N/A
Total Visitor
31.2 C
Delhi
Thursday, April 17, 2025

जस्टिस यशवंत वर्मा: कैश कांड से शपथ ग्रहण तक का सफर

नई दिल्ली, 6 अप्रैल 2025, रविवार। प्रयागराज, उत्तर प्रदेश की न्यायिक नगरी, एक बार फिर सुर्खियों में है। 5 अप्रैल 2025 को जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बतौर जज शपथ ग्रहण की। यह घटना न केवल उनके करियर की एक नई शुरुआत है, बल्कि एक ऐसे विवादास्पद अध्याय का भी हिस्सा है, जिसने देश भर में चर्चा का बाजार गर्म कर दिया। पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश पर उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर किया था। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर उनका नाम सातवें नंबर पर अपलोड हो चुका है। लेकिन यह शपथ ग्रहण इतना साधारण नहीं था, जितना दिखता है। इसके पीछे छिपा है एक “कैश कांड” का तूफान, जिसने न्यायपालिका की साख पर सवाल उठाए और विरोध की आग को भड़काया।

दिल्ली से प्रयागराज: ट्रांसफर की कहानी

जस्टिस यशवंत वर्मा का सफर दिल्ली हाईकोर्ट से शुरू हुआ था, जहां वे एक सम्मानित न्यायाधीश के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे थे। लेकिन 14 मार्च 2025 की रात ने सब कुछ बदल दिया। होली के मौके पर उनके लुटियंस दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई। फायर ब्रिगेड ने आग बुझाई, लेकिन जो सामने आया, वह चौंकाने वाला था। कथित तौर पर उनके स्टोररूम से नोटों से भरी अधजली बोरियां बरामद हुईं। यह खबर जंगल की आग की तरह फैली और देखते ही देखते “कैश कांड” देश की सबसे बड़ी सुर्खी बन गया।

जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे अपने खिलाफ साजिश बताया। उनका कहना था कि स्टोररूम में न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने कभी कोई नकदी रखी थी। लेकिन मामला इतना गंभीर था कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को हस्तक्षेप करना पड़ा। एक तीन सदस्यीय समिति गठित की गई, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को उनके मूल कोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट, वापस भेजने का फैसला लिया।

शपथ ग्रहण: विरोध के बीच एक नया अध्याय

5 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली ने जस्टिस वर्मा को उनके निजी कक्ष में शपथ दिलाई। यह समारोह बेहद गोपनीय तरीके से हुआ, जिसमें हाईकोर्ट के ज्यादातर जजों को भी सूचना नहीं दी गई। लेकिन यह शपथ ग्रहण विवादों से अछूता नहीं रहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इसके खिलाफ जोरदार विरोध जताया था। बार के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने इसे “न्यायपालिका का सबसे काला दिन” करार दिया और शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार करने की घोषणा की। उनका कहना था कि एक जज, जिस पर इतने गंभीर आरोप हैं, उसे शपथ दिलाना जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाता है।

वकीलों का गुस्सा यहीं नहीं थमा। बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर को रद्द करने और उनके खिलाफ महाभियोग की मांग की। 25 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू हुई, जिसे बाद में आम जनता के हित में वापस ले लिया गया। लेकिन यह सवाल अब भी हवा में तैर रहा है कि क्या जस्टिस वर्मा जांच पूरी होने तक न्यायिक कार्य से दूर रहेंगे, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था?

कैश कांड का रहस्य: सवाल अभी बाकी

कैश कांड की गुत्थी अभी सुलझी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की समिति ने जस्टिस वर्मा के आवास का दौरा किया और करीब 30-35 मिनट तक निरीक्षण किया। अधजले नोटों की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए, जिसने मामले को और सनसनीखेज बना दिया। सवाल उठ रहे हैं कि अगर यह नकदी जस्टिस वर्मा की नहीं थी, तो वहां आई कहां से? और अगर यह साजिश थी, तो इसके पीछे कौन था? जांच समिति की रिपोर्ट का इंतजार अब भी जारी है, और इसके नतीजे इस पूरे प्रकरण पर निर्णायक रोशनी डाल सकते हैं।

न्यायपालिका पर विश्वास का संकट

जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है। यह न्यायपालिका की पारदर्शिता और जनता के भरोसे का सवाल है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में उनकी वापसी और शपथ ग्रहण ने जहां एक तरफ उनके करियर को नया मोड़ दिया, वहीं दूसरी ओर यह बहस छेड़ दी कि क्या ट्रांसफर ही इस विवाद का हल है? बार एसोसिएशन का मानना है कि यह “डंपिंग ग्राउंड” बनने जैसा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट इसे जांच से अलग एक प्रशासनिक कदम बता रहा है।

प्रयागराज की गंगा-जमुनी तहजीब और न्यायिक इतिहास में यह घटना एक अनोखा अध्याय जोड़ रही है। जस्टिस वर्मा अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में नौवें सबसे वरिष्ठ जज होंगे, लेकिन उनकी असली परीक्षा जांच समिति की रिपोर्ट और जनता के विश्वास को वापस जीतने में होगी। क्या यह शपथ ग्रहण एक नए सफर की शुरुआत है या विवादों का अंत? इसका जवाब समय ही देगा। तब तक, यह कहानी हर उस शख्स के लिए सबक है जो न्याय के मंदिर में सच की तलाश करता है।

Advertisement

spot_img

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

2,300FansLike
9,694FollowersFollow
19,500SubscribersSubscribe

Advertisement Section

- Advertisement -spot_imgspot_imgspot_img

Latest Articles

Translate »