वाराणसी, 27 मई 2025, मंगलवार। वाराणसी में सोमवार की शाम एक छोटा-सा शिलापट्ट नगर निगम के लिए बड़े तमाशे का सबब बन गया। बात थी वार्ड नंबर-99, बंधू कच्चीबाग, धनेसरा तालाब पीलीकोठी में गार्बेज ट्रांसफर स्टेशन के शेड निर्माण के शिलान्यास की। माहौल उत्साहपूर्ण था, लोग विकास की नई उम्मीदों के साथ जुटे थे, मगर एक छोटी-सी चूक ने महापौर अशोक कुमार तिवारी का पारा सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। शिलापट्ट पर परियोजना की लागत का जिक्र ही गायब था!
महापौर का गुस्सा और अफसरों की फजीहत
जैसे ही महापौर की नजर उस अधूरे शिलापट्ट पर पड़ी, माहौल में तनाव की लहर दौड़ गई। मौके पर मौजूद जूनियर इंजीनियर (जेई) सुखपाल सिंह और असिस्टेंट इंजीनियर (एई) अगम कटियार को महापौर ने आड़े हाथों लिया। सख्त लहजे में उन्होंने पूछा, “आपको नौकरी करनी चाहिए? जब आपको यह नहीं पता कि कितना काम हो रहा है, तो आप काम करने लायक हैं क्या?” यह सुनकर वहां मौजूद लोग सन्न रह गए।

महापौर ने जेई से सवाल दागा, “काम को एक महीना हो गया, और आपको लागत नहीं पता? इस पद के लायक हैं भी?” फिर बारी आई एई अगम कटियार की। महापौर ने तल्खी से पूछा, “आप AE हैं? आपको नहीं पता कि साढ़े तीन करोड़ की परियोजना है? आप लोग आकलन कैसे करते हैं? बजट कैसे बनाते हैं?” हर सवाल के साथ उनकी आवाज में गुस्सा और जवाबदेही की मांग साफ झलक रही थी।
‘कल तक लागत लिख दो, चाहे खुदवा कर कराओ!’
महापौर ने साफ निर्देश दे डाला कि अगले दिन तक शिलापट्ट पर साढ़े तीन करोड़ की लागत हर हाल में अंकित होनी चाहिए। “चाहे नया पत्थर लगाओ या खुदवाकर लिखवाओ, काम हो जाना चाहिए,” उनके शब्दों में नाराजगी के साथ-साथ शहर के विकास के प्रति उनकी गंभीरता भी साफ दिखी। जाते-जाते उन्होंने अंतिम फरमान सुनाया, “कल तक बोर्ड बदल जाए या सही करा दिया जाए, ताकि जनता को पता चले कि कितने बड़े पैमाने पर विकास हो रहा है।”
शिलापट्ट से शुरू, चर्चा तक पहुंची बात
यह छोटी-सी घटना अब पूरे इलाके में चर्चा का विषय बन चुकी है। नगर निगम के अधिकारी अब दिन-रात एक कर शिलापट्ट को ठीक करने की जुगत में लग गए हैं, ताकि महापौर के निर्देशों का पालन हो और आगे की फजीहत से बचा जा सके। लेकिन यह घटना सिर्फ एक शिलापट्ट की कहानी नहीं है। यह उस जवाबदेही की मिसाल है, जो वाराणसी जैसे ऐतिहासिक शहर में विकास के हर कदम पर जरूरी है।
क्या सिखाता है यह वाकया?
शिलापट्ट पर लागत का न लिखा होना महज एक लापरवाही नहीं, बल्कि पारदर्शिता की कमी का प्रतीक है। महापौर का गुस्सा सिर्फ अफसरों की चूक पर नहीं, बल्कि उस सोच पर था, जो जनता के प्रति जवाबदेही को हल्के में लेती है। विकास का हर कदम, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, जनता के भरोसे और पारदर्शिता पर टिका होता है।
अब देखना यह है कि क्या शिलापट्ट पर स्याही सिर्फ लागत लिखेगी या जवाबदेही की नई इबारत भी गढ़ेगी। वाराणसी की गलियों में यह चर्चा अभी थमने वाली नहीं है!