नई दिल्ली, 22 मार्च 2025, शनिवार। चित्रकूट के जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय में भारतीय न्याय संहिता 2023 पर दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन एक ऐतिहासिक अवसर बन गया। इस कार्यक्रम में विधान परिषद के सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए, जबकि जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने दीप प्रज्वलन के साथ इसकी शुरुआत की। कई विधायकों और गणमान्य व्यक्तियों की मौजूदगी में इस संगोष्ठी ने नए कानून और प्राचीन भारतीय न्याय परंपरा के बीच एक सेतु स्थापित करने का प्रयास किया।
मनु से रामायण तक: न्याय की गौरवशाली परंपरा
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अपने विचारों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा, “मनु महाराज से लेकर ऋषियों तक, हमारी जो परंपरा रही, वह न्याय देने की परंपरा रही है।” उन्होंने मनुस्मृति की आलोचना करने वालों पर निशाना साधते हुए कहा कि मायावती ने मनु को गाली देना शुरू किया, लेकिन उन्हें इसका एक भी अक्षर समझ नहीं। साथ ही, बाबासाहेब अंबेडकर पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि यदि उन्हें संस्कृत का ज्ञान होता, तो वे मनुस्मृति को जलाने का प्रयास न करते। रामभद्राचार्य ने दावा किया, “मनुस्मृति में एक भी अक्षर राष्ट्र निर्माण के खिलाफ नहीं है। महाभारत काल की न्याय प्रक्रिया अधूरी थी, लेकिन रामायण काल की प्रक्रिया समग्र थी। भगवान श्रीराम ने मनु को आधार बनाकर न्याय किया।”
भारतीय न्याय संहिता: गुलामी से मुक्ति का मार्ग
विधान परिषद सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने भारतीय न्याय संहिता को एक क्रांतिकारी कदम बताया। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में डेढ़ सौ साल पुराने औपनिवेशिक कानूनों—भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम—को हटाकर यह नया कानून लागू किया गया है। यह देश की आपराधिक न्याय प्रणाली को गुलामी की मानसिकता से मुक्त करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।” उन्होंने जोड़ा कि चार साल तक गहन विचार-विमर्श और बैठकों के बाद यह कानून तैयार किया गया, जो इसे देश का पहला ऐसा कानून बनाता है।
रामायण काल से आधुनिक भारत तक: एक संकल्प
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने इस संगोष्ठी को केवल चर्चा तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने घोषणा की कि वे भारतीय न्याय संहिता और प्राचीन न्याय परंपरा को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे और न्याय प्रणाली में सुधार की मांग उठाएंगे। उनका मानना है कि रामायण काल की समग्र न्याय प्रक्रिया आज के कानूनों के लिए प्रेरणा बन सकती है।
नई दिशा, नया संकल्प
यह संगोष्ठी न केवल भारतीय न्याय संहिता 2023 पर विचार-मंथन का मंच बनी, बल्कि प्राचीन भारतीय मूल्यों को आधुनिक संदर्भ में जोड़ने का एक संकल्प भी लेकर आई। चित्रकूट की पावन धरती से उठी यह आवाज देश की न्याय व्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का वादा करती है। रामायण काल के आदर्शों से प्रेरित होकर यह नया कानून भारत को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम साबित हो सकता है।