशीनगर में भी किया जा सकता है। रवि के मन में इस काम को करने का विचार पनपा और वह कुछ जानकारी लेकर घर लौट आए।
ओडीओपी योजना से मिला समर्थन
साल 2017 के अंत में, रवि ने केले के रेशे से उत्पाद बनाने का काम शुरू किया। उसी दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने “एक जिला, एक उत्पाद” (ओडीओपी) योजना की शुरुआत की, जिसमें कुशीनगर जिले का ओडीओपी उत्पाद ‘केला’ घोषित हुआ।
यह रवि के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन साबित हुआ। उन्होंने पीएमईजीपी योजना से पांच लाख रुपये का लोन लिया और अपने काम को विस्तार दिया। धीरे-धीरे उनके व्यवसाय ने गति पकड़ी और उनका हौसला बढ़ा।
महिलाओं को मिला स्वावलंबन
आज रवि न केवल खुद आत्मनिर्भर हैं, बल्कि उन्होंने सैकड़ों महिलाओं की भी जिंदगी बदल दी है। उनके साथ करीब 60 से 65 महिलाएं काम कर रही हैं, जो केले के रेशे से बैग, टोपी, पेन स्टैंड, पूजा की आसनी, योगा मैट, कैरी बैग, मोबाइल पर्स, चप्पल, दरी आदि जैसे उत्पाद बनाती हैं।
रवि ने अब तक लगभग 600 लोगों को केले के रेशे से उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दी है। यह काम न केवल इन महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहा है, बल्कि उनकी सामाजिक स्थिति को भी सशक्त कर रहा है।
रवि बताते हैं कि उनका सारा सामान हाथों से तैयार होता है और यह जूट से बने उत्पादों से 30 प्रतिशत अधिक मजबूत होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय पहचान की ओर कदम
हाल ही में रवि प्रसाद ने अपने उत्पादों को लेकर योगी सरकार द्वारा आयोजित ग्रेटर नोएडा में हुए इंटरनेशनल ट्रेड शो में भाग लिया।
यहां उनके सारे उत्पाद हाथों-हाथ बिक गए, जिससे उन्हें और भी बड़ी पहचान मिली। रवि के उत्पाद अब न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी मांग में हैं। वह केले का रेशा गुजरात की कुछ कंपनियों को निर्यात भी करते हैं।
केले के रेशे से लाभ के साथ पर्यावरण का संरक्षण
रवि केले के रेशे को बनाने की प्रक्रिया में निकलने वाले अपशिष्ट को भी बेकार नहीं जाने देते। केले के तने से रेशे को अलग करने के दौरान जो पानी निकलता है, वह मछली पालन करने वाले किसानों को बेच देते हैं।
यह पानी कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नेशियम और विटामिन बी-6 जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जो मछलियों की वृद्धि के लिए फायदेमंद है। इस पानी की कीमत 15 से 20 रुपये प्रति लीटर होती है और इसे तालाबों में डालने से मछलियों की अच्छी बढ़वार होती है।
इसके अलावा, केले के बाकी अपशिष्ट से जैविक खाद भी बनाई जा सकती है। रवि पहले इस खाद को बनाते थे और अब एक बार फिर से इसे शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं।
इससे न केवल केले के तने का पूरा उपयोग होता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मिलता है।
काम करने की प्रक्रिया
रवि के अनुसार, सबसे पहले केले के तने को ‘बनाना ट्री कटर’ मशीन में डालकर छोटे-छोटे हिस्सों में काटा जाता है। इसके बाद, इन हिस्सों को रेशा निकालने वाली मशीन में डालकर रेशा निकाला जाता है।
इस प्रक्रिया के दौरान तने से जो रस निकलता है, उसमें थोड़ा नमक डालकर उसे गर्म कर लेते हैं। फिर इस रेशे को मनचाहे रंग में रंगा जाता है और इसे विभिन्न उत्पाद बनाने के लिए तैयार किया जाता है। रंग स्थायी होता है और रेशे से बने उत्पाद मजबूत होते हैं।
सरकारी मदद और स्थानीय समर्थन
रवि का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा “एक जिला, एक उत्पाद” (ओडीओपी) योजना के तहत कुशीनगर में केले को ओडीओपी घोषित करना एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने उनकी और अन्य स्थानीय उद्यमियों की जिंदगी को बदल दिया।
अगस्त 2024 में जिले के डीएम और सीडीओ ने उनकी इकाई का दौरा किया और उनकी सराहना की।
रवि के इस सफर से यह साफ हो गया है कि यदि कोई व्यक्ति कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास के साथ काम करे तो वह हर मुश्किल को पार कर सकता है।
केले के रेशे से उत्पाद बनाकर रवि ने न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि अपने क्षेत्र की सैकड़ों महिलाओं को भी एक स्थायी रोजगार दिया है। उनका मानना है कि अगर और भी लोग इस दिशा में आगे आएं, तो कुशीनगर को देश और दुनिया में एक नई पहचान मिल सकती है।
रवि की इस पहल ने न केवल केले की खेती को नवजीवन दिया है, बल्कि इसे एक नया व्यापारिक अवसर भी बनाया है। उनका उद्देश्य अब अपने उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना और और भी अधिक लोगों को इस उद्योग से जोड़ना है।