संभल (उत्तर प्रदेश), 6 जून 2025, शुक्रवार: उत्तर प्रदेश के संभल में स्थित शाही जामा मस्जिद एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला और गहरा गया है, क्योंकि मुरादाबाद के इतिहासकार डॉ. अनुपम सिंह ने 1968 के सरकारी गजेटियर के हवाले से दावा किया है कि यह मस्जिद पहले हरिहर मंदिर थी। उनके पास मौजूद दुर्लभ दस्तावेज और तस्वीरें इस विवादित मामले में नया मोड़ ला रही हैं।
1968 का गजेटियर और उसका खुलासा
डॉ. अनुपम सिंह के अनुसार, 1968 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित मुरादाबाद जिले के गजेटियर में साफ तौर पर जामा मस्जिद के स्थान पर हरिहर मंदिर का उल्लेख है। यह गजेटियर उस समय की आईएएस अधिकारी इशा बसंती जोशी ने तैयार किया था, जिसे इलाहाबाद गवर्नमेंट प्रेस से प्रकाशित किया गया। उस दौर में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू था और प्रशासन कांग्रेस के अधीन था। डॉ. सिंह के पास इस गजेटियर की अंतिम प्रति मौजूद है, जिसे उन्होंने इलाहाबाद से प्राप्त किया। इस दस्तावेज में मस्जिद की तस्वीर के साथ हरिहर मंदिर का नाम दर्ज है, जो उनके दावे का आधार है।
इतिहास के निशान और कोर्ट का इंतजार
डॉ. सिंह का कहना है कि मस्जिद परिसर में मंदिर के प्राचीन अवशेष मौजूद हैं, जो इस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं। हालांकि, यह मामला वर्तमान में कोर्ट में विचाराधीन है और विवादित बना हुआ है। उन्होंने सुझाव दिया कि सच्चाई का पता लगाने के लिए पुरातत्व विभाग की गहन जांच और इतिहासकारों की विशेषज्ञता जरूरी है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह कोर्ट के अंतिम फैसले का सम्मान करेंगे।
क्यों चर्चा में है जामा मस्जिद?
संभल की जामा मस्जिद पहले भी कई बार विवादों के केंद्र में रही है। इसके हरिहर मंदिर होने के दावे समय-समय पर उठते रहे हैं। डॉ. सिंह के इस नए खुलासे ने इस बहस को और हवा दे दी है। गजेटियर जैसे सरकारी दस्तावेज का हवाला देकर किया गया यह दावा न केवल ऐतिहासिक बल्कि सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
आगे क्या?
फिलहाल, सभी की निगाहें कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं। क्या यह स्थान वाकई हरिहर मंदिर था, या यह केवल ऐतिहासिक दस्तावेजों का एक दृष्टिकोण है? इस सवाल का जवाब शायद पुरातत्व विभाग की जांच और कोर्ट का अंतिम निर्णय ही दे पाएगा। तब तक, संभल की जामा मस्जिद और उसका इतिहास चर्चा का विषय बना रहेगा।