श्रीमद्भागवत के चरम श्लोक के रूप में उल्लेख है कि समस्त ब्रह्मांड को ज्ञान देने और उद्धार करने के लिए ही सूर्य जब सिंह राशि में थे, रोहिणी नक्षण और अष्टमी तिथि थी, भगवान कृष्ण ने उसी रात 12 बजे जन्म लिया था। श्री रामानुज संप्रदाय इसी मूल मंत्र के आधार पर दक्षिण भारतीय परंपराओं को निर्वहन करते हुए सदियों से श्रीकृष्ण की आराधना और सेवा-पूजा करता आ रहा है। दावा है कि वृंदावन में रंगजी मंदिर उत्तर भारत का सबसे बड़ा और भव्य मंदिर है। यहां सभी देवी-देवताओं को विशेष रूप से तिथियों और नक्षत्रों के अनुसार ही पूजा जाता है। प्रभु को नाबालिग मान कर उनके संरक्षक के रूप में आहार-विहार और व्यवहार की सभी क्रियाएं विधि-विधान से संपन्न होती हैं।
धार्मिक नगरी वृंदावन में द्रविड़ शैली में निर्मित सबसे भव्य और बड़ा ऐसा अद्भुत मंदिर है, जिसके निर्माण में उत्तर भारत की कलात्मकता का संगम दिखाई देता है। इसे रंगजी मंदिर और रंगनाथजी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। जन जन की आस्था के केंद्र इस मंदिर में मंगलवार को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। यहीं पर भगवान विष्णु मां लक्ष्मी को कृष्ण रूप में प्राप्त हुए
मंदिर के सेवक तिरुपतिजी ने बताया कि मान्यता के अनुसार, मां गोदा देवी ने भगवान रंगमन्नार या भगवान विष्णु को वृंदावन में पाने के लिए उपवास और प्रार्थना की थी। वे यमुना किनारे साधनारत रहीं। भगवान रंगनाथ ने उनका दूल्हा बनकर उनकी इच्छा पूरी की। यहां भगवान रंगनाथ को दूल्हे के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के निर्माण की परिकल्पना वैकुंठधाम में निवासरत देवी-देवताओं पर की गई थी, ताकि श्रद्धालुओं को वैकुंठधाम में प्रभु की दिनचर्या, पूजन-पाठ, आहार विहार के दर्शन सुलभ हो सकें।
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