नई दिल्ली, 19 अप्रैल 2025, शनिवार। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्रसंघ चुनाव 2025 की प्रक्रिया विवादों का केंद्र बन चुका है, जहां निष्पक्षता और लोकतंत्र की बातें तो खूब होती हैं, लेकिन हकीकत में धांधली और पक्षपात का खेल खुलेआम चल रहा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने जेएनयू इलेक्शन कमिटी पर लेफ्ट यूनाइटेड के साथ मिलीभगत और चुनावी प्रक्रिया में खुलेआम पक्षपात करने का गंभीर आरोप लगाया है। इस मुद्दे ने कैंपस की सियासत को गरमा दिया है, और एबीवीपी ने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का खुला उल्लंघन करार देते हुए कड़ा विरोध जताया है।
चुनावी प्रक्रिया में धांधली का सिलसिला
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2025 के लिए नामांकन प्रक्रिया 15 अप्रैल को शुरू हुई थी, और नामांकन वापसी की अंतिम तारीख 16 अप्रैल निर्धारित थी। लेकिन लेफ्ट संगठनों, खासकर ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) के दबाव में, इलेक्शन कमिटी ने नियमों को ताक पर रखकर नाम वापसी की तारीख को पहले 17 अप्रैल तक बढ़ाया। इतना ही नहीं, 17 अप्रैल को भी समय को शाम 4:00 बजे से 4:30 बजे तक मनमाने ढंग से बढ़ाया गया। जब AISA और SFI के बीच गठबंधन की बात नहीं बनी, तो कमिटी ने 18 अप्रैल को आधे घंटे का अतिरिक्त समय देकर नाम वापसी की प्रक्रिया को फिर से खोलने की कोशिश की, जबकि सभी प्रत्याशियों की अंतिम सूची पहले ही जारी हो चुकी थी।
इस असंवैधानिक कदम का जब आम छात्रों और अन्य प्रत्याशियों ने विरोध किया, तो इलेक्शन कमिटी ने पूरे चुनाव को ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। एबीवीपी का कहना है कि यह सब लेफ्ट यूनाइटेड के आपसी मतभेद और गठबंधन की नाकामी को छिपाने की साजिश थी। कमिटी ने बार-बार तारीखें बदलकर और नियम तोड़कर लेफ्ट संगठनों को एकतरफा फायदा पहुंचाने की कोशिश की, जो निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों के खिलाफ है।
हिंसा और अराजकता का माहौल
विरोध प्रदर्शनों के दौरान हालात इतने बिगड़ गए कि बैरिकेड्स तोड़े गए, इलेक्शन कमिटी के कार्यालय के शीशे फोड़े गए, और कमिटी के सदस्यों ने असुरक्षा का हवाला देकर काम रोक दिया। एबीवीपी ने इसे लेफ्ट संगठनों की हताशा का नतीजा बताया, जो गठबंधन टूटने के बाद हिंसा पर उतर आए। कमिटी ने जेएनयू प्रशासन से हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है।
एबीवीपी का कड़ा रुख: “लोकतंत्र का हनन बर्दाश्त नहीं”
एबीवीपी जेएनयू के इकाई अध्यक्ष राजेश्वर कांत दुबे ने इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “जेएनयू इलेक्शन कमिटी अब निष्पक्ष संस्था नहीं रही, बल्कि लेफ्ट यूनाइटेड की ‘टीम-बी’ बनकर काम कर रही है। बार-बार नियम तोड़ना और तारीखें बदलना छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों का अपमान है। यह धांधली और साठगांठ लोकतंत्र के मंदिर में कलंक है।”
एबीवीपी ने मांग की है कि चुनाव तय तारीख, यानी 25 अप्रैल को, बिना किसी देरी के कराए जाएं। संगठन ने यह भी स्पष्ट किया कि वह निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव के लिए हर मंच पर संघर्ष करेगा और इस “षड्यंत्रकारी रवैये” को बेनकाब करता रहेगा।
लेफ्ट यूनाइटेड में दरार: क्या है असल वजह?
इस बार का जेएनयू चुनाव कई मायनों में अलग है, क्योंकि 2016 से चला आ रहा लेफ्ट यूनाइटेड का गठबंधन टूट गया है। AISA और SFI के बीच अध्यक्ष पद को लेकर खींचतान ने गठबंधन को तोड़ दिया, जिसके चलते SFI ने चौधरी तैय्यबा अहमद को अध्यक्ष पद के लिए उतारा, जबकि BAPSA ने रामनिवास गुर्जर को मैदान में लाया। इस दरार ने लेफ्ट संगठनों को कमजोर किया है, और एबीवीपी को लगता है कि इससे उसे फायदा हो सकता है।
लेकिन लेफ्ट की इस अंदरूनी कलह को दबाने के लिए इलेक्शन कमिटी ने कथित तौर पर गलत सूचियां जारी कीं और नामांकन प्रक्रिया में बार-बार बदलाव किए। उदाहरण के लिए, SFI की ओर से गोपिका को अध्यक्ष पद की उम्मीदवार बताया गया, लेकिन अंतिम सूची में चौधरी तैय्यबा अहमद का नाम था, जिसके खिलाफ SFI ने प्रदर्शन किया।
जेएनयू का सियासी रंगमंच: इतिहास और मौजूदा हालात
जेएनयू लंबे समय से वामपंथी विचारधारा का गढ़ रहा है। पिछले कई चुनावों में लेफ्ट यूनाइटेड ने दबदबा बनाए रखा है। 2024 के चुनाव में भी यूनाइटेड लेफ्ट गठबंधन ने चार में से तीन केंद्रीय पद जीते थे, जबकि एक पद BAPSA को मिला था। लेकिन इस बार गठबंधन की कमजोरी और इलेक्शन कमिटी पर पक्षपात के आरोपों ने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया है।
एबीवीपी का कहना है कि लेफ्ट संगठन अपनी हार को देखते हुए चुनावी प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश कर रहे हैं। संगठन ने कमिटी पर “वामपंथियों की कठपुतली” बनने का आरोप लगाया और कहा कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने का जानबूझकर किया गया प्रयास है।
आगे क्या?
जेएनयू छात्रसंघ चुनाव 2025 की प्रक्रिया अब अनिश्चितकाल के लिए स्थगित है, और कैंपस में तनाव का माहौल है। 7906 मतदाताओं, जिनमें 43% महिला छात्राएं हैं, के बीच यह चुनाव छात्र राजनीति का एक बड़ा रंगमंच बन चुका है।
एबीवीपी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस “अलोकतांत्रिक” रवैये को बर्दाश्त नहीं करेगी और निष्पक्ष चुनाव के लिए हरसंभव कदम उठाएगी। दूसरी ओर, लेफ्ट संगठनों के बीच आपसी फूट और इलेक्शन कमिटी के विवादास्पद फैसलों ने उनकी साख को नुकसान पहुंचाया है।
लोकतंत्र पर सवाल
जेएनयू का यह चुनावी ड्रामा न केवल कैंपस की सियासत को उजागर करता है, बल्कि निष्पक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गहरे सवाल भी उठाता है। इलेक्शन कमिटी की कथित पक्षपातपूर्ण भूमिका और लेफ्ट यूनाइटेड के साथ साठगांठ के आरोपों ने जेएनयू की छवि को धक्का पहुंचाया है। क्या जेएनयू का यह सियासी रंगमंच लोकतंत्र की जीत के साथ खत्म होगा, या धांधली और हिंसा की छाया इसे और गहरे विवाद में धकेल देगी? यह सवाल अब हर जेएनयूवासी के मन में है।
एबीवीपी की आवाज बुलंद है: “चुनाव तय समय पर हों, और लोकतंत्र की जीत हो!” अब देखना यह है कि जेएनयू का यह सियासी रणक्षेत्र किस दिशा में जाता है।