भारत-जापान की साझेदारी से बनेगी ‘अजेय’ मिसाइल, चीनी हवाई ताकत को देगी चुनौती

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नई दिल्ली, 5 सितंबर 2025: भारत और जापान एक ऐसी लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल (BVRAAM) विकसित करने के लिए हाथ मिला सकते हैं, जो चीनी वायुसेना की बढ़ती ताकत को चुनौती देगी। यह मिसाइल भारत के उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) और जापान के वैश्विक लड़ाकू वायु कार्यक्रम (GCAP) के लिए तैयार की जाएगी। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह साझेदारी दोनों देशों के लिए सामरिक दृष्टि से गेम-चेंजर साबित हो सकती है।

चीन की चुनौती का जवाब

चीन की PL-16 और PL-17 मिसाइलें, जिनकी मारक क्षमता 300 किलोमीटर से अधिक है, क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रही हैं। जवाब में भारत और जापान एक ऐसी मिसाइल विकसित करने की योजना बना रहे हैं, जो न केवल चीनी मिसाइलों को टक्कर दे, बल्कि तकनीकी रूप से उनसे बेहतर हो। सूत्रों के मुताबिक, मई 2025 में दिल्ली में भारत-जापान रक्षा मंत्रियों की बैठक में इस सहयोग पर चर्चा हुई थी, हालांकि अभी कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ है।

भारत की Astra, जापान की AESA तकनीक

भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) अपनी Astra मिसाइल सीरीज के साथ पहले ही उल्लेखनीय प्रगति कर चुका है। Astra MkI, जिसकी मारक क्षमता 110 किलोमीटर है, को Su-30MKI और Tejas Mk1A में शामिल किया जा चुका है। वहीं, 160 किलोमीटर रेंज वाली Astra MkII का परीक्षण 2025 के अंत तक शुरू होगा। दूसरी ओर, जापान अपनी AAM-4TDR मिसाइल और AESA सीकर तकनीक के साथ योगदान देगा, जो इस साझा मिसाइल को और घातक बनाएगी।

Astra MkIII: असली ताकत

DRDO की Astra MkIII, जिसे ‘गांडीव’ कोडनेम दिया गया है, 340 किलोमीटर तक की रेंज के साथ चीन की PL-17 को सीधे टक्कर देगी। सॉलिड फ्यूल डक्टेड रैमजेट (SFDR) तकनीक से लैस इस मिसाइल का जमीनी परीक्षण दिसंबर 2024 में पूरा हो चुका है और हवाई परीक्षण Su-30MKI के साथ चल रहा है। इसे 2030 तक वायुसेना में शामिल करने का लक्ष्य है।

रणनीतिक साझेदारी का भविष्य

भारत का AMCA, एक 5.5वीं पीढ़ी का स्टील्थ फाइटर, 2028 में अपनी पहली उड़ान भरेगा, जबकि जापान का GCAP, जो ब्रिटेन और इटली के साथ मिलकर बनाया जा रहा है, 2035 तक तैयार होगा। दोनों देशों को 300 किलोमीटर से अधिक रेंज वाली मिसाइल की जरूरत है। भारत की SFDR और जापान की AESA तकनीक का मेल इस दिशा में क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है।

रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि यह साझेदारी न केवल भारत-जापान के रक्षा संबंधों को मजबूत करेगी, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सामरिक संतुलन को भी प्रभावित करेगी।

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