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Monday, June 23, 2025

ईष्र्या द्वेष का अवकाश पर जाना

हसमुख उवाच

ईष्र्या द्वेष की व्याधि से ग्रस्त शर्मा जी गहरे सदमे में आ गये थे,मौन तथा गुमसुम हो गये थे, !पत्नी ने पूछा _”ये आपको क्या हो गया है? परंतु शर्मा जी एक गहरी सांस छोड़ कर फिर खामोश हो जाते, पत्नी को क्या पता था कि लोग तो मरने के बाद चिता पर जाते हैं, परंतु शर्मा जी जीते जी ही चिता पर लेट गये है, पत्नी को यह भी पता नही था कि उनके पति शर्मा जी के भीतर ईष्र्या द्वेष की जड़े कितनी गहराई तक प्रवेश कर चुकी हैं?
शर्मा जी की पत्नी नही जानती थी कि शर्मा जी इन दिनों पड़ोस के मिश्रा जी को लेकर सुलगे हुए हैं, उसके कयी कारण रहे हैँ, इस पृष्ठभूमि में पहला कारण यह था कि मिश्रा जी सरकारी विभाग में अफसर थे और शर्मा जी एक प्राईवेट फर्म में क्लर्क की नौकरी पर थे, मिश्रा जी का लोगों से व्यवहार अच्छा था, पड़ोस के काफी लोग उन्हें पसंद करते थे, जब कि शर्मा जी की वाणी कर्कश थी, बोलचाल किसी कोड़े की फटकार जैसी लगती थी, मिश्रा जी समझने और समझाने पर विश्वास रखते थे, तो शर्मा जी हर किसी से मामूली सी बात पर ताल ठोकने पर उतर आते थे!

परंतु शर्मा जी की पत्नी को शर्मा जी की चिंता हो रही थीं, पत्नी शर्मा जी के स्वभाव से परिचित थी, इस समय जब शर्मा जी गहरे सदमे से ग्रस्त दे और अवसाद की काली छाया उन पर मंडरा रही थीं पत्नी ने नोट किया कि शर्मा जी खिड़की से लगातार मिश्रा जी के आलीशान मकान को टकटकी लगाए देखते रहते हैं, पत्नी को सारा माजरा समझ में आ गया कि शर्मा जी मिश्रा जी के सुंदर भवन को देख कर दुखी हो गये है! इतने दुखी,कि वो सदमे की दुर्दशा को प्राप्त हो चुके हैं पत्नी इस विषय में समाधान खोजने में लगी थी! तभी संयोगवश शर्मा जी की पत्नी को मिश्रा जी की पत्नी मिलीं और मुस्कराते हुए बोलीं”मिसेज शर्मा! कल आपकी हमारे यहाँ दावत है, आप सपरिवार आंमत्रित हैं, दर असल नया मकान बनने पर डिनर का आयोजन करना चाहते थे, थोड़ी देर हो गई लेकिन आप जरूर आइएगा!” मिसेज शर्मा के होंठो पर मुस्कान थिरक उठी “हम जरूर आएंगे मिसेज मिश्रा! “उनहोने कहा और मुस्कराते हुए घर जाकर शर्मा जी के पास गयीं, पत्नी ने देखा कि शर्मा जी इस समय भी खिड़की से मिश्रा जी के मकान को टकटकी लगाए देखे जा रहे थे
” अब ये मातम मनाना छोड़ो जी, और मेरी बात सुनो “शर्मा जी की पत्नी ने कहा ” कल मिश्रा जी के यहाँ हमें डिनर का निमंत्रण है “
डिनर का नाम सुनते हीमानो शर्मा जी के शरीर में प्राण शक्ति का संचार हो गया, उनके मातमी चेहरे की रंगत में चमत्कारिक बदलाव आ गया! पत्नी की ओर देख कर वो प्रफुल्ल सवर में बोले “सच! कल मिश्रा के यहाँ डिनर है!”

“और नही तो क्या ” पतनी ने कहा, पत्नी जानती थी कि शर्मा जी दावत प्रेमी है, उनकी दृष्टि में दुष्ट से दुष्ट वह व्यक्ति भी सज्जन होता है जो उन्हें दावत पर आने का निमंत्रण देता है, इसीलिए मिश्रा को हमेशा कटखने कुत्ते की तरह घूरने वाले शर्मा जी जब अगले दिन मिश्रा जी के यहां डिनर पर पहुंचे तो मिश्रा जी से ऐसे मिले जैसे मिश्रा जी उनके सगे भाई हों, तारीफों के पुल बांध दिए, पहाड़ खड़े कर दिए, इसलिए सीधे साधे मिश्रा जी को लग रहा था कि शर्मा जी से अच्छा पडोसी कोई हो नही सकता!
शर्मा जी ने डिनर का एक एक व्यंजन चखा और डिनर कर लेने के बाद चलते समय मिश्रा जी से बोले “भयी मिश्रा जी, नये मकान की एक बार फिर से शुभकामनाएं, सच बात तो यह हैं कि आप के नये मकान की मुझे जितनी खुशी हुई है उतनी खुशी शायद ही किसी को हुई हो”

पत्नी ने पति शर्मा जी की इस बात को सुना इसलिए रास्ते में उसने शर्मा जी से कहा ” सुनो जी, तुम ने मिश्रा जी से झूठ क्यों बोला? “
कैसा झूठ? “
शर्मा जी ने पत्नी को घूरते हुए पूछा!
“यही कि तुम्हें मिश्रा के मकान बनने की खुशी हुई है? जब कि तुम्हें खुशी तो दूर मिश्रा जी के मकान बनने से इतनी तकलीफ हुई कि तुम सदमे की हालत में आ गये? “
“हां,सदमे में तो आ गया था लेकिन मिश्रा की दावत से अब कुछ समय के लिए ठीक हो गया हूं,ये दावत चीज ही ऐसी है “!

पत्नी ने जब पति की इस बात को सुना तो बुरा सा मुंह बना लिया वह जानती थी कि शर्मा जी पर जब तक दावत का असर रहेगा तब तक उनके ईष्र्या द्वेष के विकार अवकाश पर ही रहेंगे, जब ईष्र्या द्वेष का अवकाश समाप्त हो जाएगा और वो वापस शर्मा जी के भीतर जाग्रत होंगे तो शर्मा जी की वाणी से मिश्रा जी के प्रति विष वमन होना आंरभ हो जाएगा!
और फिर तीन दिन बाद! अवकाश पर गये शर्मा जी के ईष्र्या द्वेष वापस लौट आए,उन्होंने पुन:शर्मा जी के भीतर प्रवेश किया, शर्मा जी की वाणी से मिश्रा जी के प्रति विष वमन होना आंरभ हो गया, वो पड़ोस के ही गुप्ता जी से कह रहे थे “गुप्ता जी, ये मिश्रा बहुत कंजूस आदमी है, दावत भी इसने सस्ते में निपटा दी,जाने कहां से हलवाई बुलवाए, उन्हें कुछ भी दावत का सामान बनाना नही आता, दावत में इसके यहाँ का खाना जैसे तैसे निगला, इसकी नीयत में खोट है, हराम की कमाई है ,इसके यहाँ जब मैने दावत खाई तो घर आकर मेरी तबियत खराब हो गई “
जिस समय शर्मा जी बुरा सा मुंह बनाते हुए यह सब कह रहे थे तभी संयोगवश वहां मिश्रा जी का आगमन हो गया, अचानक मिश्रा जी को देख कर शर्मा जी गिरगिट का अवतार बन गये, बुरे मुंह पर प्रसनता के फूल खिलखिला उठे, मिश्रा जी को देख कर तुंरत कहने लगे _”अरे मिश्रा जी, बड़ी लंबी उम्र हैं आपकी,अभी आपको ही याद कर रहा था, ,भयी, तुम्हारी दावत तो कमाल की थी!”कहते कहते शर्मा जी ने मिश्रा जी का आलिंगन कर लिया!
गुप्ता जी बीच में खड़े शर्मा जी के नाटक को देख कर चकित हो गये थे, गुप्ता जी को क्या पता कि शर्मा जी के ईर्षा द्वेष इस समय अवकाश पर चले गए हैं!

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