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Thursday, October 31, 2024

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तबीयत ज्यादा खराब है? फिलहाल जवाब तस्वीरों और प्रतिक्रिया में है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नामांकन के दौरान मंगलवार को वाराणसी में दिग्गजों का जुटान हुआ। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं गए। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और अपने सबसे करीबी भाजपाई दिग्गज सुशील कुमार मोदी के निधन के बाद मंगलवार को पटना में राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि का आदेश दिया, मगर खुद नीतीश कुमार पटना में रहकर भी दीघा घाट नहीं गए। 16 वर्षों से हर साल 14 मई को अपनी दिवंगत पत्नी मंजू सिन्हा की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि देने के लिए पटना के कंकड़बाग स्थित पार्क में उनकी प्रतिमा स्थल तक जाने वाले नीतीश कुमार 17वीं पुण्यतिथि पर मंगलवार को नहीं गए। सवाल उठना स्वाभाविक था, तभी तबीयत खराब होने की एक पंक्ति की सरकारी विज्ञप्ति जारी हुई।

लेकिन, इन तीन में से दो स्थानीय मौकों पर उनका नहीं जाना; उनकी पार्टी जनता दल यूनाईटेड के नेताओं को चिंता में डाल रहा है। बिहार की आम जनता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो के दौरान मुख्यमंत्री की तस्वीरों को देखकर विचलित है। सवाल कर रही है कि कहीं ज्यादा मुश्किल में तो नहीं नीतीश कुमार? मांग उठ रही कि सीएम नीतीश कुमार का हेल्थ बुलेटिन जारी हो।

तब भाजपा कर रही थी हेल्थ बुलेटिन की मांग, अब चुप
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले जैसे न हैं, न दिख रहे हैं- यह बात पिछले करीब नौ महीने से फिज़ा में है। तब महागठबंधन की सरकार थी। जदयू की कमान तत्कालीन अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह संभाल रहे थे। तब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार अजीब बयानों और अलग हरकतों के कारण खबरों में आने लगे थे। मंत्री अशोक चौधरी का सिर टकराने, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को तू-तड़ाक करने, मीडिया के सामने हाथ जोड़कर झुकने, विधानमंडल के दोनों सदनों में जनसंख्या नियंत्रण का फॉर्मूला बताने… जैसी कई घटनाओं के बाद भाजपा ने आरोप लगाया कि सीएम नीतीश कुमार के साथ साजिश रची जा रही है। उन्हें गलत दवा दी जा रही है।

तत्कालीन विपक्षी दल भाजपा ने तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हेल्थ बुलेटिन की मांग की थी। 28 जनवरी को नीतीश कुमार वापस राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में आ गए और भाजपा की मांग यहीं खत्म हो गई। हालांकि, इसके बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कभी सहज नहीं दिखे। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के सामने मंच पर उनकी शान में कसीदे गढ़े तो भी अंदाज पर सवाल उठा। 400 सीटों की जगह 4000 लोकसभा सीटों पर जीत की बात कही, तब भी। चाणक्य स्कूल ऑफ पालिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा सीधे कहते हैं- “भाजपा को पहल करनी चाहिए, अगर सच में उनके साथ नीतीश कुमार को लेकर पार्टी को 28 जनवरी से पहले चिंता थी या अब है।”

कुछ तो गड़बड़ है, सवाल हर तरफ उठ रहा
अब पिछले रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रोड शो में उनकी गाड़ी पर दिखे तो यह बात तेजी से उठी… कि कुछ तो गड़बड़ है। इसके 24 घंटे बाद ही पांच दशकों पुराने उनके साथी सुशील मोदी के निधन की खबर सामने आयी और उसके अगले दिन सरकार की ओर से बताया गया कि मुख्यमंत्री बीमार हैं, इसलिए उनकी सारी सार्वजनिक गतिविधियां स्थगित की जा रही हैं। यह समझ में आया कि पुराने साथी का इस तरह साथ छोड़ना उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर गया होगा। लेकिन, मुख्यमंत्री सचिवालय की ओर से नीतीश कुमार की बीमारी को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। हालत यह है कि मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारी इस सवाल को सीधे टाल जा रहे हैं कि वह किस तरह से बीमार हैं।

आम जनता यह जानना चाह रही है कि नीतीश कुमार की बीमारी का वास्ता उनकी मानसिक स्थिति से तो नहीं है और अगर ऐसा है भी तो उनका इलाज सही तरीके से हो रहा है या नहीं। वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि “ऊर्जा से ओतप्रोत, सजग, हंसमुख और मिलनसार नीतीश कुमार थके-हारे, निराश-हताश, परेशान और बीमार लग रहे हैं। सवाल उठना लाजिमी है कि उनकी ऐसी स्थिति इतनी जल्दी कैसे बदलगी? क्या वह बीमार हैं? परेशानी राजनीतिक है या शारीरिक-मानसिक, लोग जानना चाहते हैं। इसलिए, हेल्थ बुलेटिन की मांग कहीं से भी गलत नहीं है।”

देश के नामी फिजिशियन पटना में, उन्हें भी नहीं पता
राज्य के कई प्रतिष्ठित चिकित्सकों के साथ उनके करीबी रहे पद्मश्री डॉ. गोपाल प्रसाद सिन्हा से भी बात की। उन्होंने कहा कि इस बारे में न तो उन्हें जानकारी है और न किसी ने उन्हें बुलाया है। डॉ. गोपाल प्रसाद सिन्हा फिजिशियन और न्यूरो विशेषज्ञ के रूप में देशभर में विख्यात हैं। उन्हें जब जानकारी नहीं और सरकार की ओर से बुलेटिन नहीं जारी हो रहा तो जदयू-भाजपा के नेताओं की हालत समझी जा सकती है। दोनों दलों के दिग्गजों से पूछने पर जवाब मिला- “तबीयत खराब है।” सवाल वहीं रह गया कि हुआ क्या है कि आखिर अपने इतने करीबी मित्र की अंत्येष्टि और अपनी पत्नी की पुण्यतिथि पर नहीं जाने का मतलब कुछ तो ज्यादा परेशानी है, क्योंकि सामान्य बुखार में तो वह पहले ऐसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को दरकिनार नहीं करते थे। सिर्फ कोरोना के समय ही उन्होंने ‘दूरी, जरूरी’ का फॉर्मूला स्वीकार किया था।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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