तेहरान, 23 जून 2025: एक सनसनीखेज फैसले में, ईरानी संसद ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज’ को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। यह कदम अमेरिका द्वारा ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज और इस्फाहान—पर किए गए हमलों के जवाब में उठाया गया है। हालांकि, अंतिम फैसला सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के हाथ में है, लेकिन इस खबर ने वैश्विक ऊर्जा बाजार में हड़कंप मचा दिया है। भारत समेत कई देशों की नजर अब इस जलमार्ग पर टिकी है, जो दुनिया के 20% तेल और गैस की आपूर्ति का मुख्य रास्ता है।
स्ट्रेट ऑफ होर्मुज: दुनिया की आर्थिक नब्ज
ईरान और ओमान के बीच बमुश्किल 33 किलोमीटर चौड़ा यह जलमार्ग फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। इसकी सबसे संकरी शिपिंग लेन केवल 3 किलोमीटर चौड़ी है, जिससे यह दुनिया का सबसे संवेदनशील समुद्री रास्ता बन जाता है। वोर्टेक्सा के आंकड़ों के मुताबिक, 2022 से अब तक हर दिन 1.78 से 2.08 करोड़ बैरल कच्चा तेल और ईंधन इस रास्ते से गुजरता है। 2024 में यहां से 2.03 करोड़ बैरल तेल और 29 करोड़ क्यूबिक मीटर LNG की आपूर्ति हुई। इसका बंद होना वैश्विक ऊर्जा बाजार को झटका दे सकता है, जिससे तेल की कीमतें 80 से 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।
भारत के लिए खतरे की घंटी?
भारत, जो अपने 55 लाख बैरल प्रतिदिन के तेल आयात का 40% हिस्सा—लगभग 20 लाख बैरल—स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के रास्ते मिडिल ईस्ट से लाता है, इस फैसले से सतर्क हो गया है। ईराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत जैसे देश भारत के प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता हैं, और ये सभी इस जलमार्ग पर निर्भर हैं। अगर यह रास्ता बंद होता है, तो भारत में तेल की कीमतों में उछाल और आपूर्ति में रुकावट का खतरा मंडरा सकता है।
हालांकि, भारत ने पहले से ही अपनी रणनीति को मजबूत कर रखा है। रूस, जो अब भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है, जून 2025 में 20-22 लाख बैरल प्रतिदिन तेल भेज रहा है। इसके अलावा, अमेरिका, ब्राजील और अफ्रीका से तेल आयात के वैकल्पिक रास्ते—जैसे स्वेज नहर, केप ऑफ गुड होप और प्रशांत महासागर—भारत को संकट से निपटने में मदद कर सकते हैं। गैस आपूर्ति की बात करें तो भारत का प्रमुख सप्लायर कतर इस जलमार्ग का इस्तेमाल नहीं करता, और ऑस्ट्रेलिया, रूस व अमेरिका से LNG आयात भारत की ऊर्जा सुरक्षा को और मजबूत करता है।
वैश्विक उथल-पुथल का खतरा
स्ट्रेट ऑफ होर्मुज के बंद होने से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है। ओपेक देश—सऊदी अरब, ईरान, यूएई, कुवैत और इराक—अपना अधिकांश तेल इसी रास्ते से निर्यात करते हैं। यूएई और सऊदी अरब ने वैकल्पिक पाइपलाइनों के जरिए 26 लाख बैरल प्रतिदिन की क्षमता विकसित की है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। एशियाई देशों—खासकर चीन, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया—पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा, जो 2022-23 में इस रास्ते से 67% तेल आयात कर रहे थे।
ईरान का रुख और भविष्य
ईरानी संसद की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के सदस्य मेजर जनरल कोवसारी ने सरकारी मीडिया प्रेस टीवी को बताया, “यह फैसला क्षेत्रीय तनाव के जवाब में जरूरी है, लेकिन अंतिम निर्णय सुप्रीम काउंसिल लेगी।” विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान इस कदम से वैश्विक दबाव बनाना चाहता है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा।
भारत की तैयारी
भारत की विविध तेल आपूर्ति रणनीति उसे इस संकट से निपटने में सक्षम बनाती है। रूस के अलावा, अमेरिका और अफ्रीका से बढ़ता आयात भारत को लचीलापन देता है। फिर भी, तेल की कीमतों में उछाल से महंगाई बढ़ सकती है, जिसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा।
नजरें अब सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के अंतिम फैसले पर टिकी हैं। क्या यह जलमार्ग बंद होगा, या यह सिर्फ एक रणनीतिक चेतावनी है? दुनिया सांस थामे इंतजार कर रही है।