नई दिल्ली, 28 अगस्त 2024 –
मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत रक्षा क्षेत्र में एक और मील का पत्थर स्थापित किया है, जो पानी के नीचे से समुद्री सीमा पर दुश्मनों पर पैनी नजर रखेगा। गुरुवार, 29 अगस्त को स्वदेशी रूप से निर्मित आईएनएस अरिघात भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल किया जाएगा।
आईएनएस अरिघात भारत की दूसरी न्यूक्लियर पनडुब्बी है जो पूरी तरह स्वदेश निर्मित है । गुरुवार को आईएनएस अरिघात को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में नौसेना में शामिल किया जाएगा । फ़िलहाल आईएनएस अरिहंत हिंद महासागर क्षेत्र के समुद्री सीमा पर गश्त लगा रही है ।
भारत अपनी समुद्री रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। देश की दूसरी परमाणु ऊर्जा चालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी, आईएनएस अरिघात, 29 अगस्त को भारतीय नौसेना में शामिल की जाएगी। यह समारोह शीर्ष रक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, और सैन्य अधिकारियों की उपस्थिति में आयोजित किया जाएगा, जो भारत की समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक क्षमता को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा।
आईएनएस अरिघात: परिचय और विकास जैसा नाम वैसा ही दमदार है आईएनएस अरिघात । न्यूक्लियर सबमरीन आईएनएस अरिघात ,आईएनएस अरिहंत का न्यू एडवांस वर्जन है और दोनों ही सबमरीन स्वदेश निर्मित हैं ।
आईएनएस अरिघात, भारत की अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बियों का नया संस्करण है। यह दूसरी परमाणु ऊर्जा चालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है, जिसे विशाखापत्तनम में शिप बिल्डिंग सेंटर में उन्नत प्रौद्योगिकी पोत (एटीवी) परियोजना के तहत विकसित किया गया है। इसे 2017 में लॉन्च किया गया था और इसका कोड नाम S3 है। यह पनडुब्बी भारत की समुद्री सुरक्षा को एक नई दिशा देने के लिए डिज़ाइन की गई है, और यह देश की रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करेगी।
आईएनएस अरिघात की तकनीकी क्षमताएँ
आईएनएस अरिघात में एक सात-ब्लेड प्रोपेलर है, जो दबाव वाले पानी के रिएक्टर से चलता है। यह सतह पर होने पर 12-15 नॉट्स (22-28 किमी प्रति घंटा) और पानी में डूबे होने पर 24 नॉट्स (44 किमी प्रति घंटा) की अधिकतम गति हासिल कर सकता है। पनडुब्बी के हंप (कूबड़) में चार लॉन्च ट्यूब हैं, जो इसे 12 K-15 सागरिका मिसाइलों या चार K-4 मिसाइलों को ले जाने में सक्षम बनाते हैं।
आईएनएस अरिहंत के साथ साझेदारी
आईएनएस अरिघात, आईएनएस अरिहंत के साथ मिलकर कार्य करेगी, जो कि भारत की पहली स्वदेशी परमाणु-संचालित पनडुब्बी है और 2009 में भारतीय नौसेना में शामिल की गई थी। आईएनएस अरिघात और आईएनएस अरिहंत मिलकर भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी, और साथ ही लंबी दूरी तक मार करने वाली परमाणु मिसाइलों की शक्ति को भी सुदृढ़ करेंगी। यह साझेदारी भारतीय नौसेना को समुद्र के नीचे से प्रभावी ढंग से जवाब देने की एक नई क्षमता प्रदान करेगी।
स्वदेशी निर्माण और आत्मनिर्भरता
आईएनएस अरिघात का विकास भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता और स्वदेशी निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पनडुब्बी पूरी तरह से भारत में डिज़ाइन और निर्मित की गई है, जो देश की बढ़ती रक्षा क्षमताओं का प्रतीक है। भारतीय नौसेना अब न केवल परमाणु और पारंपरिक पनडुब्बियों का स्वदेशी निर्माण कर रही है, बल्कि यह उन्नत प्रौद्योगिकी के माध्यम से देश की समुद्री सुरक्षा को भी सुदृढ़ कर रही है।
समर्पण और परीक्षण
अक्टूबर 2022 तक, आईएनएस अरिघात बंदरगाह परीक्षणों से गुजर रहा था और इसे 2022 में कमीशन किया जाना था। हालाँकि, 5 फरवरी 2023 तक इसे आधिकारिक रूप से कमीशन नहीं किया गया था और कमीशनिंग की आधिकारिक तिथि की घोषणा नहीं की गई थी। नवीनतम रिपोर्टों के अनुसार, आईएनएस अरिघात को 2024 में कमीशन किए जाने की योजना है।
भविष्य की योजनाएँ और महत्व
आईएनएस अरिघात की कमीशनिंग के साथ, भारतीय नौसेना अपनी समुद्री सुरक्षा को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी। यह पनडुब्बी न केवल समुद्री क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करेगी, बल्कि यह देश के परमाणु प्रतिरोध क्षमता को भी सुदृढ़ करेगी।
भविष्य में, भारत की तीसरी परमाणु ऊर्जा संचालित पनडुब्बी का निर्माण जारी रहेगा, जो 2035-36 तक तैयार होने की उम्मीद है|
अरिघात का मतलब होता है दुश्मन का विनाशक । इस पनडुब्बी का यह नाम इसलिए नहीं है कि ये परमाणु से लैस है। दरअसल यह पनडुब्बी परमाणु रिएक्टर की मदद से चलती है । परमाणु रिएक्टर से चलने वाली सबमरीन आम सबमरीन से तेज चल सकती है । यहां तक कि यह सतह पर चलने वाले जहाजों की रफ्तार की बराबरी भी कर सकती हैं । आम पनडुब्बियां जहां सिर्फ कुछ घंटों तक ही पानी के नीचे रह पाती हैं, वहीं आईएनएस अरिघात महीनों तक जलमग्न रह सकती हैं ।
आईएनएस अरिघात सबमरीन भारतीय नौसेना की Arihant Class की दूसरी पनडुब्बी है । अरिहंत’ संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है ‘दुश्मन का विनाशक’. अरिघात सबमरीन मौजूदा आईएनएस अरिहंत का सहयोग करेगी जिसे 2009 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था । भारतीय नौसेना पहले ही दो सबमरीन से लंबी दूरी की परमाणु मिसाइलों का विकास और परीक्षण कर चुकी है । नौसेना जल्द ही तीसरी सबमरीन को भी शामिल करने की तैयारी कर रही है, जबकि दो और साल 2035-36 तक तैयार हो जाएंगी ।
भारतीय नौसेना भविष्य में परमाणु और पारंपरिक दोनों तरह की पनडुब्बियां बनाना जारी रखेगी. भारत के लिए कलवरी क्लास यानी स्कॉर्पीन नौकाओं के तहत छह परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण की परियोजना पूरी होने में लगभग 25,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी । जबकि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के पनडुब्बी सेंटर में बनने वाली पहली तीन पनडुब्बियों में 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत आएगी ।
क्या है भारतीय नौसेना की योजना?
भारतीय नौसेना ने 24 नई पनडुब्बियों के संचालन की योजना बनाई है. इनमें से छह कलवरी श्रेणी की हैं । छह का निर्माण प्रोजेक्ट 75 इंडिया के तहत किया जाएगा । बता दें कि छह परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण के प्रस्ताव को अभी सुरक्षा मामलों की समिति ने मंजूरी नहीं मिली है ।
फिलहाल भारत के पास आईएनएस अरिहंत के अलावा रूसी मूल के किलो क्लास और जर्मन मूल के एचडीडब्ल्यू सबमरीन मौजूद हैं । अरिहंत क्लास परियोजना के तहत पांच परमाणु पनडुब्बियों को फिर से बनाने की योजना बनाई गई है जो 24 पनडुब्बी कार्यक्रम से अलग है । अरिहंत क्लास की पनडुब्बियों को 900 अरब भारतीय रुपये की लागत से तैयार किया जा रहा है ।