भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार को अपने पहले स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल SSLV-D1 को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से लॉन्च कर नया इतिहास रच दिया है। SSLV-D1, 750 छात्रों द्वारा निर्मित सैटेलाइट ‘आजादी सैट’ और पृथ्वी अवलोकन उपग्रह-02′ (EOS-02) को भी अपने साथ ले गया है। देश के सबसे छोटे रॉकेट की लॉन्चिंग तो सफल रही लेकिन मिशन के अंतिम चरण में वैज्ञानिकों को थोड़ी निराशा हाथ लगी है। दरअसल, इसरो अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया है कि SSLV-D1 ने सभी चरणों में अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन किया और सैटेलाइट को कक्षा में भी पहुंचा दिया। लेकिन मिशन के अंतिम चरण में, कुछ डाटा की क्षति हो रही है जिससे सैटेलाइट से संपर्क टूट गया है। इसरो मिशन कंट्रोल सेंटर लगातार डाटा लिंक हासिल करने का प्रयास कर रहा है। हम जैसे ही लिंक स्थापित कर लेंगे फिर देश को सूचित करेंगे।
बता दें कि SSLV-D1 देश का सबसे छोटा रॉकेट है। 110 किलो वजनी SSLV तीन स्टेज का रॉकेट है जिसके सभी हिस्से सॉलिड स्टेज के हैं। इसे महज 72 घंटों में असेंबल किया जा सकता है। जबकि बाकी लॉन्च व्हीकल को करीब दो महीने लग जाते हैं।
माइक्रो श्रेणी के EOS-02 उपग्रह में इंफ्रारेड बैंड में चलने वाले और हाई स्पेशियल रेजोल्यूशन के साथ आने वाले आधुनिक ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग दिए गए हैं और इसका वजन 142 किलोग्राम है। EOS-02 10 महीने के लिए अंतरिक्ष में काम करेगा। वहीं आजादी सैट आठ किलो का क्यूबसैट है, इसमें 50 ग्राम औसत वजन के 75 उपकरण हैं। इन्हें ग्रामीण भारत के सरकारी स्कूलों की छात्राओं ने आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर इसरो के वैज्ञानिकों की मदद से बनाया। वहीं स्पेस किड्स इंडिया के विद्यार्थियों की टीम ने धरती पर प्रणाली तैयार की जो उपग्रह से डाटा रिसीव करेगी। यह सैटेलाइट नई तकनीक से लैस है जो कि फॉरेस्ट्री, एग्रीकल्चर, जियोलॉजी और हाइड्रोलॉजी जैसे क्षेत्रों में काम करेगा।
SSLV रॉकेट की लॉन्चिंग से PSLV छोटे सैटेलाइट्स के लोड से मुक्त हो जायेगा क्योंकि वह सारा काम अब एसएसएलवी करेगा। ऐसे में पीएसएलवी को बड़े मिशन के लिए तैयार किया जाएगा।
भविष्य में बढ़ते स्माल सैटेलाइट मार्केट और लॉन्चिंग को देखते हुए SSLV-D1 कारगर साबित होने वाला है। इसकी लॉन्चिंग के बाद से विदेशों में भी इसकी मांग बढ़ जाएगी। एसएसएलवी अपने साथ 500 किलोग्राम वजनी पेलोड ले जाने में सक्षम है, जो कि 500 किलोमीटर की ऊंचाई की कक्षा में सैटेलाइट स्थापित करेगा। जबकि इसकी तुलना में पीएसएलवी 1750 वजनी पेलोड को सन सिंक्रोनस ऑर्बिट यानी 600 किलोमीटर ऊपर कक्षा में स्थापित कर सकता है।