नई दिल्ली, 10 जुलाई 2025: डिजिटल युग में सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने वैश्विक सोच को एकरूप करने का खतरा पैदा किया है, लेकिन भारत अपनी प्राचीन भाषाई विरासत और तकनीकी नवाचार के बल पर इस चुनौती को अवसर में बदल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की विविध भाषाएं और सांस्कृतिक गहराई वैश्विक इको चेंबर को तोड़ने और समावेशी डिजिटल भविष्य का नेतृत्व करने की कुंजी हो सकती हैं।
सोशल मीडिया की छिपी कैद
सोशल मीडिया ने जहां दुनिया को जोड़ा, वहीं यह चिंता, अवसाद और तुलनात्मक सोच का कारण भी बन रहा है। यूके की रॉयल सोसाइटी फॉर पब्लिक हेल्थ के अनुसार, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे बुरा असर डाल रहे हैं। माइक्रोसॉफ्ट के एक अध्ययन ने खुलासा किया कि औसत ध्यान अवधि अब केवल 8 सेकंड रह गई है। साथ ही, एमआईटी मीडिया लैब की रिसर्च बताती है कि झूठी खबरें सच्चाई से छह गुना तेज फैलती हैं, क्योंकि एल्गोरिद्म हेट स्पीच और उत्तेजक कंटेंट को प्राथमिकता देते हैं।
पश्चिमी पूर्वाग्रह और सांस्कृतिक एकरूपता
वैश्विक डिजिटल परिदृश्य में पश्चिमी मूल्यों का वर्चस्व है। डब्ल्यू3टेक्स 2024 के आंकड़ों के अनुसार, 60% वेब कंटेंट अंग्रेजी में है, जबकि इसे मूल रूप से बोलने वाले केवल 5% हैं। पश्चिमी सौंदर्य मानक, पूंजीवाद और व्यक्तिवाद ने वैश्विक सोच को एक पश्चिमी ढांचे में ढाल दिया है। यह ‘एल्गोरिद्मिक उपनिवेशवाद’ दिल्ली से लेकर साओ पाउलो तक फैल चुका है, जहां सफलता का पैमाना पश्चिमी जीवनशैली बन गया है।
एआई और इको चेंबर का खतरा
एआई को समानता का प्रतीक माना गया, लेकिन यह पूर्वाग्रहों का पुनरुत्पादन कर रहा है। टिकटॉक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म के एल्गोरिद्म एंगेजमेंट बढ़ाने के लिए एक जैसे विचारों को बार-बार परोसते हैं, जिससे वैचारिक विविधता कम हो रही है। यूनिसेफ की चेतावनी के अनुसार, एआई-आधारित कंटेंट बच्चों में लैंगिक और सामाजिक पूर्वाग्रह बढ़ा सकता है। चूंकि अधिकांश एआई मॉडल पश्चिमी डेटा पर प्रशिक्षित हैं, वे भारतीय दर्शन और स्थानीय संदर्भों को समझने में नाकाम रहते हैं।
भारतीय भाषाओं की ताकत
अंग्रेजी ने भारत को वैश्विक मंच पर पहुंचाया, लेकिन इसने हमारी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को सीमित भी किया। सपिर-वॉर्फ हाइपोथीसिस के अनुसार, भाषा सोच को आकार देती है। जब भारतीय युवा अंग्रेजी में सोचते हैं, तो वे अनजाने में पश्चिमी दृष्टिकोण अपनाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि हिंदी, तमिल, बंगाली जैसी भाषाओं में डिजिटल कंटेंट और एआई मॉडल विकसित करने से भारतीय मूल्यों और दर्शन को वैश्विक मंच पर स्थापित किया जा सकता है।
भारत की राह
भारत की 1.4 अरब आबादी, युवा तकनीकी प्रतिभा और 22 आधिकारिक भाषाओं की ताकत इसे डिजिटल युग का नेतृत्व करने की स्थिति में लाती है। स्टार्टअप्स और नीति निर्माताओं ने स्थानीय भाषाओं में एआई टूल्स और कंटेंट प्लेटफॉर्म विकसित करने की दिशा में कदम उठाने शुरू किए हैं। यदि भारत अपनी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को तकनीक के साथ जोड़ दे, तो यह न केवल वैश्विक इको चेंबर को तोड़ सकता है, बल्कि एक समावेशी, बहुभाषी डिजिटल भविष्य की नींव भी रख सकता है।
डिजिटल युग में भारत के पास एक अनूठा अवसर है। अपनी भाषाओं और सांस्कृतिक गहराई के बल पर वह न केवल तकनीकी नवाचार में नेतृत्व कर सकता है, बल्कि वैश्विक सोच को एक नई, समृद्ध दिशा भी दे सकता है। यह समय है कि भारत अपनी आवाज को डिजिटल दुनिया में गूंजने दे।