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Sunday, July 6, 2025

फेक न्यूज पर कर्नाटक सरकार का सख्त प्रहार: 7 साल की जेल, 10 लाख का जुर्माना

बेंगलुरु, 2 जुलाई 2025: सोशल मीडिया पर फेक न्यूज फैलाने वालों के लिए अब सावधानी बरतना जरूरी हो गया है। कर्नाटक सरकार के नए ‘मिस-इन्फॉर्मेशन एंड फेक न्यूज़ (निषेध) विधेयक, 2025’ ने झूठी खबरों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। इस विधेयक के तहत फेक न्यूज फैलाने वालों को 7 साल की जेल और 10 लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है। यह कानून न केवल गलत सूचनाओं को रोकने का दावा करता है, बल्कि महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों और सनातन प्रतीकों के दुरुपयोग को भी फेक न्यूज की श्रेणी में शामिल करता है।

क्या है नया कानून?

इस विधेयक के तहत फेक न्यूज की पहचान के लिए एक विशेष अथॉरिटी गठित की जाएगी, जिसके अध्यक्ष कन्नड़ और संस्कृति मंत्री होंगे। इसमें दो विधायक, दो सोशल मीडिया प्रतिनिधि और एक वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे। यह अथॉरिटी यह तय करेगी कि सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई सामग्री, खासकर विज्ञान, इतिहास, धर्म, दर्शन और साहित्य से जुड़ी जानकारी, प्रामाणिक शोध पर आधारित है या नहीं। जानबूझकर या लापरवाही से फैलाई गई झूठी जानकारी, गलत इरादे से एडिट किए गए वीडियो-ऑडियो, महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली सामग्री या सनातन प्रतीकों का अपमान करने वाली पोस्ट को फेक न्यूज माना जाएगा।

क्या है विवाद?

हालांकि, विधेयक में व्यंग्य, कला, हास्य और धार्मिक प्रवचनों को फेक न्यूज की परिभाषा से बाहर रखा गया है, लेकिन इनकी स्पष्ट परिभाषा का अभाव चिंता का विषय बना हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह अस्पष्टता मनमाने फैसलों को जन्म दे सकती है। इसके अलावा, यह विधेयक बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ जाता है, जिसमें केंद्र सरकार की फैक्ट-चेक यूनिट को असंवैधानिक करार दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि सरकार द्वारा एकतरफा फेक न्यूज की पहचान करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। सुप्रीम कोर्ट के 2013 के ऐतिहासिक फैसले (श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार) में भी IT अधिनियम की धारा 66A को रद्द करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूत किया गया था।

आलोचना और आशंकाएं

कानून के तहत सरकार द्वारा नियुक्त कमेटी को ही जांच, फैसला और सजा तय करने का अधिकार दिया गया है, जिससे आलोचकों को डर है कि इसका दुरुपयोग सरकार की आलोचना को दबाने के लिए हो सकता है। साथ ही, अपराधियों को अग्रिम जमानत न मिलने का प्रावधान भी विवादों को हवा दे रहा है। कई लोग इसे संवैधानिक संतुलन के खिलाफ मान रहे हैं।

आगे क्या?

यह विधेयक जहां फेक न्यूज के खिलाफ सख्ती का दावा करता है, वहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव को लेकर बहस तेज हो गई है। क्या यह कानून सोशल मीडिया को और सुरक्षित बनाएगा या विचारों की आजादी पर अंकुश लगाएगा? यह सवाल अब कोर्ट और जनता के बीच चर्चा का केंद्र बन चुका है।

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