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Saturday, June 28, 2025

आगरा में करणी सेना का रक्त स्वाभिमान सम्मेलन: तनाव, तलवारें और तीखा विरोध

आगरा, 13 अप्रैल 2025, रविवार। आगरा के कुबेरपुर मैदान में राणा सांगा की जयंती पर करणी सेना द्वारा आयोजित ‘रक्त स्वाभिमान सम्मेलन’ ने उस समय सुर्खियां बटोरीं, जब उत्साह और उत्तेजना ने तनावपूर्ण माहौल का रूप ले लिया। लाखों की संख्या में जुटे क्षत्रिय समाज के कार्यकर्ताओं ने पुलिस की मौजूदगी में न केवल जोरदार नारेबाजी की, बल्कि तलवारें और डंडे लहराकर शक्ति प्रदर्शन भी किया। यह नजारा न सिर्फ आंखों को चौंकाने वाला था, बल्कि कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाने वाला भी।

सम्मेलन में माहौल तब और गर्म हो गया, जब करणी सेना के कुछ उग्र कार्यकर्ताओं ने समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजीलाल सुमन के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। सुमन का वह बयान, जिसमें उन्होंने संसद में राणा सांगा को “गद्दार” करार देते हुए बाबर को भारत बुलाने का आरोप लगाया था, इस आक्रोश की जड़ बना। कार्यकर्ताओं का गुस्सा इतना बढ़ा कि एक ने तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को गोली मारने तक की बात कह डाली। यह सुनकर वहां मौजूद पुलिस के होश उड़ गए, लेकिन भारी भीड़ के सामने वे कोई सख्त कदम उठाने से कतराते रहे।

पुलिस की मौजूदगी के बावजूद स्थिति बेकाबू होती दिखी। सूत्रों के मुताबिक, जैसे ही पुलिस ने हस्तक्षेप की कोशिश की, कार्यकर्ता और उग्र हो गए। हालात बिगड़ते देख एडिशनल कमिश्नर समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों को मौके पर पहुंचना पड़ा, लेकिन भीड़ का रौद्र रूप देख वे भी पीछे हटने को मजबूर हुए। हालांकि, प्रशासन ने अब जांच शुरू कर दी है और क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा कर दिया गया है। अभी तक किसी की गिरफ्तारी की खबर नहीं है, लेकिन तनाव का माहौल बरकरार है।

यह सम्मेलन करणी सेना की पहले से घोषित योजना का हिस्सा था, जिसमें तीन लाख लोगों के जुटने की उम्मीद जताई गई थी। राणा सांगा के सम्मान में आयोजित इस विशाल सभा में उपस्थित भीड़ ने आयोजकों की उम्मीदों को सच साबित किया। लेकिन सपा सांसद के बयान ने इस आयोजन को गर्व और सम्मान के उत्सव से आक्रोश और हंगामे का मंच बना दिया। इससे पहले 26 मार्च को भी करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने सुमन के आवास पर हमला कर तोड़फोड़ की थी, और अब यह सम्मेलन उनके विरोध का नया अध्याय बन गया।

आगरा का यह घटनाक्रम न केवल स्थानीय स्तर पर चर्चा का विषय है, बल्कि यह सवाल भी उठा रहा है कि ऐतिहासिक नायकों के सम्मान और राजनीतिक बयानबाजी के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। फिलहाल, प्रशासन की नजर इस मामले पर टिकी है, और आने वाले दिन इस विवाद के अगले मोड़ को तय करेंगे।

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