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Tuesday, June 24, 2025

असंवेदनशील कॉमेडी का विवाद: समय रैना पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती

नई दिल्ली, 6 मई 2025, मंगलवार। कॉमेडी के नाम पर मर्यादा लांघने का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार निशाने पर हैं मशहूर कॉमेडियन समय रैना, जिनकी मुश्किलें सुप्रीम कोर्ट के तल्ख रुख के बाद और बढ़ गई हैं। विकलांग व्यक्तियों और दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे लोगों का मजाक उड़ाने के आरोप में रैना समेत चार अन्य लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है।

जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने सख्त लहजे में चेतावनी दी कि अगर रैना और अन्य आरोपी कोर्ट में हाजिर नहीं हुए, तो उनके खिलाफ कठोर कदम उठाए जाएंगे। कोर्ट ने मुंबई पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी कर यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि सभी आरोपी अगली तारीख पर कोर्ट में मौजूद हों। जस्टिस कांत ने दो टूक कहा, “अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को नीचा दिखाया जाएगा, तो हम ऐसी स्वतंत्रता को सीमित कर देंगे।” उन्होंने साफ किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कोई असीमित अधिकार नहीं है, और इसका दुरुपयोग किसी को अपमानित करने के लिए नहीं किया जा सकता।

यह मामला तब गरमाया जब एनजीओ ‘मेसर्स क्योर एसएमए फाउंडेशन’ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में आरोप लगाया गया कि समय रैना ने अपने एक शो के दौरान स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे दो महीने के बच्चे के इलाज के लिए महंगे उपचार का मजाक उड़ाया। इतना ही नहीं, एक अन्य मामले में रैना पर अंधे और तिरछी आंखों वाले व्यक्ति का उपहास करने का भी आरोप है। इन असंवेदनशील चुटकुलों ने न केवल विकलांग समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई, बल्कि सोशल मीडिया पर भी तीखी आलोचना का सबब बने।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सोशल मीडिया पर विकलांगों के खिलाफ असंवेदनशील सामग्री को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का फैसला किया है। कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि से इस मुद्दे पर सहायता मांगी है। साथ ही, कोर्ट ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के लिए उपचारात्मक और दंडात्मक कार्रवाई की जरूरत पर भी जोर दिया।

यह मामला न केवल समय रैना की जवाबदेही पर सवाल उठाता है, बल्कि कॉमेडी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे को भी परिभाषित करने की दिशा में एक अहम कदम है। सवाल यह है कि क्या हास्य के नाम पर संवेदनशीलता की सीमा लांघना उचित है? सुप्रीम कोर्ट का यह रुख निश्चित रूप से सोशल मीडिया और मनोरंजन जगत के लिए एक सबक हो सकता है। अगली सुनवाई में रैना और अन्य आरोपियों की पेशी इस मामले को और रोचक मोड़ देगी।

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