नई दिल्ली, 19 जून 2025, गुरुवार: दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज और वर्तमान में इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर नकदी बरामदगी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच पैनल की रिपोर्ट ने न्यायिक हलकों में हलचल मचा दी है। इस रिपोर्ट में जली और अधजली नकदी की बरामदगी, नकदी हटाए जाने और 10 गवाहों के बयानों की पुष्टि जैसे सनसनीखेज खुलासे किए गए हैं।
पैनल की जांच और खुलासे
भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने 22 मार्च 2025 को इस मामले की जांच के लिए तीन वरिष्ठ जजों की समिति गठित की थी। इस समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थीं। समिति ने 10 दिनों में 55 गवाहों से पूछताछ की, कई बैठकें आयोजित कीं और 14 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर हुए अग्निकांड के घटनास्थल का दौरा किया।
रिपोर्ट के अनुसार, 14 मार्च 2025 की रात करीब 11:35 बजे जस्टिस वर्मा के आवास के स्टोर रूम में आग लगी थी। आग बुझाने के दौरान दिल्ली अग्निशमन सेवा और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने स्टोर रूम में 500 रुपये के जले और अधजले नोटों से भरी 4-5 बोरियां देखीं। कम से कम 10 चश्मदीद गवाहों, जिनमें अग्निशमन और पुलिस अधिकारी शामिल हैं, ने इन नोटों को अपनी आंखों से देखने की पुष्टि की है।
जली नकदी और रहस्यमय गायब होने का मामला
पैनल ने पाया कि स्टोर रूम, जहां नकदी मिली थी, पूरी तरह से जस्टिस वर्मा और उनके परिवार के नियंत्रण में था। जांच में यह भी खुलासा हुआ कि आग बुझाने के बाद स्टोर रूम से जली और बिना जली नकदी को हटा लिया गया था। रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि यह कार्य जज के निजी सचिव और कर्मचारियों की जानकारी या भागीदारी के बिना संभव नहीं था। हालांकि, पैनल ने स्पष्ट किया कि इसकी औपचारिक जांच के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत अतिरिक्त कदम उठाने की आवश्यकता है।
जांच की गंभीरता और सिफारिश
3 मई 2025 को अंतिम रूप दी गई इस रिपोर्ट में समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों को गंभीर ठहराते हुए उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की है। सीजेआई संजीव खन्ना ने 4 मई को जस्टिस वर्मा को इस रिपोर्ट की प्रति भेजकर उनका जवाब मांगा था और स्वैच्छिक इस्तीफे का सुझाव दिया था। हालांकि, जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। इसके बाद, 8 मई को सीजेआई ने समिति की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा के जवाब की प्रति राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेज दी।
जस्टिस वर्मा का पक्ष
जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों का खंडन करते हुए दावा किया है कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने स्टोर रूम में कोई नकदी रखी थी। उन्होंने इसे उनके खिलाफ साजिश करार दिया है। उनके निजी सचिव राजेंद्र सिंह कार्की पर भी संदेह जताया गया है, जिन्होंने कथित तौर पर अग्निशमन अधिकारियों को नोटों का जिक्र न करने का निर्देश दिया था।
न्यायिक तंत्र पर सवाल
यह मामला न्यायपालिका की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठा रहा है। जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया है, जहां उन्हें फिलहाल कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा गया है। केंद्र सरकार इस मामले में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है, जिसके लिए संसद में विशेष प्रक्रिया का पालन करना होगा।
यह मामला 2008 के कोलकाता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के मामले से तुलना किया जा रहा है, जिनके खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के बाद इस्तीफे की सलाह दी गई थी। जस्टिस वर्मा का यह प्रकरण न केवल उनके करियर, बल्कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था की प्रतिष्ठा के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।