वाराणसी, 26 मई 2025, सोमवार। कोरोना का साया एक बार फिर देश पर मंडराने लगा है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग भले ही तैयारियों के दावे कर रहे हों, लेकिन वाराणसी जैसे पवित्र नगरी में जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। यहां के 16 ऑक्सीजन प्लांट, जो कोविड की दूसरी लहर में जीवन रक्षक साबित हुए थे, आज बदहाली का शिकार हैं। न टेक्नीशियन, न नियमित रखरखाव, और न ही संचालन की पुख्ता व्यवस्था। ऐसे में, अगर संक्रमण की रफ्तार बढ़ी, तो क्या काशी फिर से ऑक्सीजन के लिए तरसेगी?
ऑक्सीजन प्लांट: उम्मीद से उपेक्षा तक
2020-21 में जब कोविड ने देश को झकझोरा, तब वाराणसी में सीएसआर फंडिंग से बीएचयू, ट्रॉमा सेंटर, मंडलीय अस्पताल, महिला अस्पताल कबीरचौरा, शास्त्री अस्पताल रामनगर, जिला अस्पताल और कई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए गए। ये प्लांट उस दौर में मरीजों के लिए संजीवनी बने। पाइपलाइन के जरिए बेड तक ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित की गई। लेकिन आज, जब इनकी सबसे ज्यादा जरूरत हो सकती है, ये प्लांट या तो खामोश हैं या चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के भरोसे लंगड़ा रहे हैं।
मिसिरपुर सीएचसी में ऑक्सीजन प्लांट को एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संभाल रहा है, बिना किसी विशेषज्ञ टेक्नीशियन के। नरपतपुर में तीन साल पहले लगा प्लांट आज भी स्थायी टेक्नीशियन की बाट जोह रहा है। शास्त्री अस्पताल रामनगर के दो प्लांट में से एक तो खराब हो चुका है। सबसे दुखद स्थिति आराजीलाइन सीएचसी की है, जहां ऑक्सीजन प्लांट महज शोपीस बनकर रह गया है—लगा तो, लेकिन कभी चला ही नहीं। गंगापुर में भी प्लांट है, लेकिन दो महीने पहले की जांच के बाद कोई स्थायी कर्मचारी नहीं रखा गया।
कोविड की तैयारी: दावे और हकीकत
कोविड की दूसरी लहर में वाराणसी ने व्यापक तैयारियां की थीं। बीएचयू, जिला अस्पताल, मंडलीय अस्पताल, शास्त्री अस्पताल और 50 से अधिक निजी अस्पतालों में 3500 बेड रिजर्व किए गए थे, जिनमें 750 बेड आईसीयू और वेंटिलेटर सुविधा से लैस थे। उस समय जिले की सीमाएं सील थीं, लेकिन आज हालात अलग हैं। काशी में रोजाना करीब 2 लाख लोग बसों, ट्रेनों, फ्लाइट्स और निजी साधनों से आते-जाते हैं। 42 लाख की आबादी वाले इस शहर में अगर कोविड के केस बढ़े, तो क्या मौजूदा स्वास्थ्य ढांचा इसे संभाल पाएगा?
स्वास्थ्य विभाग के दावों की बात करें तो सीएमओ डॉ. संदीप चौधरी का कहना है कि सभी संसाधन मौजूद हैं। जरूरत पड़ने पर जिला अस्पताल, मंडलीय अस्पताल, शास्त्री अस्पताल और बीएचयू में अलग वार्ड बनाए जाएंगे। एयरपोर्ट और स्टेशन पर स्क्रीनिंग की तैयारियां भी पूरी हैं। लेकिन ऑक्सीजन प्लांट के संचालन के लिए टेक्नीशियन की कमी का सवाल उठने पर जवाब है—कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। सवाल यह है कि क्या यह प्रशिक्षण कोविड जैसे संकट में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए काफी है?
संकट की आहट और समाधान की जरूरत
कोविड की दूसरी लहर ने हमें सिखाया कि ऑक्सीजन की कमी कितनी घातक हो सकती है। उस समय वाराणसी में ऑक्सीजन की किल्लत ने कई जिंदगियां छीन ली थीं। आज, जब वायरस फिर से सिर उठा रहा है, तब ऑक्सीजन प्लांट्स की यह हालत चिंता का सबब है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी डालना कितना उचित है? क्या प्रशिक्षण के नाम पर औपचारिकता पूरी की जा रही है? अगर समय रहते स्थायी टेक्नीशियनों की नियुक्ति और प्लांट्स के रखरखाव की व्यवस्था नहीं की गई, तो काशी एक बार फिर संकट के मुहाने पर खड़ी हो सकती है।
एक उम्मीद की किरण
हालांकि, स्थिति को सुधारने का अभी भी वक्त है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को तत्काल कदम उठाने होंगे। ऑक्सीजन प्लांट्स के लिए स्थायी टेक्नीशियनों की नियुक्ति, नियमित रखरखाव और मॉनिटरिंग सिस्टम को लागू करना जरूरी है। साथ ही, कोविड वार्ड और वेंटिलेटर सुविधाओं की समय-समय पर जांच होनी चाहिए। काशी, जो विश्व भर में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में जानी जाती है, वहां स्वास्थ्य सुविधाओं का मजबूत होना बेहद जरूरी है।
सांसों का सबक: काशी को कागजी दावों से नहीं, जमीनी तैयारियों से बचाएं
कोविड ने हमें बार-बार सबक दिया है कि तैयारियां कागजों पर नहीं, जमीन पर दिखनी चाहिए। वाराणसी जैसे शहर में, जहां हर दिन लाखों लोग आते-जाते हैं, स्वास्थ्य ढांचे की मजबूती सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए जरूरी है। ऑक्सीजन प्लांट्स को शोपीस बनने से बचाने और संकट की इस आहट को गंभीरता से लेने का वक्त है। काशी को फिर से ऑक्सीजन संकट का सामना न करना पड़े, इसके लिए अभी से कदम उठाने होंगे। आखिर, सांसों की कीमत को नापने का समय अब नहीं, बल्कि पहले ही आ चुका है।