नई दिल्ली, 22 मार्च 2025, शनिवार। नई दिल्ली में एक ऐसी बैठक हुई, जिसने भारत के भविष्य को बदलने की नींव रखी। 10 धर्मों और आस्थाओं के 30 प्रमुख धर्मगुरुओं ने एक साथ आकर बाल विवाह जैसी कुप्रथा को 2030 तक जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया। यह सिर्फ एक बैठक नहीं थी, बल्कि देश के बच्चों के बचपन को बचाने का एक शक्तिशाली आंदोलन था। इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन (आईसीपी) और जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के सहयोग से आयोजित इस संवाद में एक राष्ट्रीय अंतरधार्मिक फोरम बनाने की बात जोरों से उठी, जो जागरूकता फैलाने, कानून लागू करने और धर्मों के बीच सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम करेगा।
धर्म और आस्था की एकजुट आवाज
हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी, ईसाई, यहूदी, बहाई और ब्रह्मकुमारी संप्रदाय के प्रतिनिधियों ने एक स्वर में कहा- “कोई भी धर्म बाल विवाह का समर्थन नहीं करता।” पिछले साल 22 जुलाई 2024 को शुरू हुए ‘चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया’ अभियान के बाद यह दूसरा बड़ा कदम था। तब 9 धर्मों के गुरुओं ने संकल्प लिया था कि उनके पुरोहित बाल विवाह संपन्न नहीं कराएंगे। अब यह मिशन और बड़ा हो गया है। धर्मगुरुओं ने माना कि उनकी आवाज समाज की सोच बदल सकती है। वे अपने प्रभाव से लोगों को जगा सकते हैं कि बाल विवाह सिर्फ अपराध नहीं, बच्चों के साथ अन्याय है।
“यह बच्चों से बलात्कार है”
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु ने इस मौके पर जोश भरे शब्दों में कहा, “धर्मगुरुओं का यह संगम एक ऐतिहासिक कदम है। बाल विवाह को कोई धार्मिक मान्यता नहीं देता। यह अपराध है, अनैतिक है और बच्चों से बलात्कार है। परंपरा या संस्कृति के नाम पर बच्चों का शोषण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” उन्होंने आगे कहा कि यह आंदोलन अब वैश्विक हो चला है। “हम सिर्फ बाल विवाह मुक्त भारत नहीं, बल्कि बाल विवाह मुक्त विश्व चाहते हैं।” भुवन ने समाज से अपील की कि हर व्यक्ति बाल विवाह के खिलाफ खड़ा हो, इसकी सूचना दे और इसे रोकने में मदद करे।
“शैतानी प्रथा का अंत जरूरी”
राम कृष्ण मिशन के स्वामी कृपाकरनंद ने इसे “शैतानी प्रथा” करार देते हुए कहा, “यह हजारों साल पुरानी समस्या है, जिसे अब खत्म करने का समय आ गया है। जागरूकता और सशक्तीकरण से ही हम बच्चों को उनका बचपन लौटा सकते हैं।” वहीं, फरीदाबाद के आर्क बिशप मार कुरियाकोसे भरानीकुलांगारा ने जोर दिया, “विवाह जिम्मेदारी है, जिसे बच्चे नहीं उठा सकते। समुदायों को सशक्त करें, शादी का पंजीकरण अनिवार्य करें और इस बुराई को दुनिया से मिटाएं।”
इस्लाम में भी सख्त निषेध
आल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के सचिव फैजान मुनीर और मुफ्ती असलम ने कहा, “इस्लाम बाल विवाह की इजाजत नहीं देता। विवाह बड़ी जिम्मेदारी है, और इस संदेश को हर माता-पिता तक पहुंचाना जरूरी है।” ब्रह्म कुमारी बहन हुसैन ने भी इसे समाज की गहरी जड़ों में बसी बुराई बताया और आस्था की ताकत से इसे खत्म करने की बात कही।
जमीनी स्तर पर जंग
धर्मगुरुओं ने तय किया कि राष्ट्रीय फोरम के साथ-साथ स्थानीय और क्षेत्रीय फोरम भी बनेंगे। खासकर उन जिलों में, जहां बाल विवाह की दर ज्यादा है, वहां जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे। जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के 250 से ज्यादा सहयोगी संगठन पहले ही 416 जिलों में मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों के जरिए पोस्टर, दीवार लेखन और शपथ के माध्यम से लोगों को जोड़ रहे हैं। अब तक 2,50,000 बाल विवाह रुकवाकर यह नेटवर्क एक मिसाल बन चुका है।
विशेषज्ञों की सलाहकार परिषद
इस फोरम के साथ एक सलाहकार परिषद भी बनेगी, जिसमें बाल अधिकार कार्यकर्ता, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और धार्मिक विद्वान शामिल होंगे। यह परिषद कानून, परंपरा और मानवाधिकारों को जोड़कर बाल विवाह रोकने के लिए ठोस रणनीतियां बनाएगी।
भारत की वैश्विक प्रतिबद्धता
यह पहल भारत के संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के तहत 2030 तक बाल विवाह खत्म करने के वादे को मजबूत करती है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया दिशानिर्देश भी इस दिशा में एक बड़ा कदम हैं। यह संवाद न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया के लिए एक प्रेरणा है कि जब धर्म, समाज और कानून एकजुट हों, तो कोई बुराई टिक नहीं सकती।
यह है वह कहानी, जहां भारत के धर्मगुरु बच्चों के बचपन की रक्षा के लिए एक मंच पर आए। यह सिर्फ एक बैठक नहीं, बल्कि एक क्रांति की शुरुआत है।