लखनऊ, 07 अगस्त 2025: उत्तर प्रदेश सरकार की एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली (IGRS), जिसे जनसुनवाई पोर्टल के नाम से जाना जाता है, जनता की समस्याओं के त्वरित समाधान का वादा लेकर शुरू की गई थी। मगर यह पोर्टल अब फर्जी निस्तारण, लीपापोती और प्रशासनिक निष्क्रियता का पर्याय बनता जा रहा है। शिकायतों के कागजी निपटारे और अधिकारियों की जवाबदेही से बचने की प्रवृत्ति ने न केवल पीड़ितों को न्याय से वंचित किया है, बल्कि सरकार की साख पर भी सवाल उठाए हैं। आगामी विधानसभा चुनावों से पहले यह मुद्दा सरकार के लिए चुनौती बन सकता है।
बीकेटी के गढ़ा गांव में किसानों को भारी खामियाजा
लखनऊ की बीकेटी तहसील के सहादतनगर गढ़ा गांव में सरकारी तालाब, चकमार्ग, परती, नाली और बंजर जमीनों पर अवैध कब्जे की शिकायत करना पूर्व प्रधान रामकिशन सहित आधा दर्जन किसानों को महंगा पड़ गया। इन ग्रामीणों ने नीरू मेमोरियल सोसाइटी के कर्ताधर्ता अनिल अग्रवाल द्वारा सरकारी जमीनों पर कब्जे की शिकायत पहले तहसील प्रशासन और फिर जनसुनवाई पोर्टल पर की। मगर जांच अधिकारी ने गलत जानकारी देकर शिकायत को निस्तारित कर दिया।
शिकायतकर्ताओं पर ही बनाया गया दबाव
किसानों का आरोप है कि शिकायत वापस लेने के लिए उन पर दबाव बनाया गया। दबाव न मानने पर लेखपाल ने शिकायत में उल्लिखित सरकारी जमीनों की जांच के बजाय अन्य सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे का आरोप लगाकर शिकायतकर्ताओं के खिलाफ राजस्व संहिता 2006 की धारा 67 के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया। इससे शिकायतकर्ता डरकर आगे पैरवी न करें। किसानों का कहना है कि जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत करना भ्रष्टाचारियों से लोहा लेने जैसा है, क्योंकि शिकायतकर्ता ही निशाने पर आ जाते हैं।
तहसील प्रशासन पर गंभीर आरोप
किसानों ने तहसील प्रशासन पर नीरू मेमोरियल सोसाइटी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सोसाइटी अपने प्रोजेक्ट्स के लिए सरकारी तालाब, चकमार्ग और अन्य जमीनों की नियम-विरुद्ध अदला-बदली करवाने में जुटी है। तहसील प्रशासन ने ऐसी जमीनों की अदला-बदली को विधि-विरुद्ध अनुमोदन भी दे दिया। दोबारा जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत (संदर्भ संख्या: 410157250002665) में किसानों ने लेखपाल की फर्जी रिपोर्ट और सरकारी जमीनों को कब्जामुक्त कराने की मांग की, लेकिन इस बार भी तहसील प्रशासन ने लीपापोती कर शिकायत को फर्जी तरीके से निस्तारित कर दिया।
प्रशासन की निष्क्रियता से बढ़ा आक्रोश
किसानों का कहना है कि सोसाइटी की ऊंची पहुंच के आगे छोटे अधिकारी कार्रवाई से कतराते हैं। यह स्थिति न केवल प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है, बल्कि जनसुनवाई पोर्टल की उपयोगिता को भी कठघरे में खड़ा करती है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी शिकायतों का उचित समाधान नहीं हुआ, तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे।
आगामी चुनावों पर पड़ सकता है असर
जानकारों का मानना है कि जनसुनवाई पोर्टल पर फर्जी निस्तारण और प्रशासनिक लापरवाही का यह रवैया सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ता असंतोष आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ दल के लिए चुनौती बन सकता है।