नई दिल्ली, 20 नवंबर 2024, बुधवार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तीन देशों की यात्रा के अंतिम चरण में बुधवार, 20 नवंबर को कैरेबियाई देश गुयाना की यात्रा की। यह यात्रा इसलिए खास है क्योंकि पिछले 56 सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली गुयाना यात्रा है। गुयाना की राजधानी जॉर्जटाउन पहुंचने पर पीएम मोदी ने कहा कि उनकी यह यात्रा दोनों देशों के बीच मित्रता को और प्रगाढ़ करेगी। उन्हें गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली, उनके समकक्ष मार्क एंथनी फिलिप्स और 12 से अधिक कैबिनेट मंत्रियों ने हवाई अड्डे पर स्वागत किया। इसके अलावा, होटल में ग्रेनेडा के प्रधानमंत्री डिकॉन मिशेल और बारबाडोस की प्रधानमंत्री मिया अमोर मोटली भी मौजूद थीं।
इस यात्रा के दौरान, पीएम मोदी को भारत-गुयाना के घनिष्ठ संबंधों के प्रमाण के रूप में ‘जॉर्जटाउन शहर की चाबी’ भी सौंपी गई। विदेश मंत्रालय के अनुसार गुयाना में भारतीय मूल के लगभग 3,20,000 लोग हैं। प्रधानमंत्री मोदी दूसरे ‘भारत-कैरिकॉम’ शिखर सम्मेलन में कैरेबियाई साझेदार देशों के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे। यह यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि गुयाना में चीन की बढ़ती मौजूदगी इस क्षेत्र में भारत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन चुकी है।
गुयाना में भारत की बढ़ती पैठ: ऊर्जा और व्यापार में नए अवसर
गुयाना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण देश है, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में। गुयाना में विशाल तेल और गैस भंडार हैं, जो इसे दुनिया के शीर्ष तेल उत्पादकों में से एक बनाने की क्षमता रखते हैं। भारत और गुयाना के बीच आर्थिक संबंधों में मजबूती आ रही है, जिसमें ऊर्जा, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान शामिल हैं। 2021-22 में दोनों देशों के बीच व्यापार 223.36 मिलियन डॉलर का रहा है, जिसमें ऊर्जा उत्पादों का बड़ा योगदान था। गुयाना के विशाल तेल भंडारों ने भारत को आकर्षित किया है, और भारतीय कंपनियां जैसे कि तेल और प्राकृतिक गैस निगम गुयाना के तेल और गैस क्षेत्रों में अवसरों की तलाश कर रही हैं। गुयाना में 11 बिलियन बैरल से अधिक तेल भंडार है, जो कुवैत के भंडार से तीन गुना अधिक है। भारत और गुयाना के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा महत्वपूर्ण है। यह यात्रा दोनों देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देगी और आर्थिक संबंधों को मजबूत करेगी।
भारत और गुयाना के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने का नया दौर
भारत और गुयाना के बीच संबंध तेजी से मजबूत हो रहे हैं। गुयाना का रणनीतिक स्थान भारत को कैरेबियन देशों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है, जो पारंपरिक रूप से अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों के प्रभुत्व में रहा है। गुयाना में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश हो रहा है, जिसमें भारत प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा सहयोग के जरिए योगदान दे सकता है। हाल के दिनों में, गुयाना ने भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं। गुयाना रक्षा बल के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ब्रिगेडियर उमर खान ने दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए पांच दिवसीय दौरे पर भारत का दौरा किया था। इसके अलावा, भारत ने इस साल की शुरुआत में गुयाना को दो डोर्नियर-228 विमान दिए थे, जो दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
चीन को सता रही चिंता
चीन को यह चिंता सता रही है कि अगर भारत गुयाना में अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों के सहारे आगे बढ़ता है, तो उसकी राह में रोड़े खड़े हो सकते हैं। गुयाना में भारतीय मूल के लोगों की लगभग 40% आबादी है, जो 1838 में ब्रिटिश शासन के दौरान गन्ने के खेतों में काम करने के लिए बतौर गिरमिटिया मजदूर लाए गए लोगों के वंशज हैं। भारत और गुयाना के बीच गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध हैं, जो चीन के लिए एक बड़ा खतरा है। चीन को लगता है कि अगर भारत गुयाना में अपनी पकड़ मजबूत करता है, तो उसका तेल-गैस और खनिजों पर कब्जा करने का सपना चकनाचूर हो सकता है। सामरिक क्षेत्र में भी उसकी प्लानिंग चौपट हो सकती है। प्रधानमंत्री मोदी की गुयाना यात्रा इसी संदर्भ में महत्वपूर्ण है। वह भारतीय मजदूरों की पहली यात्रा की याद में बनाए गए ‘इंडियन अराइवल मॉन्यूमेंट’ पर जाकर श्रद्धांजलि देंगे और गुयाना की संसद को भी संबोधित करेंगे। इसके साथ ही, वह भारतीय समुदाय से मुलाकात करेंगे और दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर करेंगे।