पुरी (उड़ीसा), 26 जून 2025: भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथ यात्रा का उत्साह पूरे देश में छाया हुआ है। आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को लाखों श्रद्धालु पुरी के जगन्नाथ मंदिर में उमड़ पड़ते हैं, जहां भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर अपनी मौसी माता गुंडिचा के घर की सैर को निकलते हैं। यह अनूठी परंपरा और भगवान की रहस्यमयी लीला हर साल भक्तों के बीच उत्साह और श्रद्धा का सैलाब लाती है।
कौन हैं माता गुंडिचा?
माता गुंडिचा, जगन्नाथ मंदिर के निर्माणकर्ता राजा इंद्रद्युम्न की पत्नी थीं, जिन्हें भगवान जगन्नाथ की मौसी का दर्जा प्राप्त है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर, कलिंग वास्तुकला का शानदार नमूना है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ सात दिनों तक विश्राम करते हैं और फिर अपने मंदिर लौट जाते हैं।
पौराणिक कथा: भगवान का माता गुंडिचा से वादा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न को भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में दर्शन देकर समुद्र तट से प्राप्त लकड़ी से उनकी मूर्ति बनाने का आदेश दिया। मूर्ति निर्माण का कार्य देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा ने संभाला, लेकिन शर्त रखी कि 21 दिनों तक कोई कार्यस्थल में प्रवेश नहीं करेगा। उत्सुकता में राजा ने समय से पहले दरवाजा खोल दिया, जहां उन्हें अधूरी मूर्तियां मिलीं। भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि इन्हीं मूर्तियों की स्थापना की जाए।
जब मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए ब्रह्मा जी को बुलाने राजा इंद्रद्युम्न ब्रह्मलोक गए, तब रानी गुंडिचा ने तप में लीन होने का फैसला किया। उन्होंने भगवान से वचन लिया कि वह उनसे मिलने जरूर आएंगे। यही वचन आज की रथ यात्रा का आधार है, जिसमें भगवान हर साल अपनी मौसी के घर जाते हैं।
गुंडिचा मार्जन: भगवान के स्वागत की तैयारी
रथ यात्रा से एक दिन पहले गुंडिचा मंदिर में ‘गुंडिचा मार्जन’ नामक विशेष अनुष्ठान होता है। इस दौरान मंदिर की साफ-सफाई कर इसे शुद्ध किया जाता है, ताकि भगवान के आगमन की भव्य तैयारी हो सके।
माता गुंडिचा का प्यार: पिठादो और रसगुल्ले का भोग
जब भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर पहुंचते हैं, तो माता गुंडिचा उनका स्वागत पारंपरिक पकवानों से करती हैं। इनमें खास तौर पर ‘पिठादो’ (एक विशेष उड़िया मिठाई) और रसगुल्ला शामिल हैं। मान्यता है कि भगवान को ये व्यंजन अत्यंत प्रिय हैं। मंदिर में कई तरह के स्वादिष्ट भोग तैयार किए जाते हैं, जो भक्तों में भी प्रसाद के रूप में बांटे जाते हैं।
भगवान की रहस्यमयी लीला
रथ यात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ 15 दिनों तक ‘ज्वर’ से पीड़ित रहते हैं, जिसके चलते मंदिर के पट बंद रहते हैं। स्वस्थ होने के बाद ही वह रथ पर सवार होकर मौसी के घर की सैर को निकलते हैं। यह परंपरा भगवान की मानवीय लीलाओं को दर्शाती है, जो भक्तों को उनकी निकटता का एहसास कराती है।
जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रतीक भी है। माता गुंडिचा के घर में भगवान का स्वागत और उनके प्रिय पकवानों का भोग इस उत्सव को और भी खास बनाता है।