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Thursday, June 26, 2025

दिल्ली में 80 साल बाद लौटा ‘इंडियन ग्रे वुल्फ’? एक रहस्यमयी मुलाकात की कहानी

नई दिल्ली, 21 मई 2025, बुधवार। दिल्ली, जहां कंक्रीट के जंगल और व्यस्त सड़कें हर ओर नजर आती हैं, वहां एक ऐसी खबर ने सबको चौंका दिया है, जो प्रकृति प्रेमियों और वन्यजीव विशेषज्ञों के दिलों की धड़कन बढ़ा रही है। राजधानी के पल्ला क्षेत्र में एक वन्यजीव फोटोग्राफर ने एक ऐसी तस्वीर खींची है, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि यह ‘इंडियन ग्रे वुल्फ’ है—एक ऐसा जीव, जिसे दिल्ली में आखिरी बार 1940 में देखा गया था। यह खोज, अगर सही साबित हुई, तो न सिर्फ दिल्ली की जैव विविधता के लिए एक ऐतिहासिक पल होगा, बल्कि यह भी दिखाएगा कि प्रकृति अपने तरीके से शहरों में वापसी कर सकती है।

15 मई की सुबह: एक अनोखी मुलाकात

फोटोग्राफर हेमंत गर्ग, जो सालों से पल्ला के खेतों और यमुना के किनारों पर वन्यजीवों की तस्वीरें खींचते रहे हैं, उस सुबह को कभी नहीं भूल सकते। 15 मई, सुबह 8 बजे, जब सूरज की किरणें खेतों को सुनहरा कर रही थीं, हेमंत की नजर एक अनोखे जीव पर पड़ी। “यह कुत्ता नहीं था,” हेमंत ने उत्साह से बताया। “इसके चलने का अंदाज, मजबूत कंधे, और जिस तरह यह जमीन खोद रहा था, वह सब कुछ अलग था।” हेमंत ने जल्दी से दो तस्वीरें खींचीं, और फिर वह जीव झाड़ियों में गायब हो गया। जब उन्होंने तस्वीरें विशेषज्ञों को भेजीं, तो जवाब ने उन्हें हैरान कर दिया—यह भारतीय ग्रे वुल्फ हो सकता है!

इंडियन ग्रे वुल्फ: कितना खतरनाक, कितना रहस्यमयी?

भारतीय ग्रे वुल्फ एक दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजाति है, जो आमतौर पर मध्य भारत, राजस्थान और दक्षिणी राज्यों के घास के मैदानों और झाड़ियों वाले इलाकों में पाया जाता है। यह भेड़िया अपनी तीक्ष्ण सूंघने की क्षमता के लिए मशहूर है—यह 2 किलोमीटर दूर से भी अपने शिकार को सूंघ सकता है! बकरियां, खरगोश और चूहे इसका मुख्य भोजन हैं, और यह चुपके से शिकार करने में माहिर है। यूरेशियन भेड़ियों से छोटा और पतला, नर ग्रे वुल्फ का वजन 20-25 किलो और मादा का 18-22 किलो होता है। ये सामाजिक जीव झुंड में रहते हैं और हैरानी की बात है कि ये पेड़ों पर भी चढ़ सकते हैं!

वुल्फ या हाइब्रिड? विशेषज्ञों में बहस

वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बिलाल हबीब इस तस्वीर को देखकर उत्साहित हैं। उनका मानना है कि यह एक साल का युवा ग्रे वुल्फ हो सकता है, जो शायद अपने मूल आवास से भटक गया है। लेकिन पर्यावरणविद् डॉ. फैयाज ए खुदसर इसे पूरी तरह ग्रे वुल्फ मानने से हिचक रहे हैं। उनका कहना है कि यह कुत्ते और भेड़िए का हाइब्रिड भी हो सकता है। “शहरी और ग्रामीण सीमाओं पर कुत्तों और भेड़ियों का संकरण आम है,” डॉ. खुदसर बताते हैं। “चंबल में भी पिछले साल ऐसा ही एक जीव देखा गया था।” दिल्ली जैसे शहर में, जहां आवासीय विस्तार और कुत्तों की बढ़ती आबादी वन्यजीवों के लिए चुनौती बन रही है, हाइब्रिड की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

क्या कहता है भविष्य?

विशेषज्ञों की टीमें अब पल्ला क्षेत्र में गहन सर्वेक्षण और ट्रैकिंग की तैयारी कर रही हैं। अगर यह वास्तव में भारतीय ग्रे वुल्फ है, तो यह दिल्ली के लिए एक बड़ा संदेश होगा—कि संकटग्रस्त प्रजातियां भी शहरी सीमाओं में जीवित रह सकती हैं। और अगर यह हाइब्रिड है, तो यह शहरीकरण और पर्यावरणीय बदलावों की नई चुनौतियों को उजागर करेगा।

यह रहस्यमयी जीव, चाहे ग्रे वुल्फ हो या उसका संकर रूप, एक बात तो साफ करता है—हमारे पर्यावरण और वन्यजीवों का संरक्षण अब पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है। दिल्ली के इस अनोखे मेहमान ने न सिर्फ विशेषज्ञों को उत्साहित किया है, बल्कि यह हमें प्रकृति के साथ फिर से जुड़ने का मौका देता है। क्या यह ग्रे वुल्फ की वापसी की शुरुआत है, या एक नई कहानी का आगाज? इसका जवाब तो समय और शोध ही देंगे!

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