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Saturday, August 2, 2025

भारत की बुलंद आवाज: अमेरिकी दबाव के सामने कभी नहीं झुका हिंदुस्तान

नई दिल्ली, 1 अगस्त 2025: अमेरिका की दादागीरी और दबाव की राजनीति के सामने भारत का सिर हमेशा ऊंचा रहा है। चाहे 1965 में गेहूं रोकने की धमकी हो, 1974 और 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद लगे प्रतिबंध हों, या अब 25% टैरिफ की ताजा धौंस, भारत ने हर बार अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखा है। इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी भी विदेशी दबाव में अपनी नीतियां नहीं बदलीं।

1965: गेहूं की धमकी और शास्त्री जी का करारा जवाब

1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान, जब देश खाद्य संकट से जूझ रहा था, अमेरिका ने पीएल-480 योजना के तहत गेहूं की आपूर्ति रोकने की धमकी दी। उस समय भारत की 48 करोड़ जनता का पेट भरना किसी बड़े युद्ध से कम नहीं था। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन की धमकी को ठुकराते हुए कहा, “गेहूं रोक दीजिए, हमें फर्क नहीं पड़ता।” शास्त्री जी ने “जय जवान, जय किसान” का नारा देकर देश को आत्मनिर्भरता की राह दिखाई। उन्होंने स्वयं व्रत रखा और देशवासियों से सप्ताह में एक दिन उपवास करने की अपील की। इस साहस ने भारत को दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा की ओर अग्रसर किया।

1974 और 1998: पोखरण में गूंजा भारत का दम

1974 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण (पोखरण-I) किया। जवाब में अमेरिका ने परमाणु ईंधन, तकनीकी सहायता और आर्थिक मदद पर प्रतिबंध लगा दिए। लेकिन भारत ने स्वदेशी तकनीक और वैकल्पिक साझेदारियों के दम पर इन प्रतिबंधों को नाकाम कर दिया। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पोखरण-II (ऑपरेशन शक्ति) के पांच परमाणु परीक्षणों ने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाया। अमेरिका ने फिर प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने झुकने से इनकार कर दिया। कूटनीतिक वार्ताओं और दृढ़ नीतियों के बल पर 1999 तक ज्यादातर प्रतिबंध हट गए, और 2000 में बिल क्लिंटन की भारत यात्रा ने रिश्तों को नया आयाम दिया।

2025: टैरिफ की धमकी, भारत का संयमित जवाब

अब 7 अगस्त 2025 से अमेरिका ने भारत के निर्यात पर 25% टैरिफ लागू करने का ऐलान किया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस नीति को भारत ने ट्रेड डील की मनमानी शर्तों के तौर पर देखा है। वाणिज्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि भारत जवाबी टैरिफ नहीं लगाएगा, लेकिन अपने व्यापारियों के हितों की रक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाएगा। यह भारत की उस परंपरा का हिस्सा है, जहां वह दबाव के आगे नहीं झुकता, बल्कि संयम और रणनीति से जवाब देता है।

भारत की स्वतंत्र नीति का लोहा

1947 में जवाहरलाल नेहरू की गुट-निरपेक्ष नीति से शुरू हुआ भारत का स्वतंत्रता का सफर आज भी बदस्तूर जारी है। अमेरिका की आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य दबाव की नीतियों के बावजूद भारत ने अपनी विदेश और आर्थिक नीतियों में स्वायत्तता बनाए रखी। यह सिलसिला बताता है कि भारत न तो दबाव में झुकता है और न ही अपनी संप्रभुता से समझौता करता है।

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