वाराणसी, 15 फरवरी 2025, शनिवार। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शनिवार को वाराणसी में काशी तमिल संगमम 3.0 का भव्य शुभारंभ किया। उद्घाटन समारोह में सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री एल. मुरुगन भी विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए। उद्घाटन से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ के पलट प्रवाह को देखते हुए काशी में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ का हवाई सर्वेक्षण किया। अस्सी से नमो घाट तक के 84 घाटों पर भीड़ और यातायात व्यवस्था की समीक्षा की। घाट पर खड़े लोगों का हाथ हिलाकर अभिवादन स्वीकार किया। काशी विश्वनाथ धाम परिसर में मौजूद भक्तों से बात कर मंदिर की व्यवस्थाएं जानी। बच्चों को चॉकलेट देकर उन्हें पुचकारा और उनसे बातचीत भी की। भीड़ की व्यवस्था और सुरक्षा प्रबंधों का जायजा लेने के बाद सीएम ने काशी विश्वनाथ धाम में पूजा-अर्चना की।
बता दें, यह तीसरा मौका है, जब 15 से 24 फरवरी तक काशी में तमिल संगमम का आयोजन हो रहा है। इस बार के संगमम में पीएम मोदी नहीं पहुंचे हैं। सीएम योगी ने दक्षिण भारत के 200 डेलीगेट्स से मुलाकात की। शिक्षा मंत्रालय द्वारा विभिन्न मंत्रालयों व उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से आयोजित इस प्रतिष्ठित सांस्कृतिक पहल का उद्देश्य तमिलनाडु काशी के बीच प्राचीन सभ्यतागत संबंध का उत्सव मनाना उसे मजबूत करना है।
काशी तमिल संगमम दोनों क्षेत्रों के विद्वानों, विद्यार्थियों, दार्शनिकों, व्यापारियों, कारीगरों, कलाकारों जीवन के अन्य क्षेत्रों के लोगों को एक साथ आने, अपने ज्ञान, संस्कृति सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने एक-दूसरे के अनुभव से सीखने का अवसर प्रदान करना चाहता है। इस बार यह आयोजन खास है क्योंकि पहली बार, प्रतिभागियों को प्रयागराज में महाकुंभ देखने अयोध्या के राम मंदिर का दौरा करने का मौका मिलेगा।
‘काशी तमिल संगमम 3.0’ का उद्घाटन के मौके पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभारी हूं, जिनके नेतृत्व में लगातार तीसरी बार काशी तमिल संगमम का बाबा विश्वनाथ की पावन धरा पर शुभारंभ हो रहा है। ये हमारे लिए एक भारत श्रेष्ठ भारत के प्रधानमंत्री मोदी के विजन को आगे बढ़ाने के महायज्ञ का भाग है। ये आयोजन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन महाकुंभ प्रयागराज में चल रहा है।
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि काशी के रक्षक खुद बाबा कालभैरव है, यह नगरी बाबा विश्वनाथ की है। मां अन्नपूर्णा यहां की व्यवस्था देखती है। आप सोचिए कि किस धरा पर हम तमिल संगमम कर रहे हैं। यहां कई समूह एक साथ आएंगे। उत्तर के लोग दक्षिण से जुड़ेंगे। पूरब के लोग पश्चिम से जुड़ेंगे। ये कार्य एक वक्त पर शंकराचार्य ने किया था, आज वही काम पीएम नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। सीएम योगी ने कहा कि आज जान लीजिए कि अगर एक तराजू पर एक तरफ अगस्त ऋषि को रखे दें, दूसरी तरफ उत्तर भारत के पूरे ज्ञान को रखेंगे तब भी ऋषि अगस्त ही भारी रहेंगे। उस समय राम-रावण के युद्ध में आदित्य स्रोत ऋषि अगस्त ने ही दिया था।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही कहा था कि इस बार काशी तमिल संगमम के सभी डेलिगेट्स को कुंभ में स्नान कराया जाए और उन लोगों को वहां रहने का व्यवस्था कराया जाये। यह सुखद संयोग है कि तीसरा संस्करण में बाबा काशी विश्वनाथ का दर्शन, प्रयागराज महाकुंभ में स्नान और भव्य राम मंदिर उद्घाटन के बाद पहली बार आयोजित किया जा रहा है।
सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री एल. मुरुगन ने कहा कि काशी तमिल संगमम उत्तर और दक्षिण के संबंधों को मजबूत करने के लिए आयोजित किया गया है। इस बार महर्षि अगस्त पर आधारित पूरा कार्यक्रम आयोजित किया गया है। हमने यहां चित्र प्रदर्शनी लगाई है, उनके पूरे जीवनी को दिखाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों को दिखाया गया है। यहां आने वाले डेलिगेट्स काशी के सभ्यता और संस्कृति को सीख कर जाएंगे।
प्रयागराज में मुंडन व वेणीदान, काशी में पिंडदान का है महत्व
‘प्रयागे मुंडं, काशी दंडं, गया पिंडं…’ की मान्यता के वशीभूत आदिकाल से ही ही शिव के ‘सुख साधन रहित आनंद’ की तलाश में काशी पहुंचने वाले शैव तमिलों की एक सतत धारा रही है। महीनों-वर्षों पैदल चलकर भगवान शिव की नगरी में देव ऋण से उत्तीर्ण होने की कामना से यहां पहुंचे तमिल समुदाय ने हनुमानघाट, केदारघाट और हरिश्चंद्र घाट के क्षेत्रों के मध्य काशी के बीचो-बीच एक लघु तमिलनाडु बसा दिया। तमिल समुदाय के वैदिक विद्वान व तीर्थ पुरोहित कर्मकांडी, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य पं. वेंकट रमण घनपाठी बताते हैं कि जीवन में कम से कम एक बार काशी की धार्मिक यात्रा करना प्रत्येक तमिल के जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक लक्ष्य होता है। प्राचीन तमिल ग्रंथों में उत्तर भारत के तीन तीर्थ नगरों प्रयागराज, काशी व गया की महत्ता बताते हुए कहा गया है कि प्रयागराज में आत्मऋणण, काशी में देवऋण व गया में पितृऋण से मुक्ति मिलती है तथा मृत्यु के पश्चात आत्मा को बैकुंठ लोक में वास या मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पं. घनपाठी बताते हैं कि तमिल धर्मग्रंथों के अनुसार प्रयागराज में आत्मऋण से उऋण होने के लिए तमिल व अन्य दक्षिण भारतीय समुदाय के पुरुष लोग वहां पहुंचकर संगम तट पर अपना मुंडन कराते हैं। तत्पश्चात अपनी पत्नी की चाेटी अपने हाथों से गूंथते हैं, इसके बाद चोटी का अंतिम सिरा काटकर उसके साथ सिंदूर, रोली, कुमकुम आदि मिलाकर बालों के इन गुच्छों को गंगा में प्रवाहित करते हैं। इस धार्मिक प्रक्रिया को मुंडन व वेणीदान कहा जाता है। इसके पश्चात काशी पहुंचकर सभी यहां काशीवास करते हैं- काशी में यह धार्मिक यात्रा कम से कम पांच दिनों की होती है। इस दौरान लोग बाबा विश्वनाथ व माता विशालाक्षी का दर्शन-पूजन करते हैं।
इसके पश्चात दो दिना नौका में सवार होकर गंगा पूजन कर, गंगा के पांच घाटों पर असि, दशाश्वमेध, पंचगंगा, मणिकर्णिका व वुरुणा पर स्नान कर अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष के लिए तर्पण-अर्पण करते हैं। इसके पश्चात माता अन्नपूर्णा का दर्शन कर अन्न-धन आदि का दान-पुण्य करते हैँ। गया पहुंचकर भी पिंडदान कर पूर्वजों की आत्मा के मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं। इन सबमें काशी की यात्रा देव ऋण से उऋण होने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यहां से जाते समय ये लोग काशी से बनारसी साड़ियां व अन्य वस्त्र, अपने गांव व रिश्तेदारों में काशी के प्रसाद के रूप में वितरित करने के लिए बाबा कालभैरव का थाेक में गंडा, पूजन व स्थापना के लिए माता विशालाक्षी व माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा ले जाना नहीं भूलते।
इनकी रही उपस्थिति
इस अवसर उत्तर प्रदेश के स्टांप एवं न्यायालय पंजीयन शुल्क राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविन्द्र जायसवाल, आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती पूनम मौर्य, महापौर अशोक तिवारी, पूर्व मंत्री तथा विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी, विधायक डॉ अवधेश सिंह, सौरभ श्रीवास्तव, डॉ सुनील पटेल, सदस्य विधान परिषद हंसराज विश्वकर्मा, धर्मेंद्र राय, अश्विनी त्यागी, केंद्रीय शिक्षा सचिव विनीत जोशी, मंडलायुक्त कौशल राज शर्मा, पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल, जिलाधिकारी एस राजलिंगम, अपर पुलिस आयुक्त एस चिनप्पा, कार्यवाहक कुलपति बीएचयू डॉ संजय कुमार समेत भारी संख्या में तमिल अतिथि उपस्थित रहे।
'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' के जिस कार्यक्रम को सैकड़ों वर्ष पहले केरल से निकले हुए संन्यासी जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने किया था,