नई दिल्ली, 24 मई 2025, शनिवार। 1817 में विश्व में एक खतरनाक बीमारी ने दस्तक दी, जिसे “ब्लू डेथ” या “हैजा” (कॉलेरा) नाम दिया गया। इस जानलेवा बीमारी ने पूरी दुनिया में तांडव मचाया और उस समय लगभग 1.8 करोड़ लोगों की जान ले ली। वैज्ञानिक इसका इलाज खोजने में जुट गए। 1844 में रॉबर्ट कॉख ने हैजा के जीवाणु, वाइब्रियो कॉलेरी, की खोज की, लेकिन इसे निष्क्रिय करने का तरीका नहीं ढूंढ पाए। हैजा फैलता रहा, और लोग “नीली मौत” का शिकार होते रहे।
1 फरवरी 1915 को पश्चिम बंगाल के एक गरीब परिवार में शंभूनाथ डे का जन्म हुआ। पढ़ाई में अव्वल शंभूनाथ ने कोलकाता मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन उनकी रुचि चिकित्सा से ज्यादा शोध में थी। 1947 में उन्होंने लंदन के कैमरोन लैब में पीएचडी शुरू की, जहां उनका ध्यान वाइब्रियो कॉलेरी पर गया। 1949 में वह भारत लौटे और कोलकाता मेडिकल कॉलेज के पैथोलॉजी विभाग के निदेशक बने। उस समय बंगाल हैजा की महामारी से जूझ रहा था, और अस्पताल मरीजों से भरे थे।
रॉबर्ट कॉख ने माना था कि वाइब्रियो कॉलेरी खून के जरिए शरीर को प्रभावित करता है, लेकिन शंभूनाथ डे ने इस धारणा को गलत साबित किया। उनके शोध ने सनसनी मचा दी: वाइब्रियो कॉलेरी खून में नहीं, बल्कि छोटी आंत में टॉक्सिन छोड़ता है, जिससे शरीर में पानी की कमी और खून गाढ़ा होने लगता है। इस खोज के आधार पर 1953 में ऑरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ORS) विकसित हुआ, जो हैजा का रामबाण इलाज साबित हुआ। भारत और अफ्रीका में लाखों लोगों की जान इस सॉल्यूशन ने बचाई।
शंभूनाथ डे की खोज ने विश्व भर में उनकी प्रशंसा बटोरी, लेकिन भारत में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। नोबेल पुरस्कार के लिए उनके नाम की सिफारिश हुई, और दुनिया भर में उन्हें सम्मानित किया गया, लेकिन भारत में वह गुमनाम रहे। साधनों की कमी के कारण वे आगे शोध नहीं कर पाए। उनकी खोज ने “ब्लू डेथ” से “डेथ” शब्द को हटा दिया, करोड़ों लोगों की जान बचाई, फिर भी वे राष्ट्रीय नायक नहीं बन सके। न सरकार ने ध्यान दिया, न ही उन्हें कोई बड़ा सम्मान मिला। शंभूनाथ डे भारत के उस गुमनाम नायक हैं, जिन्होंने हैजा को हराकर इतिहास रचा, पर इतिहास में उनका नाम गुमनामी के अंधेरे में खो गया।