वाराणसी, 5 अगस्त 2025: काशी के पवित्र मणिकर्णिका घाट पर, जहां जीवन और मृत्यु का चक्र अनवरत चलता रहता है, गंगा के उफान ने अंतिम संस्कार को एक कठिन चुनौती बना दिया है। गंगा का जलस्तर बढ़ने से जिले के छह प्रमुख श्मशान घाट—राजघाट, डोमरी, सरायमोहाना, गढ़वाघाट, सिपहिया घाट और रमना—पानी में डूब चुके हैं। अब केवल मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट ही शवदाह के लिए बचे हैं, लेकिन यहां भी हालात आसान नहीं हैं।
मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए परिजनों को घुटने भर पानी में खड़े होकर पांच घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा है। गंगा का पानी सतुआ बाबा आश्रम तक पहुंच चुका है, जिससे शवों को घाट तक लाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है। लेकिन नाविकों की मनमानी ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। एक बार में केवल पांच परिजनों को ही शव के साथ जाने की अनुमति है, जिसके चलते लोग घंटों पानी में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। दूसरी ओर, हरिश्चंद्र घाट पर तंग गलियों में शवदाह की जगह कम होने के कारण ढाई से तीन घंटे की प्रतीक्षा करनी पड़ रही है।
लकड़ी और नाव के दाम आसमान पर
बाढ़ ने न सिर्फ इंतजार का समय बढ़ाया है, बल्कि अंतिम संस्कार का खर्च भी दो से तीन गुना हो गया है। सामान्य दिनों में मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए लकड़ी 600-700 रुपये प्रति मन मिलती थी, लेकिन अब व्यापारी 1000-1200 रुपये वसूल रहे हैं। पहले जहां एक सामान्य शवदाह का खर्च 5000 रुपये के आसपास था, अब यह 12,000 से 15,000 रुपये तक पहुंच गया है। हरिश्चंद्र घाट पर भी शवदाह का खर्च 8,000 से 10,000 रुपये तक हो गया है। डोमराजा परिवार के सदस्य बहादुर, अभिषेक और विष्णु चौधरी बताते हैं कि बाढ़ के कारण लकड़ियां दूर से लानी पड़ रही हैं और भीगी लकड़ियों की लागत बढ़ गई है, जिसका बोझ परिजनों पर पड़ रहा है।
विदेशी पर्यटकों का भी शोषण
बाढ़ की इस आपदा में कुछ नाविक अवसर का फायदा उठा रहे हैं। विदेशी पर्यटकों को मणिकर्णिका घाट का शवदाह स्थल दिखाने के नाम पर नाविक मोटी रकम वसूल रहे हैं। पर्यटकों को शवों के बीच नाव में घुमाया जाता है और वापसी पर उनसे मनमाने दाम लिए जा रहे हैं। यह न सिर्फ संवेदनहीनता का प्रतीक है, बल्कि इस पवित्र स्थल की गरिमा को भी ठेस पहुंचा रहा है।
गंगा की बाढ़, इंसान की मजबूरी
मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर चल रही यह स्थिति न केवल शारीरिक और आर्थिक रूप से कष्टकारी है, बल्कि भावनात्मक रूप से भी लोगों को तोड़ रही है। गंगा, जो जीवन और मोक्ष की प्रतीक मानी जाती है, अपने उफान में अपनों को अंतिम विदाई देने वालों की मजबूरी को और गहरा रही है। इस संकट में जरूरत है संवेदनशीलता और सहयोग की, ताकि इस पवित्र प्रक्रिया को गरिमा के साथ पूरा किया जा सके।