- ‘भए प्रगट गोपाला… जय कन्हैयालाल’ के जयघोष से गूंज उठा मंदिर परिसर
भादो की अंधेरी रात, ठीक 12 बजे… उल्लास का मकरंद महका और उत्सव से मठ-मंदिर व घर-आगंन चहका। किसी के बांकेबिहारी तो किसी के कृष्णमुरारी, किसी के संगी-साथी तो किसी के सारथी के प्रकट होने पर शैव और वैष्णव भक्तों का भक्ति से पावस हुआ। शंखनाद व घंट-घडिय़ाल की ध्वनि में मंत्रों संग बधाई व सोहर गीत फूट पड़ा। नन्हे कान्हा की बलइयां उतारी और मुकुट श्रृंगार कर रूप संवारी। लड्डू गोपाल को झूले में झुलाया और माखन-मिश्री का भोग लगाया। हाथी घोड़ा पालकी… जय कन्हैयालाल की जयघोष से पूरा परिसर गूंजा। जन्म की पावन महाबेला में इंद्र देव भी बरखा की बूंदों के रूप में साक्षी बनकर धन्य हुए।
वसुदेव सुतं देव कंस चाणूर मर्दनम, देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्… इन मंत्रों के साथ ही बाबा विश्वनाथ के धाम में पहली बार लड्डू गोपाल का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। जन्म के ढाई घंटे बाद ही लड्डू गोपाल ने बाबा विश्वनाथ के मंगला स्वरूप के दर्शन भी किए। पहली बार लड्डू गोपाल और बाबा विश्वनाथ के एक साथ दर्शन देश ही नहीं दुनिया भर के सनातनधर्मियों ने ऑनलाइन किए।
मध्यरात्रि में जैसे ही भगवान लड्डू गोपाल का जन्म हुआ तो पूरा प्रांगण हर-हर महादेव के जयघोष के साथ ही जय कन्हैया लाल की… के जयकारे से गूंज उठा। शंख वादन, घंटा, घड़ियाल, डमरू की निनाद और वेदमंत्रों के साथ भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव का उल्लास धाम के कण-कण में नजर आ रहा था। श्री काशी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग को भगवान कान्हा को प्रिय मोर पंख का मुकुट धारण कराया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर के CEO विश्व भूषण मिश्र ने कहा कि पहली बार मंदिर के गर्भगृह में भगवान लड्डू गोपाल बाल रूप में पधारे है।
शास्त्रों के अनुसार, जब भगवान कृष्ण का धरती पर जन्म हुआ तो उनका बाल रूप देखने शिव स्वयं कैलाश से दर्शन करने आए थे। हालांकि, मैया यशोदा ने शिव जी से विनती की की आप कन्हैया को सीधे नहीं बल्कि पानी में परछाई देखिए, नहीं तो आपका भयंकर रूप देखकर बच्चा डर जाएगा। इसके बाद भगवान शिव ने बाल रूप कृष्ण का दर्शन किया।