N/A
Total Visitor
32.3 C
Delhi
Tuesday, July 8, 2025

JDU अध्यक्ष लालू यादव ने किया एलान,जातिगत जनगणना होकर रहेगा

बिहार में जाति आधारित जन-गणना हो रही थी। हाईकोर्ट ने चार मई को इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी। एक-दो नहीं, दर्जनभर वजह बताते हुए। स्टे ऑर्डर में अगली सुनवाई की तारीख 03 जुलाई दी गई तो राज्य सरकार ने अगले ही दिन अपील की कि जल्द सुनवाई कर फैसला दे दें। हाईकोर्ट ने नई तारीख 9 मई दे दी। हाईकोर्ट का निर्णय आने के बाद सत्ता और विपक्ष का संग्राम भी दिखा। राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव ने तो एलान कर दिया कि ‘जातिगत जनगणना’ होकर रहेगा। लेकिन, 31 पाराग्राफ में आया हाईकोर्ट का अंतरिम आदेश तो कुछ और संकेत दे रहा है। कोर्ट का अंतिम आदेश आना बाकी है। 9 मई की सुनवाई के लिए सरकार किन बिंदुओं पर तैयारी कर रही है, उसे समझने के लिए विधि विशेषज्ञों से अंतरिम आदेश पर बात की। इससे यही समझ बनती है कि नाम, काम, तरीका, सुरक्षा, लक्ष्य, अधिकार- ऐसे दर्जनभर बिंदुओं पर मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट ठहर-सा गया है। पाराग्राफ 21 से 31 तक को समझें तो सब साफ है।

राज्य को जन-गणना का अधिकार नहीं21/22. भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के लिस्ट-1 की 69 वीं इंट्री census है। इसमें स्पष्ट है कि इससे संबंधित कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है। राज्य को लिस्ट-2 पर नियम या कानून बनाने का अधिकार है। जनगणना कराने का अधिकार भारतीय संसद में निहित है।

इसपर सरकार की तैयारी

सरकार कायम रहेगी कि यह सर्वे है, जनगणना नहीं। हालांकि, अंतरिम आदेश में कई जगह जनगणना की स्पष्ट व्याख्या रहने के कारण यह आसान नहीं होगा।

फंड गलत, जानकारी का माध्यम-लक्ष्य भी गलत-असुरक्षित

  1. बिहार सरकार ने जाति आधारित सर्वे कराने का फैसला लिए जाने की जानकारी दी और बताया है कि सामान्य प्रशासन विभाग राज्य की आकस्मिकता निधि से इस काम को पूरा कराएगा। प्रधान सचिव की ओर से जिले के अधिकारियों को भेजे संदेश में लिखा गया है- ‘जाति सूची 2022 के निर्धारण के लिए बिहार में जाति आधारित गणना’। इसमें 17 तरह की जानकारी लेने वाला प्रारूप रखा गया, जिसमें ‘जाति’ भी एक है। परिवार के सदस्य की जाति और आमदनी की जानकारी परिवार के मुखिया से लेनी है, न कि व्यक्ति विशेष से। यह अपने आप में इस डाटा की सच्चाई को संदेहास्पद बना देता है। यानी, व्यक्ति की स्वैच्छिक जानकारी प्राप्त नहीं हो रही है। बिहार में नहीं रहे राज्य के लोगों का डाटा फोन से बात कर और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा सत्यापन कराने की बात कही गई है। कोर्ट का मानना है कि परिवार के मुखिया से प्राप्त डाटा को इस तरह सत्यापित नहीं किया जा सकता और वीडियो कॉन्फ्रेंस पर उपस्थित व्यक्ति का सत्यापन भी अनिवार्य है। अगर यह डाटा सुरक्षित नहीं रह सका तो भविष्य में यह उस व्यक्ति के खिलाफ साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल हो सकता है। इस सर्वे में उम्र, लिंग, वैवाहिक स्थिति, आय, शैक्षणिक योग्यता की भी जानकारी ली जा रही, जिसका मुख्य उद्देश्य हर व्यक्ति की जाति की पहचान करना है। यह उद्देश्य दिए गए नाम ‘जाति आधारित सर्वे’ से भी और ज्यादा स्पष्ट हो जा रहा है।

इसपर सरकार की तैयारी
सरकार डाटा हासिल करने के नियम में बदलाव का रास्ता निकाल सकती है। हर व्यक्ति से डाटा लेने का प्रावधान कर सकती है। वीडियो कांफ्रेंसिंग से सत्यापन की प्रक्रिया में और प्रावधान जोड़ सकती है। पक्ष रखेगी कि यह जाति जानने का प्रयास नहीं, जाति के आधार पर लोगों की गणना करने का प्रयास है।

सुप्रीम कोर्ट की अवमानना, सिर्फ जाति जानना उद्देश्य
24/25/26. सरकार ने कोर्ट को बताया कि पब्लिक डोमेन में सारा डाटा पहले से ही उपलब्ध है। लोगों ने नौकरी या समाज कल्याण की योजनाओं को पाने के लिए यह जानकारी पब्लिक डोमेन में दे रखा है। कोर्ट ने सरकार की ही बात को आधार बनाकर कहा कि जब सारी सूचनाएं पहले से ही उपलब्ध हैं तो जनता का इतना का इतना पैसा इस काम में खर्च क्यों किया जा रहा? जहां तक पिछड़ेपन को जांचने का सवाल है तो इसके लिए आयोग है ही, वह इस पर विचार करता। जिस तरह से परिवार के मुखिया, रिश्तेदार या पड़ोसी से जाति की जानकारी ली जा रही है, उसपर कोर्ट का मानना है कि यह प्रक्रिया पिछड़ेपन को चिह्नित करने के लिए नहीं, बल्कि बिहार में रहने वाले लोगों की जाति का पता लगाने के लिए की जा रही है। इसमें यह भी गाइडलाइन है कि बच्चे की जाति निर्धारण के लिए मां से पिता की जाति पूछी जाए। यह भी अनिवार्य किया गया है कि मां किसी अन्य के सामने बच्चे के पिता की यह जानकारी जाहिर करे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की अवमानना कर, सर्वे में निर्देश है कि मां की जाति को संतान की जाति नहीं लिखा जाए। सुप्रीम कोर्ट यह भी स्पष्ट कर चुका है कि बच्चे का लालन-पालन जिन परिस्थितियों में हुआ है, उसके आधार पर उसकी जाति का निर्धारण हो सकता है।

इसपर सरकार की तैयारी
सरकार इस बात पर कायम रहने का प्रयास करेगी कि राज्य की जनता की विभिन्न स्तर पर जानकारी ली जाएगी, ताकि उस हिसाब से सम्यक योजना बनाई जा सके। यहां सरकार को प्रावधान लाना पड़ सकता है कि व्यक्ति से ही उसकी व्यक्तिगत जानकारी ली जाएगी। सरकार कायम रहेगी कि उद्देश्य जाति जानना नहीं, जाति के आधार पर स्थिति जानना है। बच्चे की जाति निर्धारण में सुप्रीम कोर्ट का सभी निर्देश मानने के लिए सरकार तैयार होगी और महिला से उसकी संतान के पिता की जाति पूछने की बाध्यता भी समाप्त करेगी।


जब सब राजी थे तो कानून क्यों नहीं बनाया
27/28. कोर्ट ने कहा कि विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा सर्वसम्मति से सर्वे कराने के संकल्प के बाद अगर कैबिनेट से भी सहमति हो चुकी थी तो यह समझ से बाहर है कि कानून बनाने में सक्षम विधानमंडल ने ऐसा क्यों नहीं किया? सरकार के इस जवाब से भी कोर्ट सहमति नहीं कि यह विलंब से लाया गया वाद है, क्योंकि यह जनता के हित से जुड़ी याचिका है। कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से संतुष्ट हैं कि जिस तरह से सर्वेक्षण किया जा रहा है, वह राज्य के लिए निर्धारित नीति के तहत नहीं है।

इसपर सरकार की तैयारी
राज्य सरकार के पास इस सवाल का एकमात्र विकल्प यही हो सकता है कि वह अपनी बात दुहराए कि यह जनगणना नहीं है, इसलिए राज्य की आम आबादी के हित में विधानमंडल और कैबिनेट की स्वीकृति के आधार पर फैसला कर अधिसूचना जारी की गई।

अनधिकृत जानकारी जुटाएंगे-बांटेंगे! गलत है, इसलिए तत्काल रोक
29/30/31. उपरोक्त तर्कों के आधार पर कोर्ट इसे जाति आधारित सर्वे के नाम पर की जा रही ‘जनगणना’ मानता है, जिसका अधिकार जनगणना कानून 1948 के तहत भारतीय संसद में समाहित है। जनगणना कानून के तहत जानकारी लेने के दरम्यान भी सूचनाएं ली जाती हैं, लेकिन वह सूचनाएं सुरक्षित रहती हैं और न तो उन्हें कोई देख सकता है, न ही साक्ष्य के रूप में वह सूचनाएं स्वीकार्य हैं। बिहार के दोनों सदनों ने इसे पास किया, लेकिन इसके लिए हुए विमर्श और इसके उद्देश्यों की जानकारी रिकॉर्ड में नहीं है। इसका 80 फीसदी कार्य पूरा भी हो गया है। डाटा की सत्यता और सुरक्षा के लिए भी सरकार को पूरी प्रक्रिया स्पष्ट करनी चाहिए। अत: प्रथम दृष्टया कोर्ट का मानना है कि जिस तरह जनगणना के रूप में जाति आधारित सर्वे किया जा रहा है, वह राज्य के अधिकार में नहीं बल्कि भारतीय संसद के अधिकार क्षेत्र में है। इसके अलावा, यह भी अधिसूचना से यह भी पता चलता है कि सरकार इस डाटा को राज्य विधानसभा, सत्तारूढ़ व विपक्षी दलों के बीच शेयर करेगी, जो चिंता का विषय है। यह निजता के अधिकार पर निश्चित रूप से बड़ा सवाल है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने जीवन का अधिकार माना है। इन परिस्थितियों में राज्य सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिका पर अंतिम फैसले तक जाति आधारित इस सर्वे को तत्काल प्रभाव से बंद करे, अब तक एकत्रित डाटा को सुरक्षित रखे और किसी से शेयर नहीं करे।

इसपर सरकार की तैयारी
एक ही रास्ता दिखाई देता है कि सरकार पटना हाईकोर्ट में अपनी दलीलों के आधार पर फैसले का इंतजार करे और अगर अंतरिम फैसले की लाइन पर ही अंतिम फैसला आता है तो सुप्रीम कोर्ट का रुख करे।

newsaddaindia6
newsaddaindia6
Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

Advertisement

spot_img

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

2,300FansLike
9,694FollowersFollow
19,500SubscribersSubscribe

Advertisement Section

- Advertisement -spot_imgspot_imgspot_img

Latest Articles

Translate »