तीन दशक से अधिक समय से विस्थापन का दंश झेल रहे कश्मीरी पंडित वोटरों की संख्या यों तो जम्मू-कश्मीर में लगभग 1.15 लाख है, लेकिन इनकी सम्मानजक वापसी सभी पार्टियों के शीर्ष एजेंडे में है। फिलहाल नेकां और अपनी पार्टी ने घोषणा पत्र जारी किया है, जिसमें इनकी वापसी को प्राथमिकता बताई है। भाजपा पहले से ही पंडितों की वापसी के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है। पीडीपी कहती रही है कि पंडितों के बिना घाटी अधूरी है। कांग्रेस भी पंडितों के पुनर्वास के पक्ष में है। तमाम पार्टियों के वादों व घोषणाओं के बाद भी कश्मीरी पंडितों को भरोसा नहीं है कि पार्टियां उनके लिए काम कर रही हैं।
कश्मीरी पंडित घाटी की सभी 47 विधानसभा के मतदाता हैं। दक्षिण, मध्य और उत्तर कश्मीर के 10 जिलों में इनके पैतृक घर हैं। यहीं से वह मतदाता भी हैं। 1990 में विस्थापन के बाद वह जम्मू, उधमपुर व अन्य स्थानों पर बस गए। तबसे डर के माहौल के कारण उनके लिए जम्मू, उधमपुर व दिल्ली में मतदान के लिए केंद्र बनाए गए। पंजीकृत मतदाताओं को एम-फॉर्म के जरिये मतदान करने की सुविधा दी जाती रही है, लेकिन पंडितों को सहूलियत देने के लिए लोकसभा चुनाव में इस फॉर्म की बाध्यता समाप्त कर दी गई। इसके सकारात्मक नतीजे भी सामने आए। पंडितों के मतदान का प्रतिशत बढ़ा। यही प्रक्रिया इस चुनाव में भी अपनाई जाएगी। चुनाव आयोग का मानना है कि इससे पंडितों के वोट बढ़ेंगे। साथ ही इस चुनाव में पंडित समुदाय के कई प्रत्याशी मैदान में आ सकते हैं। फिलहाल श्रीनगर के हब्बाकदल इलाके से संदीप मावा व संजय सर्राफ के नाम चर्चा में हैं।
कश्मीरी पंडितों का मानना है कि सभी पार्टियों की ओर से विस्थापन के बाद से ही कहा जाता रहा है कि उनके पुनर्वास तथा सम्मानजनक वापसी की बात हमेशा से की जाती रही है, लेकिन यह देखना चाहिए कि उन्हें मिला क्या। जमीनी स्तर पर तो कोई सुधार नहीं दिख रहा। सरकारी नौकरी देना पुनर्वास नहीं हो सकता। एक भी कश्मीरी पंडित घाटी में जाकर नहीं बसे। उनका यह भी कहना है कि सरकार ने उनकी जमीनों पर हुए कब्जे को छुड़ाने के लिए पोर्टल का शुभारंभ किया था। इसके कुछ सकारात्मक नतीजे भी आए, लेकिन अब भी इस दिशा में बहुत कुछ होना है। कश्मीरी पंडितों की संस्था पनुन कश्मीर के प्रवक्ता एमके धर का मानना है कि होमलैंड ही सभी समस्याओं का समाधान है। झेलम (वितस्ता) के पूर्व व उत्तर दिशा में होमलैंड की मांग लंबे समय से की जा रही है जहां सभी पंडितों को बसाया जा सकता है। हालांकि, सरकार पर भरोसा है कि एक दिन स्थितियां बदलेंगी।